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गर्भ संस्कार क्या है जो आजकल महानगरों में फिर से ट्रेंड में है, एक आयुर्वेद विशेषज्ञ से जानते हैं

गर्भ संस्कार केवल मां की जिम्मेदारी नहीं है, न ही एक दिन की प्रक्रिया है। इसकी तैयारी बेबी प्लान करने के दौरान ही की जाती है। यह कैसे किया जाता है और इसके फायदे क्या हैं, इस बारे में विस्तार से बता रही हैं आयुर्वेद एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ।
Published On: 21 Apr 2025, 03:10 pm IST
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डॉ एकता शर्मा
मेडिकली रिव्यूड
garbh sanskar baby ki physical-emotional health ke liye faydemand hai
गर्भ संस्कार का उद्देश्य शिशु का शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में मददगार साबित होता है। चित्र : अडोबीस्टॉक

हर मां के लिए उसका शिशु विशेष होता है। परिवार के अन्य सदस्यों की तुलना में मां और शिशु का संबंध नौ महीने अधिक होता है। ऐसे समय में जब ज्यादातर महिलाएं कामकाजी हैं, वे अपनी संतान के प्रति और भी सजग हो गई हैं। सही समय, सुविधाजनक माहौल और आर्थिक सामाजिक स्थिति सुदृढ़ होने के बाद ही वे बेबी प्लान कर रही हैं। इसलिए गर्भ संस्कार एक बार फिर से ट्रेंड में है। कई संस्थान गर्भ संस्कार (Garbh Sanskar) को गर्भावस्था के साथ पैकेज में मुहैया करवा रहे हैं। आखिर क्या है यह और कितना जरूरी है, आइए एक आयुर्वेद विशेषज्ञ से जानते हैं।

डॉ. एकता महर्षि आयुर्वेद अस्पताल में आयुर्वेद एवं महिला स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं। उन्होंने आयर्वेद में बीएएमएस और स्त्री रोग एवं प्रसूति में एमएस किया है। डॉ एकता कहती हैं, “भारतीय परंपरा में गर्भ को केवल शारीरिक पोषण का स्थान नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक विकास का केंद्र माना गया है। गर्भस्थ शिशु की चेतना, उसके विचारों और व्यवहार की नींव गर्भकाल में ही रखी जाती है। यह अवधारणा आधुनिक विज्ञान और आयुर्वेद के सम्मिलन से और भी स्पष्ट हो जाती है। गर्भ संस्कार, जो कि एक प्राचीन भारतीय जीवन पद्धति है, आज के युग में भी उतनी ही सार्थक और वैज्ञानिक रूप से समर्थित प्रक्रिया बनकर उभर रही है।”

समकालीन जीवन में गर्भ संस्कार की प्रासंगिकता

आज के डिजिटल युग में, जहां जीवन शैली तेज़ और तनावपूर्ण हो गई है, गर्भ संस्कार का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। यह प्रक्रिया गर्भावस्था को एक यांत्रिक या केवल चिकित्सीय अनुभव न बनाकर, एक आत्मिक और मानसिक यात्रा बनाती है। मोबाइल ऐप्स, ऑनलाइन योग कक्षाएँ, परामर्श सेवाएँ और प्रशिक्षित आयुर्वेदाचार्य इस प्राचीन प्रक्रिया को आज की व्यस्त जीवनशैली में भी सुलभ बना रहे हैं।

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आज के दौर में एक बार फिर से लोगों का रुझान इस ओर बढ़ रहा है। चित्र : अडोबीस्टॉक

इन दिनों बहुत सारे संस्थान गर्भ संस्कार आधारित प्रशिक्षण और वर्कशॉप का आयोजन कर रहे हैं। इनका उद्देश्य है—गर्भवती माताओं को उस चेतन मार्ग से परिचित कराना, जिससे एक सुंदर, संतुलित और संस्कारी जीवन की नींव रखी जा सके।

मां के विचार करते हैं भ्रूण के न्यूरोलॉजिकल विकास को प्रभावित 

डॉ एकता कहती हैं, “आयुर्वेद में गर्भावस्था को “साधारण चिकित्सा” नहीं, बल्कि एक “संस्कारात्मक प्रक्रिया” माना गया है, जहां मां का शरीर, मन और आत्मा—तीनों गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित करते हैं। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और गर्भोपनिषद जैसे ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि गर्भधारण से पूर्व और गर्भकाल के दौरान माता-पिता के विचार, आहार, आचरण और मानसिक अवस्था का सीधा असर शिशु की प्रकृति और भावी व्यक्तित्व पर पड़ता है।

आधुनिक अनुसंधान इस दृष्टिकोण की पुष्टि करते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से यह सामने आया है कि गर्भस्थ शिशु 20वें सप्ताह से ध्वनि सुन सकता है और मां की आवाज़ को पहचानना सीख जाता है। तीसरे तिमाही तक, वह स्वाद और स्पर्श का अनुभव भी करने लगता है। माँ के विचार और भावनात्मक स्थिति, विशेष रूप से तनाव, चिंता या शांति का स्तर, भ्रूण के न्यूरोलॉजिकल विकास और व्यवहारात्मक पैटर्न को प्रभावित करते हैं।”

कैसे किया जाता है गर्भ संस्कार (How to do Garbh Sanskar)

गर्भ संस्कार (Garbh Sanskar) कोई एकल क्रिया नहीं, बल्कि जीवनशैली की एक समग्र प्रणाली है। इसका उद्देश्य शिशु को न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाना है, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से भी संतुलित, संस्कारित और समर्थ बनाना है।

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1. योग और प्राणायाम :

