पिछले दो दशकों में वैश्वीकरण की वजह से पश्चिमी जीवनशैली की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है। अस्वस्थ भोजन, शारीरिक गतिविधि की कमी, शराब, ड्रग्स और धूम्रपान के संयोजन के परिणामस्वरूप जीवनशैली जन्य रोगों का विकास हुआ है। ज्यादातर लोग मधुमेह, मोटापा, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, हृदय रोग, स्ट्रोक और अस्थमा के बारे में जानते हैं। लेकिन इन्फ्लामेट्री बाउल डिजीज (Inflamatory Bowel Desease-IBD) के बारे में अभी भी जानकारी का अभाव है।
आईबीडी आंतों के विकारों का एक समूह है जो लंबे समय तक पाचन तंत्र में सूजन का कारण बनता है। यह बहुत दर्दनाक और विघटनकारी हो सकता है और कुछ मामलों में यह जानलेवा भी है।
IBD के दो सबसे आम रोग अल्सरेटिव कोलाइटिस (यूसी) और क्रोहन रोग (सीडी) हैं। क्रोहन रोग ज्यादातर छोटी आंत के छोर को प्रभावित करता है। जबकि अल्सरेटिव कोलाइटिस में बड़ी आंत की सूजन शामिल होती है। प्राथमिक लक्षणों में पेट में दर्द, खूनी दस्त और आंतों की सर्जरी और कैंसर जैसे लक्षण शामिल है। ये आजीवन चलने वाली स्थितियां हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को सामाजिक और आर्थिक रूप से भी प्रभावित करती हैं।
क्रोहन की बीमारियां भारत में दुर्लभ थीं, लेकिन मुख्य रूप से उत्तर भारत से अल्सरेटिव कोलाइटिस की कुछ रिपोर्टें आई। भारत में आईबीडी की घटना अस्सी के दशक तक कम रही। हालांकि, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा या अन्य दक्षिण एशियाई देशों सहित पश्चिम में भारतीय प्रवासियों में IBD के फैलने की खबरें थीं।
भारत में IBD बढ़ने की वजह बदलते पर्यावरण, अधिक समृद्ध जीवन शैली और बढ़ते आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण को माना जाता है। साथ ही ये आंत के सूक्ष्मजीव को प्रभावित करता है और आनुवंशिक रूप से अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में इसके जोखिम को बढ़ाता है।
अधिक मांस, डेयरी उत्पादों, प्रोसेस्ड फूड्स, वनस्पति तेल, तंबाकू, चीनी वाले खाद्य पदार्थ, शराब और पश्चिमी आहार को आईबीडी का एक बड़ा कारण माना जा रहा है। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि धूम्रपान, निरोधक गोलियां, आहार, स्तनपान, एंटीबायोटिक दवाओं, टीकाकरण, संक्रमण और स्वच्छता सभी इसके कारण हैं। शहरी मनोदैहिक कारक जैसे कि अवसाद, तनाव और नींद की गड़बड़ी इस बीमारी के बढ़ने में भी भूमिका निभाते हैं।
कुछ आदतें बड़ी समस्याओं का कारण बन सकती हैं। जब वे आपको अच्छा महसूस करवाती हों, तो उन्हें बदलना और भी मुश्किल हो सकता है। लेकिन जब आप पहले से ही आईबीडी से ग्रसित हों, तो आपके पास इन आदतों को बदलने के अलावा और कोई चारा नहीं है। इसलिए, जीवनशैली में बदलाव, आईबीडी के लक्षणों को रोकने और नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
स्वस्थ वजन बनाए रखना, नियमित रूप से व्यायाम करना, स्वस्थ आहार लेना और धूम्रपान न करना- आईबीडी के जोखिम को कम कर सकता है। एक बार जब यह किसी को हो जाता है, तो उपचार के लिए दवाएं ही काम आती हैं। लेकिन, जीवनशैली में बदलाव, तनाव में कमी, नियमित व्यायाम और पर्याप्त नींद लेना आपको IBD से बचने में मदद करेगा।
यदि आहार और जीवन शैली में परिवर्तन, IBD को नहीं रोक पाते हैं, तो आपका डॉक्टर आपको सर्जरी करने का सुझाव दे सकता है।
दुर्भाग्य से, भारत में आईबीडी के बारे में बहुत कम जागरूकता है। बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि जीवनशैली में बदलाव आईबीडी को रोकने में मदद करते हैं।
ये बीमारी, रोगी के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। यह बीमारी एक व्यक्ति को सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और वित्तीय तौर पर निचोड़ कर रख देती हैं। प्रारंभिक सलाह और चिकित्सा सहायता लेने से व्यक्ति और उसके परिवार को बीमारी के तनाव से बचाया जा सकता है। आईबीडी आपके जीवन को प्रभावित करता है पर अच्छे खान पान और जीवनशैली में किये गये कुछ मामूली बदलावों से इसका खतरा टल सकता है|
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