कोरोना संक्रमण के बाद भी कई तरह के संक्रमणों का जोखिम बना हुआ है। इसी बीच ‘लाइम डिजीज’ नामक संक्रमण के केस भारत में भी मिलने की बात सामने आई थी। तभी से ‘लाइम डिजीज’ (Lyme disease) से जुड़ी कोई न कोई जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आती रहती है। असल में हरी घास अथवा नमी युक्त प्राकृतिक माहौल में पाए जाने वाले टिक्स के काटने से लाइम डिजीज हो सकती है। शुरुआत में भले ही ये मच्छर के काटने जैसा लगे, मगर गंभीर होने पर आर्थराइटिस का भी कारण बन सकती है।
लाइम डिजीज एसोसिएशन की मानें तो यह संक्रमण दुनिया के 80 प्रतिशत देशों तक पहुंच चुका है। हालांकि यह संक्रमण किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नही फैलता। पर फिर भी समय रहते सावधानी बरतने और लक्षण समझने की आवश्यकता है।
लाइम डिजीज पर गहनता से जानने के लिए हमने बात की पारस हॉस्पिटल ( गुरुग्राम) के इंटरनल मेडिसिन के एचओडी डॉ आर.आर दत्ता से।
लाइम रोग एक प्रकार का संक्रमण है, जो बोरेलिया बैक्टीरिया वाले टिक के काटने से फैलता है। यह संक्रमण किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता, लेकिन इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति पर समय से ध्यान पर ध्यान न दिया जाए, तो यह शरीर के अन्य हिस्सों को तेजी से प्रभावित करने लगता है। घास और जंगली इलाकों में पाए जानें वाले टिक्स के संपर्क में आने से यह बीमारी फैलती है।
एक्सपर्ट के मुताबिक टिक्स के काटने पर शुरूआत में काटने वाले स्थान पर गांठ बन जाती है। लेकिन जब इस गांठ पर खुजली होने लगती है, तब इस बीमारी की शुरुआत होती है।
लाइम रोग की समस्याओं पर बात करते हुए डॉ आर.आर दत्ता कहते हैं कि लाइम रोग से ग्रसित होने के कारण मरीज में आर्थरायटिस, कॉग्निटिव समस्याएं, क्रोनिक थकान और यहां तक कि नींद की समस्या जैसे कई लॉन्ग टर्म लक्षण देखने को मिल सकते हैं।
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कस्टमाइज़ करेंहाल ही में सामने आए शोधों के अनुसार लाइम रोग की मुख्य तौर पर तीन स्टेजेस होती हैं। हर स्टेज पर पहले से ज्यादा घातक होने की संभावना होती है।
डॉ आर.आर कहते हैं, “पहली स्टेज में मरीज को बुखार, थकान, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में अकड़न और लिम्फ नोड्स में सूजन के साथ दाने निकल सकते हैं। साथ ही अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो स्थिति गंभीर होती जाती है।
इसकी दूसरे स्टेज में आकर ये समस्याएं बढ़ने लगती है। जिसमें अक्सर गर्दन में दर्द, शरीर के विभिन्न हिस्सों में चकत्ते, दिल की धड़कन अनियमित होना या कम दिखने जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं।
जबकि तीसरी स्टेज टिक काटने के 2 से 12 महीने बाद शुरू होती है। इस स्टेज में मरीज को सूजन के साथ-साथ हाथ के पीछे और पैरों के ऊपर की त्वचा का रंग फीका पड़ने लगता है। इससे त्वचा के टिशुज और जॉइंट्स भी खराब हो सकते हैं।
एक्सपर्ट ने इसके इलाज पर सलाह देते हुए बताया कि लाइम बीमारी से पीड़ित मरीज को एंटीबायोटिक्स दवाएं खाने और लगाने की सलाह दी जाती है। लेकिन अगर किसी मरीज को अन्य लक्षणों के साथ बहुत ज्यादा चकत्ते भी हो रहे हैं या लगातार बुखार और शरीर में परेशानी बनी हुई है, तो बिना समय बर्बाद किए तुरंत डॉक्टर से मिलने की कोशिश करनी चाहिए।
ऐसी स्थितियों का इलाज घर पर नहीं किया जा सकता है और न ही ओटीसी दवाएं इसमें मददगार होती हैं। अगर इस बीमारी का इलाज लम्बे समय तक न किया जाए, तो स्थिति काफी गंभीर हो सकती है।
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