अनियमित खानपान से लेकर शरीर में तनाव का स्तर बढ़ने तक कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उन्हीं में से एक है थायराइड, जो लाइफस्टाइल डिसऑर्डर है। जब थायराइड ग्लैंड उचित मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है, तो इस समस्या का सामना करना पड़ता है। दरअसल, गर्दन के सामने एंडोक्राइन ग्लैंड मौजूद होता है जो हार्मोन उत्पन्न करता है और अन्य अंगों को नियंत्रित करता है। जानते हैं थायराइड की समस्या स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती है (thyroid affects on health) ।
थायरोक्सिन टी 3 और ट्राईआयोडोथायोनिन टी 4 थायराइड हार्मोन में शामिल हैं। ये हार्मोन चयापचय प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। वे शरीर में ऊर्जा के उपयोग को बनाए रखने में मदद करते हैं। ये हृदय गति से लेकर पाचन तक सब कुछ प्रभावित करते हैं।
थायराइड हार्मोन की अधिकता या कम उत्पादन इस समस्या का कारण साबित होता है। थायराइड हार्मोन के अधिक उत्पादन को हाइपरथायरायडिज्म कहा जाता है। वही थायराइड हार्मोन के कम उत्पादन को हाइपोथायरायडिज्म के रूप में जाना जाता है। थायराइड ग्रंथि गर्दन पर स्थित एक तितली के आकार का अंग है। शरीर में इसकी नियमित मात्रा जहां मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करती है, तो वही ऊर्जा के स्तर और समग्र स्वास्थ्य को नियंत्रित करने में मदद करता है।
पुरूषों की तुलना में महिलाओं में थायराइड के मामले अधिक देखने को मिलते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार दक्षिण भारत में युवा महिलाओं में थायरॉयड डिसफंक्शन की समस्या आमतौर पर देखने को मिल रही है। यहां हर आठ में से एक युवा महिला थायरॉयड डिसफंक्शन का शिकार है। महिलाओं में पुरुषों की तुलना में ये समस्या 11.4 फीसदी अधिक पाई गई। हांलाकि सबक्लीनिकल हाइपोथायरायडिज्म का प्रचलन उम्र के साथ बढ़ता गया।
आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में एंडोक्रिनोलॉजी प्रमुख डॉ. धीरज कपूर बताते हैं कि थायराइड हार्मोन शरीर में मेटबॉलिज्म को मेंटेन करने में मदद करता है। मगर शरीर में इसकी कमी फूड डाइजेस्ट करने की कपेसिटी को घटा देती है और उसे फैट में कनवर्ट कर देती है। इससे वेटगेन का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा शरीर में कमज़ोरी महसूस होने लगती है। वे महिलाएं, जो गर्भवती है, उसमें फीटस डेवलपमेंट में समस्या बढ़ने लगती है। इस समस्या से बचने के लिए व्यायाम करें और डाइट को नियंत्रित रखने की भी आवश्यकता है।
अपर्याप्त थायरॉइड हार्मोन से हृदय की गति धीमी होने लगती है। इससे धमनियों का लचीलापन कम होने लगता है। साथ ही शरीर में रक्त का संचार प्रभावित होता है, जिससे ब्लडप्रेशर बढ़ने लगता है। हाई कोलेस्ट्रॉल स्तर आर्टरीज़ का संकुचित और कठोर बनाता है। इससे शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने लगती है।
हाइपोथायरायडिज्म में थायरॉयड ग्रंथि भरपूर मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है। मासिक धर्म अनियमित हो सकता है और ब्लड फ्लो भी प्रभावित होता है, जिससे कंसीव करने की क्षमता में गिरावट आने लगती है। वहीं हाइपरथायरायडिज्म में अतिसक्रिय थायरॉयड ग्रंथि के कारण समय से पहले गर्भपातए अनियमित मासिक धर्म चक्र और पेरामेनोपॉल की समस्या बढ़ सकती है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार डायबिटीज़ और थायरॉयड एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। दरअसल, शरीर में थायराइड हार्मोन का उचित स्तर कार्बोहाइड्रेट मेटाबॉलिज्म और पेनक्रियाटिक फंक्शन को रेग्यूलेट करने में मदद करता है। मगर हार्मोन की कमी या उच्च स्तर शरीर में डायबिटीज़ के खतरे को बढ़ा देता है और ब्लड शुगर लेवल को मैनेज करने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।
थायरॉयड रोग इंसुलिन के उत्पादन में भी बाधा डालता है। इंसुलिन ब्लड सेल्स को ऊर्जा प्रदान करने के लिए ग्लूकोज का उपयोग करने में सक्षम बनाता है। इससे ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित बना रहता है।
डॉ. पी वेंकट कृष्णन बताते हैं कि शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी बढ़ने से बॉडी की प्रोडक्टीविटी में कमी आने लगती है। साथ ही शरीर में थकान बनी रहती है। इसके अलावा फूड को डाइजेस्ट करने की क्षमता में गिरावट आने लगती है, जिससे वो फैट्स के रूप में एकत्रित होने लगता है। इससे शरीर में चर्बी जमा होने लगती है, जिससे वज़न बढ़ने लगता है।
महिलाओं में पहली तिमाही में थायराइड की जांच करवाई जाती है। दरअसल, शरीर में इसकी कमी बढ़ने से बच्चे की ग्रोथ में बाधा उत्पन्न होने लगती है। इससे बच्चे में लो आईक्यू स्तर का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित करता है। शरीर में हार्मोनल असंतुलन मिसकैरेज का भी कारण साबित होता है।
शरीर में जमा कैलोरीज़ के स्तर को कम करने के लिए व्यायाम की मदद लें। इससे फैट्स को बर्न करके शरीर में हेल्दी वेट मैनेजमेंट में मदद मिलती है। महिलाओं को वेट ट्रेनिंग और हाई इंटैसिटी एक्सरसाइज़ करने की सलाह दी जाती है। इससे हड्डियों की मज़बूती बढ़ती है और थकान कम होती है।
आहार को लेकर सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। डॉ पी वेंकट बताते हैं कि अपनी मील में आयोडाइज्ड नमक शामिल करें। इसके अलावा पत्ता गोभी और फूल गोभी के अत्यधिक सेवन से बचें। साथ ही मौसमी फलों को अपने आहार में अवश्य शामिल करें। जंक फूड से दूरी बनाकर रखें और मील को समय पर लें।
जांच के बाद डॉक्टर की ओर से सुझाई गई दवाओं का सेवन करें। इसके अलावा हर 3 से 6 महीने में शरीर में थायराइड के स्तर की जांच अवश्य करवाएं। इससे समस्या से राहत पाने में मदद मिलती है और उसके कारणों को दूर किया जा सकता है।
वे लोग जो रोज़ाना स्मेकिंग करते हैं और कैफीन का सेवन करते हैं, उनमें थायराइड हार्मोंस की कमी बढ़ने लगती है। दरअसल, सिगरेट के धुएं से थायोसाइनेट कंपाउड आयोडीन की मात्रा को शरीर में ब्लाक करता है। इससे थायराइड हार्मोन का उत्पादन कम होने लगता है।
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