थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी जिसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है क्योंकि यह एक रेयर डिजीज है। जागरूकता की कमी होने के कारण लोगों को इसके लक्षणों के बारे में और इसके कारण के बारे में जानकारी नहीं है। जिसके चलते वह अपने बच्चों में इसके लक्षण समझ नहीं पहचान पाते और वक्त रहते उन्हें इलाज नहीं मिल पाता। थैलेसीमिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर है ऐसे में इसके बारे में समझना और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।
आज रेयर डिजीज डे पर हेल्थशॉट्स आपको थैलेसीमिया के बारे में हर छोटी जानकारी दे रहा है। लेकिन चलिए पहले इंटरनेशनल रेयर डिजीज डे के बारे में कुछ बातें जान लेते हैं।
हर साल 28 फरवरी के दिन रेयर डिजीज डे मनाया जाता है ताकि लोगों को ऐसी बीमारी के बारे में जागरूक किया जा सके जिससे दुनिया भर में 300 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हैं। रेयर डिजीज डे की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि ऐसे 7000 से ज्यादा स्थितियां हैं जिनके बारे में लोगों को जागरूक करने की बहुत आवश्यकता है। इस साल यानी 2022 में International rare disease की थीम “शेयर योर कलर रखी गई हैं।
थैलेसीमिया भी एक ऐसी ही रेयर डिजीज है। जो है तो रेयर लेकिन जानलेवा भी साबित हो सकती है। थैलेसीमिया के बारे में विस्तार से समझने के लिए हमने डॉ विकास दुआ, निदेशक, बाल चिकित्सा हेमेटोलॉजी, हेमेटो – ऑन्कोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम से स्पार्क किया।
डॉ विकास दुआ बताते हैं, “थैलेसीमिया एक डिसऑर्डर है जिसमें 6 महीने की उम्र से ही बच्चे को खून चढ़ता है। इस बीमारी में शरीर हिमोग्लोबिन का असामान्य रूप बनाता है।हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में प्रोटीन अणु है जो ऑक्सीजन ले जाता है। थैलेसीमिया रोग विरासत में मिलता है। जिसका अर्थ है कि आपके माता-पिता में से कम से कम एक विकार का वाहक होता है। यह या तो एक आनुवंशिक उत्परिवर्तन या कुछ प्रमुख जीन अंशों के विलोपन के कारण से होता है।”
डॉ विकास दुआ कहते हैं की 6 महीने बाद बच्चे में लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। लक्षणों की बात की जाए तो हर मरीज में थैलेसीमिया के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं हालांकि कुछ आम लक्षणों में शामिल है :
डॉ विकास दुआ कहते हैं कि आज के वक्त में थैलेसीमिया का इलाज पूरी तरह संभव है लेकिन तब ही जब वक्त रहते इसका इलाज कराने का प्रयास किया जाए। वह बताते हैं, “अगर वक्त रहते बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए बच्चे का इलाज कर दिया जाए तो एक अच्छा जीवन जी सकता है। अन्यथा उसको पूरे जीवन ब्लड चढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है। जिसके कारण खून में आयरन की मात्रा बढ़ जाती है जान को जोखिम हो सकता है।”
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