आयुर्वेद के अनुसार, लीवर शरीर के इंजन के समान है। लिवर आवश्यक कंपाउंड को बनाने, पाचन क्रिया और मेटाबोलिज्म में महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह रस धातु (plasma) को रक्त धातु (blood) में परिवर्तित करने के लिए जिम्मेदार है। यह प्लाज्मा में टोक्सिंस को स्कैन और पहचान कर संग्रह करता है। ताकि यह ब्लड में प्रवेश नहीं कर सके। यह ब्लड में अमा (अशुद्धियों) को मिलने से रोकता है और शुद्धता बनाए रखता है। लिवर डीटॉक्स करने का काम करता है, इसलिए लिवर की स्थिति और कार्यों में बैलेंस बनाना जरूरी होता है। इंडियन नेशनल हेल्थ पोर्टल आयुर्वेद में बताये तरीकों (how to balance and detox liver) को विस्तार से बताता है।
इंडियन नेशनल हेल्थ पोर्टल के अनुसार, पित्त दोष के कारण लिवर में समस्या होती है। लिवर में असंतुलन होने से पित्त आधारित प्रॉब्लम जैसे कि स्किन इन्फ्लेमेशन की समस्या होती है। आयुर्वेद मानता है कि लिवर पांच डाइजेस्टिव फायर से बना है। यह पांच तत्वों पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश के समान ही है। प्रत्येक फायर उस ख़ास तत्व को पचाने में विशेषज्ञता रखते हैं। बाद में ये रस धातु यानी प्लाज्मा को ब्लड टिश्यू में बदल देते हैं।
इंडियन नेशनल हेल्थ पोर्टल के अनुसार, यदि फायर बहुत अधिक या बहुत कम जलती है या असमान रूप से जलती है, तो रस धातु ब्लड टिश्यू में परिवर्तित नहीं होगी। इससे विषाक्त पदार्थ ब्लड में प्रवेश कर जाएंगे। इन सभी कार्यों में बैलेंस नहीं होने पर यह रक्त और त्वचा को प्रभावित कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप सूजन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
त्वचा का फटना, मुंहासे, घाव, सोरायसिस भी हो सकता है। इसके अलावा लीवर में जमा विषाक्त पदार्थों से एलर्जी, हाइपरकोलेस्टेरेलिया, हाइपोग्लाइसीमिया, कब्ज, पाचन संबंधी समस्याएं या थकान हो सकती है। यदि असंतुलन लंबे समय तक जारी रहता है, तो हेपेटाइटिस, सिरोसिस, पीलिया और कैंसर सहित लिवर के गंभीर रोग विकसित हो सकते हैं।
आर्गेनिक, ताजा पके हुए खाद्य पदार्थों का सेवन करें। विषाक्त पदार्थों से बचें। प्रीजरवेटिव और केमिकल युक्त या बचे हुए खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। क्योंकि लीवर को विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए ओवरटाइम काम करना पड़ता है।शराब, सिगरेट का सेवन लिवर के लिए खतरनाक है। वायु प्रदूषण और रोज़मर्रा के घरेलू रसायनों के संपर्क में आने से लिवर के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। टोक्सिंस को बाहर निकालने के लिए भरपूर मात्रा में शुद्ध पानी पीना फायदेमंद होता है।
इंडियन नेशनल हेल्थ पोर्टल के अनुसार, लिवर के असंतुलन को रोकने का सबसे अच्छा तरीका पित्त दोष को संतुलन में रखना है। गर्मी में पित्त को शांत करने वाले आहार का सेवन करें। उदाहरण के लिए मीठे, रसीले फल, समर स्क्वैश, पके हुए साग, डेयरी प्रोडक्ट, लस्सी और अनाज।
खट्टे या फरमेंट किये खाद्य पदार्थ जैसे सिरका, मिर्च जैसे तीखे और नमकीन खाद्य पदार्थ विशेष रूप से पित्त दोष वाले व्यक्तियों के लिए हानिकारक होते हैं। चयापचय को ठीक करने और लिवर को डीटॉक्स करने के लिए दिन की शुरुआत सेब या नाशपाती के साथ करें। हर दिन एक नाशपाती खाने से पित्त दोष को शांत करने और लिवर को साफ करने में बहुत मदद मिल सकती है।
समय पर भोजन करने से पित्त को संतुलित करने में मदद मिलती है। शाम को जल्दी भोजन करना और रात में 10 बजे से पहले सोना बेहतर होता है। शाम में पित्त समय 10 बजे से शुरू होता है, जो रात के 2 बजे तक रहता है। इस समय जागने से पित्त दोष बढ़ जाता है। इसके अलावा, नींद की कमी ग्लूकोज के चयापचय को डिस्टर्ब करती है। इसके परिणामस्वरूप वजन बढ़ता है। क्रोध करने से भी पित्त दोष बढ़ता है। ये दोनों लक्षण लिवर के असंतुलन के संकेत हैं।
इंडियन नेशनल हेल्थ पोर्टल के अनुसार, काम के दबाव के कारण संघर्ष या क्रोध की स्थिति पैदा करने वाली स्थितियों से बचें। योग का नियमित अभ्यास विशेष रूप से ध्यान मानसिक अमा को कम करता है। तनाव को रोकता है और लिवर को डीटॉक्स करने में मदद करता है।
नकारात्मक भावनाएं हार्मोन बनाती हैं, जो विषाक्त पदार्थों के साथ लीवर में भर जाती हैं। इसलिए निगेटिव विचारों से बचें। लिवर को डीटॉक्स करने से एनर्जेटिक रहा जा सकता है, स्किन को चमकदार और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद मिलती है।
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