हर वक्त किसी न किसी काम में व्यस्त रहने वाली महिलाएं अपना ख्याल रखना भूल जाती हैं। कभी ऑफिस तो कभी घर में अपने दायित्वों (Overburden) के कारण वे अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होने लगती हैं। इससे धीरे-धीरे महिलाओं के शरीर में कमज़ोरी आने लगती है और वे बीमारियों की शिकार होने लगती हैं। दुनिया भर के स्वास्थ्य संगठनों के आंकड़े ये इशारा करते हैं कि आप अपनी सेहत को लेकर सबसे ज्यादा लापरवाह हैं। यहां हम उन गंभीर बीमारियों (top 5 women’s health issues) के बारे में बता रहे हैं, जो महिलाओं में लगातार बढ़ती जा रहीं हैं।
कामकाज के बोझ के चलते महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल नहीं रख पाती है। ऑफिस और घर की जिम्मेदारियों को निभाते निभाते महिलाएं खुद की ज़रूरतें, हैप्पीनेस (Women Happiness) और ख्वाहिशें सब खत्म या कम कर लेती है। इसके चलते वे कई बार मानसिक तनाव का शिकार भी हो जाती है।
डब्ल्यू एच ओ (WHO) के मुताबिक पुरूषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा चिंता और तनाव से होकर गुज़रती है। तनाव एक मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर(Mental health disorder) है। जो 60 साल से कम उम्र की महिलाओं की मौत का सबसे प्रमुख कारण बनकर उभर रहा है। इससे मुक्ति के लिए महिलाओं में आत्मविश्वास को भरना बहुत ज़रूरी है।
डायबिटीज़ (Diabetes), हार्ट डिज़ीज़ (Heart disease), हाइपरटेंशन (Hypertension) और ओसिटियोपिरोसिस (Osteoporosis) जैसे नॉन कम्यूनिकेबल डिज़ीज़ (non communicable disease) यानि गैर.संचारी रोग महिलाओं में दिनों दिन बए़ रहे है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक साल 2012 में करीबन 4.7 मिलियन महिलाओं की 70 वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले ही नॉन कम्यूनिकेबल डिज़ीज़ से मौत हो गई।
मौत का ज्यादा आंकड़ा लो और मिडल इनकम वाले देशों में पाया गया है। वहीं तंबाकू के सेवन, शराब पीने, ड्रग्स लेने या मोटापे के कारण उनकी मौत हो गइ। ऐसा अनुमान है कि यूरोप और अमेरिका में 50 ज्यादा महिलाएं मोटापे का शिकार है। छोटी उम्र में ही अगर महिलाएं सही लाइफ स्टाइल का चयन कर लेती हैं, तो कई समस्याओं से बच सकती हैं।
मातृत्व एक महिला के जीवन का सबसे सुखद अनुभव है। उस वक्त महिलाओं को अपनी सेहत को लेकर बेहद सतर्क रहने की ज़रूरत है। दरअसल, गर्भावस्था, बच्चे का जन्म और उसके बाद महिलाओं की मेटरनल हेल्थ (Maternal health) उनके वातावरण पर भी निर्भर करती है। अगर महिलाएं स्वस्थ रहेंगी, तभी वे बच्चों का सही प्रकार से लालन पालन कर पाएंगी।
डॉक्टरी सलाह के मुताबिक दी गई दवाओं के कोर्स को पूरा करना भी बेहद ज़रूरी है। वहीं डब्ल्यू एच ओ (WHO) के मुताबिक साल 2020 में प्रेगनेंसी और प्रसव के दौरान या बाद में करीबन 287 000 महिलाओं की मृत्यु हुई। हांलाकि ये संख्या ज्यादा है। वहीं साल 2013 में मेटरन्ल हेल्थ को लेकर सचेत न रह पाने के कारण करीबन 300,000 महिलाओं ने अपनी जान गंवाई। सामान्य जरूरतों और फैमिली प्लानिंग न होने के कारण महिलाओं को इन समस्याओं से होकर गुज़रना पड़ा।
जब गर्ल्स खासतौर से एडोलेसेंस से होकर गुज़रती हैं, तो उस वक्त ज्ञान की कमी उन्हें कई परेशानियों से घेर लेती है। पेरेंटस से छुपाना और दोस्तों से खुलकर बात न कर पाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित होता है। ऐसे में उन्हें एसटीआई, एचआईवी और प्रेगनेंसी से होकर गुज़रना पड़ सकता है।
डब्ल्यू एच ओ (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक सालाना 13 मिलियन किशोर लड़कियां 20 साल से कम उम्र में प्रेगनेंसी से होकर गुज़रती हैं। जो उनके लिए कई बार गर्भावस्था का कारण भी बन जाती है। कम उम्र में प्रेगनेंट होने से बच्चियों को एनीमिया (Anemia), अनसेफ एबॉर्शन (Unsafe abortion) और कई मेंटल हेल्थ समस्याओं से होकर गुज़रना पड़ता है।
ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर महिलाओं को सबसे ज्यादा अपनी चपेट में ले रहा है। शुरूआती लक्षणों की जानकारी होते ही इसका तुरंत इलाज करवाएं। अन्यथा इस बीमारी का जोखिम दिनों दिन बढ़ने लगता है। डब्ल्यू एच ओ के अनुसार वैश्विक आंकड़े यही बताते हैं कि सालाना पांच लाख महिलाएं सर्वाइकल कैंसर (Cervical cancer) का शिकार हो जाती है। वहीं अन्य पांच लाख महिलाओं की स्तन कैंसर (Breast cancer) से मौत हो जाती हैं। ऐसे में महिलाओं को अपनी हेल्थ का लेकर सतर्क रहने की ज़रूरत है। साथ ही नियमित डॉक्टर जांच और फुल बॉडी चेकअप इस समस्या का जांचने का उपाय है।
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