बेली बाइंडिंग असल में भारत में बहुत समय से संस्कृति का हिस्सा रहा है। पुराने समय में एक सूती साड़ी को ऊपर रिब्स से लेकर नीचे हिप्स तक बांधा जाता था ताकि उनके गर्भ को सपोर्ट मिल सके। आज के समय में यही साड़ियों की जगह ले ली है इलास्टिक बेली रैप्स ने जो इस्तेमाल करने में ज्यादा आसान और असरदार हैं।
मेरे सीजेरियन डिलीवरी के बाद मुझे इस डर से दोनों हाथों से अपना पेट पकड़ के चलना पड़ता था कि कहीं मेरे सारे अंग मेरे टांकों से बाहर ना निकल आएं। C-सेक्शन के बाद चलना फिरना बहुत दर्दनाक होता है, लेकिन बेली रैप्स इस दर्द को कम करने में बहुत सहायक हैं।
अगर बेली बाइंडिंग को सही दबाव से किया जाए तो इससे पोस्टपार्टम खून के बहाव को भी कम किया जा सकता। बेली बाइंडिंग करने वाले मरीजों में अधिक हीमोग्लोबिन पाया गया है।
यही नहीं, यह C-सेक्शन की डिलीवरी का दर्द भी बहुत कम कर देता है।
लेकिन कई महिलाएं सोचती हैं कि बेली रैप को कस कर बांधने से उनका पेट कम होगा और उन्हें प्रेगनेंसी से पहले वाला फ्लैट बेली मिल जाएगा। किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले आइये जानते हैं कि इस बात में कितनी सच्चाई है।
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आपके एब्डोमेन के एरिया में एक मात्र हड्डी है स्पाइन। गर्भावस्था के दौरान बच्चे के एक्स्ट्रा वजन को सहारा देने के लिए आपकी स्पाइन बहुत मुड़ जाती है।
अगर बेली रैप से ठीक ठाक प्रेशर लगाया जाए तो आपकी स्पाइन को सही शेप में लाया जा सकता है।
हॉर्मोन रिलैक्सिन के कारण आपके लिगामेंट्स बिल्कुल ढीले हो गए होते हैं। और इन ढीले और रिलैक्स्ड लिगामेंट्स को सहारे की जरूरत होती है। बेली रैप का इस्तेमाल आपके लिगामेंट्स को प्रेगनेंसी से पहले वाली स्थिति में ले जाने में मददगार है।
जो मसल्स आपके एब्डोमेन में होती हैं, उन्हें ही एब्स कहते हैं। प्रेगनेंसी के दौरान इनपर बहुत स्ट्रेस पड़ता है। डिलीवरी से पहले या बाद में इनमें समस्या हो सकती है जिसे डीएस्टेसिस रैक्टाई कहा जाता है। बेली रैप बांधने से आप इन मांसपेशियों को हील होने का मौका देते हैं। यह टांकों की तरह ही काम करता है। जैसे टांके सिर्फ त्वचा को पास में पकड़ कर रखते हैं ताकि टिश्यू दोबारा बन सके, बेली रैप भी एब्स को ऐसे ही सपोर्ट देता है।
यही है बेली बाइंडिंग का सिद्धांत, यह शरीर को हील नहीं करती, बस हील करने के लिए सहारा देती है।
डिलीवरी के बाद कमर और पेट के कई टिश्यू बहुत सॉफ्ट होते हैं। बेली बाइंडिंग ना केवल उन सॉफ्ट टिश्यू को प्रेशर से अंदर धकेल कर पेट पतला करता है बल्कि उन्हें बाहर की ओर बढ़ने से भी रोकता है।
लेकिन, आपको सावधानी बरतनी है कि आप पेट पर कितना दबाव डाल सकती हैं और कितना डालना चाहिए।
कई महिलाएं पेट कम करने के लालच में बेली रैप को बहुत कस के बांधती हैं, जो बिल्कुल कॉर्सेट की तरह होता है। मेरे दिमाग में यही आता है कि जिस तरह पुराने समय में महिलाओं को ज्यादा खूबसूरत दिखने के लिए कॉर्सेट पहनाया जाता था, आज भी महिलाएं उस मानसिकता से बाहर नहीं आ सकी हैं। और यह दुखद है।
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कस्टमाइज़ करेंडिलीवरी के बाद का समय आपके शरीर को कष्ट देने के लिए नहीं बल्कि उसकी देखभाल के लिए है। इस वक्त किसी को भी अच्छा दिखने के लिए खुद को परेशान नहीं करना चाहिए। और यही नहीं, अधिक दबाव डालने से यूटेरस पर प्रभाव पड़ता है और यूटेरस प्रोलैप्स का जोखिम बढ़ जाता है।
ऐसा होने पर यूटेरस सर्विक्स और वेजाइना की ओर झुक जाता है और गम्भीर केस में यूटेरस निकालना भी पड़ता है। यह अत्यधिक प्रेशर पेट को भी धकेल देता है जिससे आजीवन गैस और एसिडिटी की समस्या हो सकती है।
1. बच्चे के जन्म के एक या दो दिन बाद घर का कोई व्यक्ति आपके पेट पर साड़ी बांध सकता है
C-सेक्शन वाली माओं को जल्दी ही बाइंडिंग शुरु कर देनी चाहिए क्योंकि टांकों की वजह से चलने में बहुत समस्या होती है। यह मां को पहले कुछ दिनों में तय कर लेना चाहिए कि वह कितना दबाव सही से झेल सकती है।
2. अगर घर में कोई मदद के लिए नहीं है तो इलास्टिक बेली रैप मंगा लें
बाइंडर को बिस्तर पर फैलाएं और उसके ऊपर लेट जाएं। पेट और निचले एब्डोमेन को कवर करते हुए इसे बांध लें। लेते हुए बांधने से फिटिंग सही आती है।
3. प्रेशर सहने योग्य होना चाहिए
हमेशा ध्यान रखें अत्यधिक प्रेशर नहीं डालना है। पहले महीने में कम से कम 8 से 10 घण्टे इसे बांधें।
4. साथ में केगल एक्सरसाइज भी करें
नार्मल डिलीवरी हुई है तो आपके पेल्विक फ्लोर मसल्स ढीले पड़ जाते हैं। बेली बाइंडर का प्रेशर भी नीचे की ओर ही होता है।
ऐसे में केगल एक्सरसाइज करने से आपकी मसल्स टोन होंगी और फिर से मजबूत हो जाएंगी। डिलीवरी के बाद आपको सिर्फ यही एक्सरसाइज कई दिन तक करनी है।
इसके लिए बस अपने पेल्विक फ्लोर मसल्स को सिंकोड़ें और 10 सेकंड बाद रिलैक्स करें। इसे दिन में 3 बार 5-5 रेपेटीशन से करें।