हड्डियों का विकास उम्र के साथ होने लगता है। बच्चों और बड़ों की ऑर्थोपेडिक देखभाल में स्पष्ट अंतर हैं। बच्चों की हड्डियों के विकास की क्षमता, चोटों के प्रकार और तेजी से उबरने की शक्ति उनके इलाज को वयस्कों के उपचार से अलग करती है। जबकि बड़ों अर्थात वयस्कों की बोन इंजरी के उपचार में हड्डियों की स्थिरता, उम्र से संबंधित बीमारियां, और पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इस विकासात्मक अंतर के कारण दोनों के इलाज और देखभाल में खास बदलाव किए जाते हैं। यहां हम बच्चों की हड्डियां और उनमें लगने वाली चोटों के अंतर को समझते हुए उपचार के बारे में बात कर रहे हैं।
देखा जाए, तो बच्चों की ऑर्थोपेडिक (pediatric orthopedics) देखभाल और बड़ों की देखभाल के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं। ये अंतर मुख्य रूप से बच्चों की हड्डियों के विकास और बड़ों की स्थिर हड्डियों की स्थिति के कारण होते हैं। बच्चों की हड्डियां लगातार बढ़ रही होती हैं, जबकि बड़ों की हड्डियां पूरी तरह से विकसित हो चुकी होती हैं।
अधिकतर बच्चों की हड्डियों के सिरों पर ग्रोथ प्लेट्स मौजूद होते हैं, जो हड्डियों की लंबाई और आकार बढ़ाने का काम करते हैं। ये प्लेट्स चोट के प्रति संवेदनशील होती हैं। यदि इन पर सही समय पर ध्यान न दिया जाए, तो यह हड्डियों की बढ़त को प्रभावित कर सकती हैं। ग्रोथ प्लेट्स पर चोट लगती है तो इससे बच्चे के विकास में बाधा पहुंच सकती है। कभी-कभी हड्डी के असमान विकास का खतरा भी हो सकता है। जबकि वयस्कों में ग्रोथ प्लेट्स बंद हो चुकी होती हैं (pediatric orthopedics)। इसलिए उनके इलाज में इस पहलू पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती।
अमूमन बच्चों की हड्डियाँ अधिक लचीली और तेज़ी से जुड़ने वाली होती हैं। इनके ऊतक (tissues) और हड्डियों में उच्च रक्त संचार और तेज़ चयापचय होता है, जो फ्रैक्चर के जल्दी ठीक होने में मदद करता है। इसके अलावा, बच्चों की हड्डियां स्वाभाविक रूप से अपना आकार बदलने में सक्षम होती हैं। कई मामलों में, हल्की विकृतियां समय के साथ स्वयं ठीक हो जाती हैं।
दूसरी ओर देखा जाए तो, बड़ों की हड्डियां कठोर होती हैं और उनकी चयापचय दर धीमी होती है। हड्डियों के फ्रैक्चर या विकृतियों के इलाज के लिए अक्सर सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है (pediatric orthopedics)।
बच्चों में चोटों का पैटर्न अलग होता है। बच्चों की हड्डियां पूरी तरह से नहीं टूटतीं, वे केवल एक ओर से मुड़ जाती हैं (pediatric orthopedics)।
स्थायी रूप से झुक जाती है लेकिन टूटती नहीं है। बड़ों में ऐसी चोटें कम होती हैं।
चोट का खतरा बढ़ते बच्चों में बना रहता है। यह बच्चों में सामान्य है। बड़ों के मामलों में लिगामेंट और सॉफ्ट टिशू (soft tissue) की चोटें अधिक होती हैं। क्योंकि उनकी हड्डियां कठोर और लचीलेपन से रहित होती हैं।
क्लबफुट (Clubfoot) जिसमें पैर अंदर की ओर मुड़ जाता है (pediatric orthopedics vs general orthopedics) । डेवलपमेंटल डिस्प्लेसिया ऑफ हिप (Developmental Dysplasia of the Hip), जिसमें हिप जॉइंट ठीक से विकसित नहीं होता। स्कोलियोसिस (Scoliosis) रीढ़ की हड्डी का असामान्य रूप से मुड़ना। लेग-कैल्वे-पर्थेस रोग (Legg-Calve-Perthes Disease) बच्चों की हड्डी के सिर में रक्त प्रवाह की कमी।
बड़ों में मुख्य रूप से ऑस्टियोआर्थराइटिस (osteoarthritis), रूमेटाइड आर्थराइटिस (rheumatoid arthritis), और स्पाइनल स्टेनोसिस (spinal stenosis) जैसी बीमारियाँ होती हैं, जो उम्र और पहनावे (wear and tear) के कारण होती हैं।
सर्जरी के माध्यम से इलाज के साथ-साथ हड्डियों की बढ़त को बाधित होने से रोका जा सकता है। बच्चों की सर्जरी को उनकी सुविधा के अनुसार किया जाता है। दूसरी ओर, बड़ों की सर्जरी आमतौर पर जटिल होती है। जैसे जॉइंट रिप्लेसमेंट, फ्रैक्चर का पुनर्निर्माण, पुनर्वास और रिकवरी।
ज्यादातर मामलों में बच्चों का शरीर चोटों से जल्दी उबरता है। उनकी हड्डियां जल्दी ठीक होती है। बच्चों के लिए रीहेबिलीटेशन में खेल और गतिविधियाँ शामिल की जाती हैं ताकि वे इसे खुशी-खुशी करें। रीहेबिलीटेशन की प्रक्रिया बड़ों में लंबी और अधिक तीव्र हो सकती है। अक्सर फिजियोथेरेपी और जीवनशैली में बदलाव के साथ होती है।
देखभाल में बच्चों के और माता-पिता दोनों से उम्र के अनुसार संवाद करना ज़रूरी है। बच्चों को अक्सर चिकित्सा प्रक्रियाओं का डर होता है, इसलिए डॉक्टरों को उनके डर को कम करने के लिए संवेदनशीलता दिखानी पड़ती है।
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