सर्दी के मौसम में अक्सर लोग अपने आसपास गर्म वातावरण की तलाश में रहते हैं और हीट जनरेट करने के लिए अलाव और हीटर व ब्लोअर की मदद लेते है। ठंड से राहत पाने के लिए ये विकल्प बेहद कारगर साबित होते हैं, मगर इनका निरंतर इस्तेमाल स्वास्थ्य और त्वचा के अलावा ब्रेन फंक्शनिंग के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकता है। इससे जहां कार्यक्षमता प्रभावित होती है, तो वहीं नींद न आने की समस्या भी बढ़ने लगती है। जानते हैं कमरे का तापमान ब्रेन फंक्शनिंग को कैसे प्रभावित करता है और उसके स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव (room heater affects brain function)।
येल स्कूल ऑफ मेडिसिन के अनुसार मस्तिष्क में तापमान में बदलाव आने से न्यूरॉन्स का स्त्राव प्रभावित होता है। नर्वस सेल्स की लाइनिगं में मॉलिक्यूलर पंप होते हैं जो कोशिकाओं को ऊर्जा के साथ चार्ज करते हैं। इससे ब्रेन एक्टीविटी बूस्ट होती है। रिसर्च के अनुसार अगर ब्रेन सेल्स को चार्ज करने की तुलना में तेज़ी से गर्म किया जाता है, तो इसका असर न्यूरोनल गतिविधि पर दिखने लगता है। दरअसल, कमरे के तापमान में मामूली वृद्धि भी मस्तिष्क की गतिविधि को गहराई से बदल सकती है, जिसके ब्रेन पर निगेटिव इफेक्ट देखने को मिलते हैं।
मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि सर्दी में हीटर व ब्लोअर से कमरे का बढ़ा हुआ तापमान ब्रेन की फंक्शनिंग को पूरी तरह से प्रभावित करने लगता है। गर्म तापमान पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम की गतिविधियों को कम कर देता है।, पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम नर्वस का एक नेटवर्क है, जो शरीर में ऊर्जा संरक्षित करने से लेकर चयापचय को नियंत्रित करने समेत कई तरह से मदद करता है।
जब इसकी गतिविधियां कम होती है, तो ये सिस्टम तनाव झेलने में सक्षम नहीं हो पाता है। इससे कॉग्नीटिव फंक्शन यानि सोचने, समझने और देखने की क्षमता में भी कमी आने लगती है। इससे निश्चित रूप से कार्य कम करने की क्षमता और एकाग्रता कम होने लगती है। उदासी और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। साथ ही मूड स्विंग का सामना करना पड़ता है। लंबे वक्त तक इस समस्या से ग्रस्त रहने के चलते व्यक्ति डिप्रेशन में रह सकता है।
बढ़ा हुआ तापमान किसी भी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में बाधा का काम करता है। इससे कॉग्नीटिव स्किल्स प्रभावित होते है। चीजों को समझना, देखना और उन्हें जानने की जिज्ञासा में कमी आने लगती है। थकान और कमज़ोरी महसूस होती है, जिससे किसी कार्य के प्रति सतर्कता कम हो जाती है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ के अनुसार सर्दी में हीटर व ब्लोअर से कमरे का उच्च तापमान तनाव के स्तर को बढ़ा सकता है। रिसर्च के मुताबिक गर्मी से लोगों में अधिक चिड़चिड़ापन और एंग्ज़ाइटी देखने को मिलती है। ऐसे में कमरे के उच्च तापमान को बेचैनी और चिंता से जोड़कर देखा जाता है।
ठंड के मौसम में ब्लोअर या हीटर के कारण कमरे में ज्यादा गर्मी होने से शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में अधिक मशक्कत करनी पड़ती है। इस असुविधा का असर व्यवहार पर दिखने लगता है और लोगों में मूड स्विंग की समस्या बनी रहती है। इससे मन में उदासी और नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होने लगती हैं।
दिनभर में शरीर का तापमान बदलता रहता है। वहीं सोने के दौरान शरीर में रक्त वाहिकाओं का विस्तार होने लगता है, जिससे शरीर ठंडा होने लगता है। इस दौरान कमरा सामान्य से ज्यादा गर्म रहने से नींद में कमी आने लगती है। ये शरीर के आंतरिक तापमान में गिरावट को प्रभावित करता है और अनिद्रा का सामना करना पड़ता है।
ठंड के मौसम में कमरे का अधिक तापमानब्रेन को ओवरहीट करने लगता है, जिससे ब्रेन में रक्त का संचार बाधित होता है और ब्रेन फॉग की समस्या बढ़ने लगती है। इससे किसी कार्य पर फोकस करने और सुनने व समझने की क्षमता प्रभावित होने लगती है और सिर में भारीपन महसूस होता है। इसके चलते न्यूरोट्रांसमीटर के सामान्य कामकाज में बाधा आने लगती है। ये कॉग्नीटिव प्रोसेस के लिए फायदेमंद है। इसके लिए रूम टेम्परेचर को एडजस्ट करना आवश्यक है।
डॉ युवराज पंत बताते हैं कि ब्रेन फंक्शनिंग को सुचारू बनाए रखने के लिए कमरे का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस तक रखने से फायदा मिलता है। इससे व्यवहार में सकारात्मकता बनी रहती है और शरीर एक्टिव व हेल्दी रहता है।
ऐसे में जब शरीर का आंतरिक तापमान 38.5 डिग्री सेल्सियस तक रहता है है, तो उससे कॉगनीटिव हेल्थ प्रभावित होने लगती है। साथ ही मोटर स्किल्स में कमी आती है और न्यूरोलॉजिकल डैमेज का सामना करना पड़ता है।
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