2022 में ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट आई थी। भारत के लिए बहुत अच्छे आंकड़े नहीं थे उसमें। रिपोर्ट के अनुसार कुल 3 करोड़ 40 लाख अस्थमा से पीड़ित लोग भारत मे हैं। बच्चों की संख्या भी लाखों में है। इस रिपोर्ट की एक तस्वीर यह भी है कि दुनिया मे अस्थमा के जितने भी मरीज़ हैं, उनमें से 13 फीसदी केवल भारत से हैं। रिपोर्ट में कारणों का भी ज़िक्र था। जिनमें अस्थमा का देरी से निदान, बच्चों और बूढ़ों में अवेयरनेस की कमी, देरी से उपचार और दवाइयों का ज्यादा इस्तेमाल। कारणों में यह भी शामिल था कि भारत मे जो मेडिकल के ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट हैं, उन्हें अस्थमा का सही ट्रीटमेंट करना नहीं आता।
बहरहाल, इस रिपोर्ट की बात हमने इसलिए क्योंकि हम आज अस्थमा पर ही बात करने जा रहे हैं। अस्थमा के शुरुआती लक्षण (Early symptoms of Asthma) क्या हैं, बच्चों में अस्थमा को कैसे पहचानें (Asthma symptoms) और इलाज़ (Asthma treatment for children) क्या है? ये सब बातें हम आज डॉक्टर से समझेंगे.
अस्थमा एक सांस की बीमारी है, जिसमें लोगों को सांस लेने में परेशानी होती है। विज्ञान के अनुसार कहें तो यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज़ की सांस लेने वाली नलियों में सूजन हो जाती है, जिससे उनका सांस लेना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में लोग अक्सर सांस फूलने, सीने में जकड़न, खांसी और सांस के साथ घरघराहट की आवाज़ की शिकायत करते हैं।
सांस सम्बंधी रोगों के डॉक्टर दीपक चन्द्र श्रीवास्तव के अनुसार बच्चों और बड़ों दोनों के दमा के लक्षणों में कुछ समानताएं भी हो सकती हैं और कुछ अंतर भी। इसलिए बेहतर है कि इसे अलग- अलग तरह से ही समझा जाए।
बच्चों में अस्थमा का खतरा बड़ों के मुकाबले कई गुना अधिक होता है। पर्यावरण के प्रदूषण से ही बात शुरू करते हैं। अगर किसी बड़ी उम्र का व्यक्ति जिसे अस्थमा है तो वो शायद कुछ देर के लिए इसे झेल ले, लेकिन बच्चों में यह तुरन्त ट्रिगर का काम करेगा। इसके पीछे कारण ये है कि बच्चों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते।
नतीजतन अगर बच्चे अस्थमा के मरीज़ हैं तो प्रदूषण का असर उन पर तुरन्त होगा। परिवार में किसी को अगर अस्थमा है तो उसका असर बच्चों पर तुरन्त पड़ेगा, बड़ों के साथ ऐसा नहीं है। उनका शरीर पूरी तरह से प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुका होता है। बड़ों का अस्थमा स्मोकिंग जैसी आदतों के कारण भी होता है लेकिन बच्चों में यह जिनेटिक हो सकता है।
अकसर बार- बार होने वाले सर्दी जुकाम से बच्चों की सांस फूलती है, जिससे अस्थमा का खतरा बढ़ता है। बड़ों में इस बात के रेयर चांसेस हैं कि सर्दी जुकाम अस्थमा का कारण बने क्योंकि बड़ों का शरीर इस हद तक संवेदनशील नहीं होता।
सीढियां चढ़ते वक्त या खेलते वक्त अगर सांस फूलने लगे। खेल के आए बच्चे के आसपास ज़रूर रहें और अगर उसकी सांस फूलती दिखे तो डॉक्टर को दिखा दें।
रात में सोते वक्त या सुबह उठने पर अगर बच्चे को खांसी आ रही है तो ये भी अस्थमा का लक्षण हो सकता है।
