रोजमर्रा की जिंदगी में मील स्किप कर देना, एक्सरसाइज़ को अवॉइड करना और उचित मात्रा में वॉटर इनटेक न करना हमें सामान्य लगता है। क्या आप जानते हैं कि यही सामान्य और छोटी लगने वाली बातें धीरे धीरे आपके शरीर में किसी बड़ी समस्या के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। वो है ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)। अक्सर ऐसा माना जाता है कि उम्रदराज लोगों में ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) का खतरा बढ़ता है।
जी हां उम्र बढ़ने के साथ इसका जोखिम बढ़ जाता है। मगर वे लोग जिनकी उम्र कम है। वे भी इस समस्या के शिकार हो सकते हैं। दरअसल ये एक ऐसा साइलेंट किलर है, जो पोषक तत्वों की कमी के चलते हड्डियों को अंदर ही अंदर कमज़ोर और खोखला बनाने लगता है। इसटर्न मिरर नागालैण्ड की एक रिसर्च के अनुसार भारत में ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) के मामले सबसे ज्यादा है। आंकड़ों की मानें, तो भारत में 61 मिलियन लोग इस समस्या के शिकार है, जिसमें 80 फीसदी महिलाएं शामिल हैं। जानते हैं ऑस्टियोपोरोसिस के शुरूआती संकेत (early signs of Osteoporosis) और बचाव के तरीके भी।
हर साल वर्ल्ड ऑस्टियोपोरोसिस डे (World Osteoporosis Day) 20 अक्टूबर को मनाया जाता है। इसका मकसद लोगों को बोन मास डेंसिटी के बारे में जानकारी देना है। ताकि लोग ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे से खुद को बचाएं। इसके अलावा लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए जगह जगह कई प्रकार के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
इस बारे में पुणे के जुपिटर अस्पताल में कंसल्टेंट, ऑर्थोपेडिक्स और जॉइंट रिप्लेसमेंट स्पेशलिस्ट डॉ चंद्रशेखर दीक्षित ने कई बातों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) एक ऐसी साइंलेंट बीमारी है जिसमें बोन मास और बोन टिशूज के प्रभावित होने से हड्डियां कमज़ोर होने लगती है। पुरूषों की तुलना में महिलाओं को ये बीमारी अधिकतर पाई जाती है।
ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों में होने वाला वे रोग है, जिसमें बोन मास डेंसिटी का स्तर गिरने लगता है। इसमें आने वाला गिरावट का असर शरीर पर कई प्रकार से दिखने लगता है। इस बारे में एक्सपर्ट का कहना है कि ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या महिलाओं व पुरूषों दोनों में ही हो सकती है। मेनोपॉज के बाद महिलाओं में हार्मोनल इंबैलेंस यानि एस्ट्रोजन लेवल में कमी आने के चलते इसकी संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा महिलाओं की हड्डिया पुरूषों की तुलना में पतली होती है। शरीर में कैल्शियम, प्रोटीन और विटामिन डी की कमी होने से ये समस्या महिलाओं और पुरूषों दोनों में ही हो सकती है।
रीढ़ की हड्डी में होने वाले कंप्रेशन फ्रैक्चर का प्रभाव शरीर की लंबाई पर पड़ता है। दरअसल, फ्रैक्चर के चलते पीठ आगे की ओर झुकने लगता है। जो लंबाई के कम होने का कारण बनने लगता है। अगर आपका शरीर धीरे धीरे आगे की ओर झुकता चला जा रहा है, तो ये ऑस्टियोपोरोसिस की ओर इशारा करता है।
फ्रेजाइल यानि कमज़ोर हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। शरीर को पोषण न मिल पाने के चलते फ्रैक्चर का खतरा बढ़ने लगता है। मामूली चोट या फिर गिरने से हड्डियों के टूटने की संभावना बढ़ जाती है। वे लोग जिनकी बोन्स वीक हो जाती है। उनका ज़ोर ज़ोर से खांसना और छींकना भी हड्डियों को प्रभावित करने लगता है।
गर्दन और पीठ में होने वाला दर्द ऑस्टियोपोरोसिस की संभावना को बढ़ा देता है। ये दर्द हल्के से धीरे धीरे तेज़ होने लगता है। रीढ़ की हड्डी में होने वाले फ्रैक्चर के चलते स्पाइन यानि वर्टेब्रिया छोटे टुकड़ों में बिखरने लगता है। जो नर्वस में चुभव का अनुभव देते हैं। इसके चलते पीठ और गर्दन में दर्द की शिकायत रहती है।
नाखूनों के रंग और उनके टैक्सचर से बोन हेल्थ का पता आसानी से लगाया जा सकता है। अगर वे धीरे धीरे खराब हो रहे हैं, तो ये शरीर में कैल्शियम की कमी को दर्शाता है। जो हड्डियों की कमज़ोरी का संकेत हैं। इसके अलावा कैमिकल्स का नाखूनों पर अत्यधिक इस्तेमाल व बार बार गर्म व ठंडे तापमान के संपर्क में बाने से भी नाखून खराब होने लगते हैं।
अन्य कार्यों के समान वर्कआउट को भी प्राथमिकता दें। शरीर की मज़बूती को बनाए रखने के लिए कुछ देर वॉक के लिए जाएं। इसके अलावा मॉडरेट एक्सरसाइज़ आपके शरीर को फुर्तीला और प्रबल बनाती है। इससे बार बार लगने वाली चोट के खतरे से आप बचे रहते हैं। साथ ही लंगे वक्त तक एक्टिव भी रहते हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी समस्या है, जो हड्डियों को धीरे धीरे कमज़ोर बनाने लगती है। इससे बचाव के लिए ज़रूरी पोषक तत्वों को डाइट में सम्मिलित करना आवश्यक है। हड्डियों के स्वस्थ्य की उचित देखभाल और बोन डेंसिटी को बनाए रखने के लिए विटामिन डी, कैल्शियम, आयरन और मैग्नीशियम को अपनी डज्ञइट में अवश्य शामिल करें।
शरीर में मौजूद टॉक्सिंस को बाहर निकालने के लिए खुद को हाइड्रेट रखना ज़रूरी है। इससे आप बार बार होने वाली थकान से बच सकते हैं। साथ ही शरीर में बोन डेंसिटी बनाए रखने में भी मददबार साबित होता है। एक्सपर्ट के अनुसार वॉटर इनटेक बढ़ाने से हड्डियों को सभी पोषक तत्वों की प्राप्ति हो सकती है।
दिनभर में बार बार पी जाने वाली कॉफी और चाय आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने का काम करने लगती है। इसका प्रभाव हड्डियों पर नज़र आता है। एनसीबीआई के अनुसार कैफीन की मात्रा बढ़ाने से हड्डियां ब्लड फ्लो में कैल्शियम की रिहाई को बढ़ा देती हैं। इससे शरीर को पर्याप्त कैल्शियम की प्राप्ति नहीं हो पाती है। जो बोल डेंसिटी मास के कम होने का कारण साबित होता है। ऐसे में कैफीन इनटेक को लिमिट में रखें।
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