लोग अक्सर बढ़ती उम्र के साथ या किसी हड्डी की चोट के साथ मिले दर्द को यह मान कर सहते रहते हैं कि यह किस्मत है। पैर में दर्द ही तो हो रहा है,ज़िन्दगी तो नहीं खतरे में है? लेकिन सवाल यह है कि ज़िन्दगी तो बची है लेकिन यह किस तरह की जिंदगी है जहाँ आप भाग कर बस ना पकड़ सकें। ना ही किसी बच्चे के साथ थोड़ी देर खड़े हो कर खेल पाएं। ऐसे ही किसी सवाल से जूझते हुए किसी डॉक्टर या साइंटिस्ट ने पहली बार किसी मरीज़ के घुटने खोले होंगे और उसमें आर्टिफिशियल जॉइंट लगा दिए होंगे। वो थक गया होगा दवा देते देते और मरीज़ थक गया होगा दवा खाते खाते। आज के ज़माने में हम उसे हिंदी में घुटने का प्रत्यारोपण कहते हैं और अंग्रेज़ी में उसे knee replacement कहा जाता है? कैसे और कब किया जाता है घुटने का ये प्रत्यारोपण और क्या ये सेफ है? किन लोगों को इसके लिए आगे बढ़ना चाहिए और किन्हें इससे बचना चाहिए। आज सब विस्तार से समझेंगे।
घुटने का प्रत्यारोपण (knee replacement) किसी सर्जरी की तरह ही होता है। इसमें घुटने की प्रभावित जगह को या जहाँ डैमेज है उस जगह को आर्टिफिशियल जॉइंट से जोड़ दिया जाता है। यह उन लोगों के लिए ही डॉक्टर रिकमेंड करते हैं जिनके ऊपर दवाईयां बेअसर हों या उनकी चोट इतनी गहरी हो कि बगैर ट्रांसप्लांट उनका इलाज नहीं हो सकता।
अगर घुटने में इतना दर्द हो कि चलने-फिरने, बैठने-उठने, और सामान्य नॉर्मल एक्टिविटीज भी कठिन लगने लगें और ये दर्द दवाइयों और इलाज़ से ठीक ना हो रहा हो।
नी ट्रांसप्लांट का सबसे आम कारण है। दरअसल इसमें घुटने की हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज घिस जाता है और हड्डियां आपस में रगड़ने लगती हैं।
इसी वजह से बुढापे में अक्सर घुटनों में सूजन और दर्द होने लगता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस के ज्यादातर केसेस में डॉक्टर नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) रिकमेंड करते हैं।
ये एक ऐसी ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपने ही टिशूज और जॉइंट्स को नुकसान पहुंचाने लगता है। बार बार हार्मोनल चेंजेज से गुजरने के कारण यह बीमारी महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है।
इसका ज़्यादातर प्रभाव जोड़ों पर ही पड़ता है। परिणामस्वरूप दर्द और सूजन हो जाते हैं। इस केस में भी डॉक्टर्स नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) रिकमेंड करते हैं।
कई बार यह भी हो जाता है कि कोई फ्रैक्चर ऐसा हो जिससे हमारा घुटना उबर ना सके। या कोई चोट इतनी गम्भीर हो जो दवाइयों से नहीं ठीक हो रही हो और मरीज़ का दर्द बढ़ता ही जा रहा हो। ऐसी सूरत में भी नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) किया जाता है।
ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर वत्सल खेतान के अनुसार यह प्रक्रिया पूरी तरह सेफ है। इसकी सफलता की दर लगभग 90-95 परसेंट है। फिर यह मरीज़ के शरीर पर भी निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि इस रिप्लेसमेंट (knee replacement) में लगभग एक डेढ़ घण्टे लगते हैं। सर्जरी के कुछ दिन बाद मरीज़ पूरी तरह से अपने पैरों पर चल सकता है।
2.सर्जरी के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग की समस्या से अक्सर डॉक्टर जूझते हैं। हालांकि यह समस्या कंट्रोल की जा सकती है लेकिन कई बार इसका परिणाम कमज़ोरी के तौर पर सामने आता है।
इसमें कोई शक नहीं कि नी ट्रांसप्लांट (knee replacement) घुटने के तेज़ दर्द और काम करने में मुश्किलों से राहत देने में मदद कर सकता है, खासकर जब दर्द और सूजन दूसरे इलाजों से ठीक न हो रही हों। हालांकि भले ही घुटने का प्रत्यारोपण दर्द खत्म करता हो लेकिन कई बार ये पुरानी बीमारियाँ या जीन से मिलीं हड्डियों की दिक्कतें दूर नहीं कर पाता। इस सर्जरी की सफलता की रेट तो 90 प्रतिशत से ऊपर है लेकिन इससे आपका दर्द पूरी तरह जाएगा या नहीं ये आपकी स्थिति और आपके डॉक्टर पर निर्भर करता है।
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