बच्चे को अगर बार बार सर्दी जुकाम हो रहा है तो भी डॉक्टर को दिखा दीजिए क्योंकि यह भी अस्थमा के तमाम लक्षणों में से एक है।
अगर ठंडी हवा लगते ही बच्चे को घबराहट हो तो भी ये अस्थमा का लक्षण हो सकता है। इसे छोटी सी बात मानकर इग्नोर ना करिए।
अगर धूल या धुआं वाले इलाके में जाने पर बच्चे को तुरन्त खांसी आने लगे तो यह भी एक अस्थमा का ही लक्षण है।
अक्सर रात में सोते वक्त या सुबह उठते वक्त खूब खांसी आ रही हो तो भी ये अस्थमा हो सकता है। ध्यान इस बात का रखना है कि बड़ों में खांसी कॉमन होना भी अस्थमा का लक्षण है। यह कोई ज़रूरी नहीं कि खांसी रात को या सुबह ही आए।
सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आती हो खासकर सांस छोड़ते समय। मेहनत का काम करते वक्त या लगने पर सांस की आवाज़ अगर और तेज़ हो जाए तो डॉक्टर से सम्पर्क करिए।
नॉर्मली सांस लेने में कठिनाई हो या फिर सीढियां चढ़ने से,मेहनत का काम करने के दौरान अगर सांस लेने में कठिनाई हो तो यह अस्थमा का लक्षण हो सकता है। डॉक्टर को दिखा कर उचित इलाज कराइये।
सीने में दर्द होना भी अस्थमा का लक्षण हो सकता है और इसके साथ सांस लेने में समस्या भी होती है। या दबाव महसूस करने के साथ-साथ सांस लेने में कठिनाई भी हो सकती है।
अक्सर गले से बलगम निकलने लगे और खांसी बढ़ जाए और खांसी के साथ सांस लेने में भी दिक्कत हो तो ये अस्थमा का लक्षण हो सकता है।
ऐसा इलाका जो धूल और धुआं से प्रदूषित हो उस इलाके में तुरन्त खाँसी आने लगे और खांसी लगातार आए तो ये अस्थमा का ही लक्षण है।
डॉक्टर दीपक चन्द्र श्रीवास्तव के अनुसार, अस्थमा का इलाज़ परमानेंटली कर पाना मुश्किल है। हां यह ज़रूर है कि अगर बच्चों में यह समय से डायग्नोस कर लिया गया हो तो जड़ से मिटाया जा सकता है।बड़ों में यह अक्सर क्रॉनिक स्थिति बन जाती है जिसे मिटाना मुमकिन नहीं। बच्चों को हम अक्सर हल्की दवाएं और हल्का इनहेलर देते हैं। बड़ो के केस में हमें परमानेंट एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएं और इनहेलर देना पड़ता है।
1. बच्चे हों या बड़े, अगर अस्थमा के मरीज़ हैं तो उन्हें प्रदूषण से दूर रहना है। कभी भी बिना मास्क लगाए घर से नहीं निकलना।
2. कभी भी स्मोकिंग मत करिए। अगर बगल में कोई कर रहा हो तो उससे दूर हो जाइए।
3.दवाएं नियमित रखने से ही अस्थमा से बचाव किया जा सकता है,वरना ये हमेशा ट्रिगर करेगा।
4. घर में भी साफ सफाई रखें। धूल वाले गद्दे, तकिए और रजाई से दूर रहें। अस्थमा मरीज़ के सामने झाड़ू तक ना लगाएं।
5. बच्चों को खेलकूद से मत रोकें लेकिन खेलकूद के दौरान उनका ध्यान जरूर रखें। धूल का एक कड़ भी बच्चों में अस्थमा ट्रिगर कर देगा।
6. यदि आपको शक़ हो कि किसी चीज़ से कोई एलर्जी आपके अस्थमा को बार-बार ट्रिगर कर रही है तो तुरन्त एलर्जी टेस्ट करा लीजिये। और फिर उससे दूरी बरतिए।
7. कम मसालेदार खाना खाइए और पानी खूब पीजिए। हरी सब्जी खूब खाइए।
8. सांस फूलने के डर से व्यायाम मत छोड़िये, अगर व्यायाम करते वक्त सांस फूले तो डॉक्टर से पूछकर उनके बताए व्यायाम करिए।
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