डॉ एकता बताती हैं, “गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए योगाभ्यास माँ के शरीर को लचीला और सशक्त बनाते हैं। प्राणायाम के माध्यम से श्वसन प्रणाली सुदृढ़ होती है, जिससे रक्त में ऑक्सीजन का प्रवाह बेहतर होता है। यह न केवल माँ को मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि शिशु के मस्तिष्क और अंगों के विकास में भी सहायक होता है।”

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प्रेगनेंसी में एक्सरसाइज़ करने से वज़न को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। चित्र अडोबी स्टॉ। चित्र शटरस्टॉक।

2. ध्यान और सकारात्मक चिंतन :

नित्य ध्यान करने से माँ के मस्तिष्क में सकारात्मक हार्मोन स्रावित होते हैं, जिससे तनाव कम होता है। जब गर्भवती महिला सकारात्मक वाक्यों का उच्चारण करती है, जैसे—“मेरा बच्चा शांत और बुद्धिमान होगा”, तो उन विचारों की तरंगें शिशु के अवचेतन मन तक पहुंचती हैं।

3. संगीत और मंत्र चिकित्सा :

गायत्री मंत्र, ओम् की ध्वनि, और अन्य वैदिक मंत्रों का प्रभाव गर्भस्थ शिशु की मस्तिष्कीय तरंगों को संतुलित करता है। शिशु की श्रवण क्षमता और स्मृति शक्ति पर इन ध्वनियों का दीर्घकालिक प्रभाव देखा गया है। शोध बताते हैं कि संगीत से युक्त गर्भकाल शिशु के न्यूरो-डिवेलपमेंट को बेहतर बनाता है।

4. सात्विक आहार और दिनचर्या :

आयुर्वेद में कहा गया है—“आहार ही औषधि है।” गर्भवती महिला द्वारा लिया गया सात्विक, पोषक और सुपाच्य भोजन जैसे दूध, घी, हरी सब्जियां, फल, और जौ-गेहूं के उत्पाद शिशु के स्वास्थ्य और मानसिक विकास के लिए अनिवार्य हैं। नियमित दिनचर्या, भरपूर नींद और थकावट से बचाव भी अत्यंत आवश्यक होता है।

5. नैतिक साहित्य और प्रेरक कहानियां :

रामायण, महाभारत, और अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों की कहानियां पढ़ने और सुनने से गर्भवती महिला के विचारों में शुद्धता आती है। यह शुद्ध विचार गर्भस्थ शिशु के मन पर स्थायी संस्कार के रूप में अंकित होते हैं।

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वैज्ञानिक शोध भी यह मानते हैं कि शिशु गर्भ में मां की आवाज सुन सकता है। चित्र : एडॉबीस्टॉक

6. शिशु से संवाद :

शोध दर्शाते हैं कि जो माताएं गर्भ में पल रहे शिशु से संवाद करती हैं—उससे बात करती हैं, उसे प्यार भरे शब्दों में संबोधित करती हैं—उनके बच्चों में जन्म के बाद भावनात्मक स्थिरता और सामाजिक जुड़ाव अधिक देखा गया है। यह संवाद भ्रूण के मस्तिष्क में संवेदी तंत्रों को सक्रिय करता है।

7. पारिवारिक भागीदारी :

गर्भ संस्कार केवल माँ की जिम्मेदारी नहीं होती। पिता, दादी-दादा, और परिवार के अन्य सदस्य भी सकारात्मक वातावरण बनाकर शिशु के विकास में सहायक हो सकते हैं। सामूहिक प्रार्थना, मंत्रजाप, और प्रेमपूर्ण व्यवहार का सामूहिक प्रभाव माँ और शिशु दोनों पर पड़ता है।

याद रखें 

गर्भ संस्कार (Garbh Sanskar) केवल धार्मिक या सांस्कृतिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह माँ और शिशु के बीच उस अदृश्य संवाद का नाम है जो जीवन की शुरुआत से पहले ही शुरू हो जाता है। यह एक वैज्ञानिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो नवजीवन को संवेदनशीलता, सकारात्मकता और संतुलन से परिपूर्ण बनाती है।

जब एक माँ संतुलित विचारों, सात्विक आहार, और शांतिपूर्ण वातावरण में जीवन जीती है, तो वह अपने गर्भस्थ शिशु को न केवल शरीर, बल्कि संस्कार, विवेक और आत्मिक चेतना की नींव प्रदान करती है। यही प्रक्रिया भविष्य की पीढ़ियों को स्वस्थ, सशक्त और संस्कारित नागरिक बनने की ओर अग्रसर करती है।

गर्भ संस्कार (Garbh Sanskar) एक माता के प्रेम और चेतना की वह ऊर्जा है, जिससे एक संपूर्ण जीवन आकार लेता है। यही वह अमूल्य उपहार है जो हर माता अपने शिशु को जन्म से पहले ही दे सकती है।

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लेखक के बारे में
योगिता यादव
योगिता यादव

योगिता यादव एक अनुभवी पत्रकार, संपादक और लेखिका हैं, जो पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से हिंदी मीडिया जगत में सक्रिय हैं। फिलहाल वे हेल्थ शॉट्स हिंदी की कंटेंट हेड हैं, जहां वे महिलाओं के स्वास्थ्य, जीवनशैली, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक मुद्दों से जुड़ी सामग्री का संयोजन और निर्माण करती हैं।योगिता ने दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, जी मीडिया और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में कार्य किया है। वे 'हेल्दी ज़िंदगी' नाम का उनका हेल्थ पॉडकास्ट खासा लोकप्रिय है, जिसमें वे विशेषज्ञ डॉक्टरों और वेलनेस एक्सपर्ट्स से संवाद करती हैं।

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