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क्या आपके आसपास भी कोई दिव्यांग बच्चा है? तो जरूरी है दिव्यांगता से जुड़े मिथ्स को तोड़ना

वास्तव में दिव्यांगता सिर्फ शारीरिक विकलांगता तक ही सीमित नहीं है। दिव्यांगता कई प्रकार की हो सकती है। इनके बारे में जागरुक होना हम सब की जिम्मेदारी है।
Written by: Ketki Agarwal
Published On: 24 Apr 2022, 12:00 pm IST
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Disability se jude myths ko todkar hum apne aaspass ke kuchh logo ka jiwan asan bana sakte hain
बोन फीवर बन सकता है अपंगता की वजह। चित्र: शटरस्टॉक

मिथ ‘बड़े पैमाने पर फैली गलत अवधारणाएं हैं। ज़्यादातर मिथ और रूढ़ीवादी अवधारणाओं का कोई ठोस सामाजिक आधार नहीं होता। पर इनके होने से किसी व्यक्ति या समुदाय का जीवन और जटिल हो सकता है। दिव्यांगता ऐसी ही एक स्थिति है। अगर आपके आसपास भी कोई दिव्यांग व्यक्ति हैं, तो आपके लिए भी जरूरी है उन भ्रामक अवधारणाओं से बाहर आना और दूसरों को भी उनके बारे में जागरुक करना।

मिथक और समाज में फैली रूढ़ीवादी अवधारणाएं कभी भी सच नहीं हो सकती हैं। ये समाज में फैली भ्रांतियां हैं। इस तरह की सामाजिक भ्रांतियां अक्सर ऐसी परिस्थितियां या घटनाएं होती हैं, जिन्हें संभवत: हमारा समाज ‘सामान्य’ मानता है।

इसके कई उदाहरण हैं जैसे महिलाओं द्वारा धूम्रपान और शराब का सेवन। इसी तरह दिव्यांगता को लेकर भी समाज में कई तरह की गलत और मिथ्या अवधारणाएं फैली हैं। यह लेख पाठकों को ऐसे ही मिथकों और गलत अवधारणाओं के बारे में जानकारी देगा जो दिव्यांग बच्चों से जुड़ी हैं। साथ ही इन मिथकों के सही पहलुओं को भी पाठकों के सामने लेकर आएगा।

यहां हैं दिव्यांगता के बारे में वे मिथ जिन्हें आपको तुरंत छोड़ देना चाहिए

1. दिव्यांगता का अर्थ हमेशा शारीरिक विकलांगता से होता है।

आमतौर पर दिव्यांगता शब्द सुनते ही ज़्यादातर लोग इसे शारीरिक विकलांगता समझते हैं। इस शब्द के साथ ही मन में ऐसे व्यक्ति का विचार आता है, जिसका एक हाथ या पैर न हो।

down syndrome se grast bachche ki parwarish me in cheezo ka zarur dhyan rakhen
कुछ बच्चों में लर्निंग संबंधी दिक्कतें भी हो सकती हैं। चित्र : शटरस्टॉक

वास्तव में दिव्यांगता सिर्फ शारीरिक विकलांगता तक ही सीमित नहीं है। दिव्यांगता कई प्रकार की हो सकती है, जो कई बार हमें आंखों से दिखाई नहीं देती। इसमें मानसिक बीमारियों, सीखने की क्षमता से जुड़ी दिव्यांगता और संज्ञानात्मक दिव्यांगता भी शामिल है।

2. हमें दिव्यांगों पर दया करनी चाहिए।

नहीं, ऐसा व्यवहार स्वीकार्य नहीं है। हमें इन लोगों को अपनी तरह सामान्य मनुष्य मानना चाहिए। उनके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कि हम अन्य लोगों से करते हैं, जो दिव्यांग नहीं हैं। दिव्यांग होने का अर्थ यह बिल्कुल भी नहीं है कि उस व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता अच्छी नहीं है। इस बात को समझ लेना बहुत ज़रूरी है।

3. जिन लोगों में सीखने यानि लर्निंग से जुड़ी दिव्यांगता होती है, वे मूर्ख होते हैं और सफल नहीं हो सकते।

यह सच नहीं है। लर्निंग से जुड़ी दिव्यांगता का व्यक्ति की होशियारी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जिन लोगों में इस तरह की दिव्यांगता होती है, उन्हें विशेष तरीके से सिखाने की ज़रूरत होती है। उन्हें आम स्कूल के बजाए विशेष स्कूल की ज़रूरत होती है। इसका एक उदाहरण अभिषेक बच्चन हैं, जिन्होंने डिस्लेक्सिया होने के बावजूद अतुलनीय सफलता हासिल की है।

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4. दिव्यांगता होना गलत है

समाज किसी चीज़ को बिना समझे इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंच सकता है कि कुछ ‘गलत’ है? सिर्फ इसलिए कि दिव्यांग लोगों की ज़रूरतें अन्य लोगों से कुछ अलग होती हैं, तो क्या उन्हें अपना जीवन सामान्य तरीके से जीने का अधिकार नहीं है। ऐसा बिल्कुल नहीं है और इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है।

5. दिव्यांगता के बारे में खुल कर बात नहीं करनी चाहिए

दिव्यांगता के बारे में खुली और निष्पक्ष चर्चा करने में अक्सर कुछ लोग असहज महसूस करते हैं। संभवत: यही कारण है कि लोग इस विषय पर चर्चा नहीं करना चाहते। ऐसा शायद इसलिए भी है कि 21वीं सदी में सामने वाले व्यक्ति से यही उम्मीद की जाती है कि वह बिना सवाल पूछे हर बात को स्वीकार कर ले।

International Day of Persons with Disabilities
शारीरिक अक्षमता कोई बीमारी नही है, यह एक शारीरिक स्थिति है।चित्र : शटरस्टॉक

यही कारण है कि समाज में लोग दिव्यांगता के बारे में सवाल पूछने से हिचकिचाते हैं और इसीलिए वे दिव्यांगता का अर्थ ठीक से नहीं समझ पाते। हमें इस विषय पर खुली चर्चा को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि लोग इस बारे में सवाल पूछ सकें और इस विषय को बेहतर समझ सकें। इससे समाज में दिव्यांगता को अधिक स्वीकार्यता मिलेगी।

एजुकेशन ही ला सकती है बदलाव 

इन मिथ्या अवधारणाओं को दूर करना बहुत ज़रूरी है। सिर्फ शिक्षा और जागरुकता के माध्यम से ही ऐसा किया जा सकता है। किसी भी व्यक्ति, खासतौर दिव्यांगों के बारे में किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले सही ज्ञान और खुले विचारों का होना बहुत ज़रूरी है।

समय आ गया है कि हम दिव्यांगों को समाज में निष्पक्ष रूप से स्थान दें, खुली बांहों के साथ उनका स्वागत करें, उन्हें सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने की आज़ादी दें। हमें उनकी दिव्यांगता के दायरे से बाहर जाकर सोचना होगा और उनसे वैसा ही व्यवहार करना होगा, जैसा हम अन्य लोगों के साथ करते हैं। एक अच्छे टीचर, जरूरी संसाधनों और तकनीक की मदद से हर तरह की दिव्यांगता का बेहतर तरीके से मुकाबला किया जा सकता है। 

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लेखक के बारे में
Ketki Agarwal
Ketki Agarwal

Ketki Agarwal is founder of LDE xplained and working for awareness on Learning Disabilities

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