डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) आजीवन जारी रहने वाली स्वास्थ्य स्थिति है और यह जन्मजात होती है। डाउन सिंड्रोम से प्रभावित लोगों में एक क्रोमोसोम अतिरिक्त होता है। इन बच्चों को जीवनभर मेडिकल तथा लर्निंग से जुड़ी समस्याएं पेश आती हैं।
इस सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को नियमित रूप से हेल्थकेयर की जरूरत पड़ती है। ऐसे बच्चों को पालना किसी भी पेरेन्ट के लिए वाकई चुनौतीपूर्ण होता है। डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों के पेरेन्ट्स को भली-भांति और सेहतमंद तरीके से बच्चों की देखभाल के लिए निम्न क्षेत्रों में ध्यान देना चाहिए:
डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में कुछ छोटे आकार के होते हैं। उनका विकास भी धीमी गति से होता है। छोटे आकार के होने के बावजूद उनका वज़न काफी तेज़ी से बढ़ता है। पेरेन्ट्स को यह ध्यान रखना होता है कि बच्चों का वज़न ज्यादा न बढ़ने पाए। इसलिए उन्हें बच्चों को शारीरिक व्यायाम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए तथा उन्हें अधिक कैलोरीयुक्त भोजन पर नियंत्रण रखना चाहिए।
इन बच्चों के विकास पर नियमित रूप से 2,4, 6, 9 12, 15, 18 और 24 महीने की आयु में और फिर वयस्कता के दौरान साल में एक बार अवश्य निगरानी करनी चाहिए।
इन बच्चों की इम्युनिटी काफी कमज़ोर होती है, इसलिए उन्हें कुछ ऐसे रोगों से बचाव के टीके, सलाह-मश्विरा और नियमित अंतराल से लेने चाहिए जिससे बचाव हो सके। इनमें हर साल दी जाने वाली फ्लू वैक्सीन भी शामिल है।
अपने बच्चे की दिल के रोगों की जांच भी करवाएं और यदि कोई विकार सामने आए, तो नियमित इको तथा चेक अप जरूरी है। डाउन सिंड्रोम से प्रभावित करीब पचास फीसदी बच्चों में हृदय विकार होते हैं। लेकिन ऐसे कुछ विकारों में इलाज संभव होता है।
डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों में थायराइड हार्मोन की कमी हो सकती है। जन्म के समय, 6 महीने, 12 महीने और इसके बाद हर साल टीएसएच जांच करानी चाहिए। यदि जरूरी हो तो हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी भी शुरू की जा सकती है।
कुछ बच्चों को टाइप1 डायबिटीज़ भी हो सकता है। इंसुलिन थेरेपी से लक्षणों और जटिलताओं को नियंत्रित किया जा सकता है।
ये बच्चे श्रवण विकारों से भी ग्रस्त हो सकते हैं। इसलिए जन्म पर, 6 माह के होने पर और उसके बाद हर साल कानों की जांच भी अवश्य करवाएं। करीब 80 प्रतिशत बच्चों में सुनने की किसी न किसी प्रकार की समस्या होती है और उन्हें हियरिंग एड्स की आवश्यकता हो सकती है।
अधिकांश बच्चों में दृष्टि संबंधी विकार, जैसे नज़दीक या दूर की नज़र में दोष होना या एस्टिगमेटिज़्म हो सकता है। इसके लिए नियमित रूप से आंखों की जांच करवाना आवश्यक है।
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कस्टमाइज़ करेंडाउन सिंड्रोम से ग्रस्त लगभग सभी बच्चों में बौद्धिक विकास अवरुद्ध होता है, लेकिन इसकी डिग्री अलग-अलग हो सकती है। इसलिए विकास संबंधी सेवाओं की मदद लें। आरंभिक हस्तक्षेप के प्रोग्राम लाभकारी हो सकते हैं।
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डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त कुछ बच्चों में स्पाइन या नैक बोन्स की समस्या हो सकती है। हर दिन व्यायाम उनके लिए जरूरी होता है। यदि निम्न में से कोई समस्या दिखे, तो अपने बच्चों को डॉक्टर के पास ले जाएं-
1 गर्दन में कड़ापन या दर्द होना
2 मल/पेशाब के पैटर्न में बदलाव
3 चलने में बदलाव
4 बांह और पैरों के इस्तेमाल में बदलाव
5 सिर का झुकना
6 बांह या पैरों का सुन्न पड़ना
डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों को रात में सोने में परेशानी हो सकती है। खासतौर से कम मांसपेशियों वाले बच्चों में यह समस्या ज्यादा होती है। इसलिए 4 साल की उम्र में स्लीप स्टडी करवाएं।
कम इम्युनिटी की वजह से इन बच्चों को बार-बार संक्रमण, अक्सर बुखार रहने या अन्य लक्षणों की समस्या रहती है। इसलिए मेडिकल सलाह लें ताकि समय पर उपचार शुरू किया जा सके।
अपनी बच्ची को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में सिखाएं और मासिक धर्म संबंधी साफ-सफाई की जानकारी भी दें। डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त लड़कियां गर्भवती हो सकती हैं। इसलिए बच्ची को सेक्स के बारे में जानकारी दें।
24 माह की उम्र से इन बच्चों के खानपान, शारीरिक गतिविधियों, कैलोरी की खपत आदि पर ध्यान दें। कैल्शियम तथा विटामिन सेवन पर निगरानी रखें।
हालांकि अगली गर्भावस्था में डाउन सिंड्रोम के दोबारा होने की संभावना कम होती है, लेकिन जरूरी है कि आप आनुवांशिकी विशेषज्ञ से सलाह करें।
नियमित आधार पर स्वास्थ्य जांच और उचित उम्र पर हस्तक्षेप से, डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे के पेरेंट ऐसे बच्चों के विकास और शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य का भरपूर ध्यान रख पाते हैं।
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