वायु प्रदूषण के चलते स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं और दुनियाभर में यह बड़ी संख्या में मौतों का कारण भी बन रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल करीब 4.2 मिलियन मौतें आउटडोर एयर पॉल्यूशन (Outdoor Air Pollution) की वजह से होती है। मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि घरेलू प्रदूषण (Indoor Pollution) भी स्वास्थ्य के लिए उतना ही घातक हो सकता है।
करीब 2.6 बिलियन लोग घरों को गरम करने और खाना पकाने के लिए खुले में आग या साधारण स्टोव्स जलाते हैं। जिसके लिए बायोमास (लकड़ी, उपले और फसलों की पराली आदि) तथा कोयले का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार के ईंधन और टैक्नोलॉजी से घरों के भीतर वायु प्रदूषण बढ़ता है और सेहत के लिए भी ये प्रदूषक नुकसानदायक होते हैं।
इनकी वजह से उत्पन्न होने वाले महीन प्रदूषक कण फेफड़ों (Lungs) में जाकर नुकसान पहुंचाते हैं। इसी तरह, जो घर हवादार नहीं होते उनमें घरों के अंदर पैदा होने वाले धुंए से उत्पन्न महीन कण स्वीकृत सीमा से 100 गुना अधिक हो सकते हैं।
यह भी देखा गया है कि वायु प्रदूषण आबादी के उन वर्गों के लिए खतरनाक है, जो किसी न किसी वजह से कमजोर हैं, जैसे कि महिलाएं, बच्चे और प्रौढ़/बुजुर्ग। इन वर्गों के लिए इंडोर प्रदूषण इसलिए भी ज्यादा नुकसानदायक होता है, क्योंकि भारत में यह अधिकांश समय घरों में बिताते हैं। इस तरह उनका एक्सपोज़र अधिक होता है।
घरों के भीतर वायु प्रदूषण से बच्चों में निमोनिया का जोखिम दोगुना हो जाता है। यह 5 साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया से होने वाली 45% मौतों का जिम्मेदार है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, हर साल करीब 3.8 मिलियन लोग ऐसे रोगों की वजह से असामयिक मौतों का शिकार बनते हैं, जो खाना पकाने के लिए अक्षम ईंधनों के इस्तेमाल से पैदा होने वाले वायु प्रदूषण के कारण पनपते हैं। इन मौतों में शामिल हैं:
27% मौतें निमोनिया के कारण
18% स्ट्रोक के कारण
27% हृदय रोगों के कारण
20% क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनेरी डिज़ीज (सीओपीडी) के कारण
8% फेफड़ों के कैंसर के कारण
घरों के अंदर जलाए जाने वाले ईंधन से पैदा होने वाले प्रदूषक कण और अन्य प्रदूषक तत्वों से श्वसन मार्ग तथा फेफड़ों में सूजन हो सकती है, प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर पड़ता है और साथ ही, रक्त की ऑक्सीजन वाहक क्षमता भी प्रभावित होती है।
इंडोर वायु प्रदूषण और जन्म के समय नवजात का सामान्य से कम वज़न, तपेदिक, मोतियाबिंद, नैसोफैरिंगल एवं लैरिंगल कैंसर के बीच भी संबंध देखा गया है।
भारत चूंकि अभी भी एक विकासशील देश है, यहां बड़ी संख्या में लोग अब भी ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। इन सभी स्थानों पर क्लीन फ्यूएल (Eco friendly fuel) आसानी से उपलब्ध नहीं होता। इन जगहों पर अधिकांश लोग ऐसा नॉन-क्लीन फ्युएल इस्तेमाल करते हैं, जिसकी वजह से घरों के अंदर प्रदूषण बढ़ता है।
खाना पकाने के लिए ईंधन का इस्तेमाल करने वाले 0.2 बिलियन लोगों में से 49% लकड़ी, 8.9% उपलों, 1.5% कोयले, लिग्नाइट या चारकोल, 2.9% मिट्टी तेल, 28.6% लिक्वीफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी), 0.1% बिजली, 0.4% बायोगैस तथा 0.5% अन्य साधनों का प्रयोग करते हैं।
बायोमास आधारित ईंधन की अधूरी ज्वलन प्रक्रिया के चलते हवा में टंगे रहने वाले महीन प्रदूषक कण (Particulate Matter), कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon Monoxide) , पोलीएरोमेटिक हाइड्रोकार्बन्स (Polyaromatic hydrocarbons) , पोलीऑर्गेनिक मैटर (poly organic matter), फॉरमेल्डीहाइड (formaldehyde) आदि पैदा होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं।
इंडोर एयर पॉल्यूशन (Indoor Air Pollution) के प्रतिकूल प्रभावों की वजह से हर साल करीब 2 मिलियन लोग असामयिक मौत का शिकार बनते हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित समूहों में महिलाएं और कम उम्र के बच्चे शामिल हैं क्योंकि वे ही सबसे ज्यादा समय घरों में बिताते हैं।
इंडोर वायु प्रदूषण (Indoor air pollution) के परिणामस्वरूप श्वसन संबंधी विकार जैसे कि एक्यूट रेस्पीरेट्री ट्रैक्ट इंफेक्शन, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज (सीओपीडी), अस्थमा का गंभीर रूप लेना, ब्लड प्रेशर बढ़ना, तपेदिक की गंभीरत के बढ़ते मामले, उम्र के साथ मोतियाबिंद बढ़ना, आंशिक या पूर्ण नेत्रहीनता, इस्केमिक हृदय रोग, स्ट्रोक, प्रसवोपरांत सामने आने वाली परेशानियां जैसे कि जन्म के समय कम वज़न या मृत शिशु पैदा होना, नैसोफैरिंक्स, लैरिंक्स, लंग कैंसर और ल्युकीमिया आदि।
इस परिप्रेक्ष्य में यह जरूरी है कि हम इंडोर प्रदूषण को भी उतनी ही गंभीरता से लें जितना कि बाहरी वायु प्रदूषण को लेकर चिंतित होते हैं। इस मामले में तत्काल कोई उपाय करना जरूरी है। ऊर्जा और खाना पकाने संबंधी लोगों के तौर-तरीकों तथा फैसलों को प्रभावित करने के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृति तथा वित्तीय कारण हैं।
घरों के भीतर वायु प्रदूषण के नुकसानदायक प्रभावों के बारे में आम जनता को जागरूक बनाना ।ईंधन के इस्तेमाल और ईंधन साधनों के डिजाइन आदि में बदलाव।
घरों को हवादार बनाना (वेंटिलेशन में सुधार)।
अलग-अलग क्षेत्रों के बीच तालमेल बढ़ाना जैसे कि स्वास्थ्य, आवास, पर्यावरण, ऊर्जा और ग्रामीण विकास प्राधिकरणों के स्तर पर परस्पर सहयोग।
इस बुराई को दूर करने/नियंत्रण के लिए वैश्विक स्तर पर पहल।
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