रोजमर्रा के जीवन में शरीर को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अधिकतर लोग दवाओं या फिर कुछ घरेलू नुस्खों (home remedies) की मदद से सर्दी, खांसी, पेट दर्द और मोटापे (obesity) को कम करने का प्रयास करते हैं। मगर आहार में सामान्य परिवर्तन लाकर शरीर को स्वस्थ और हेल्दी रखने में मदद मिलती है। दरअसल, फाइबर से भरपूर आहार (fiber rich diet) न केवल डाइजेशन को बूस्ट करता है बल्कि वेटलॉस (weight loss) में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ऐसे में आहार में फाइबर को शामिल करना बेहद फायदेमंद है। जानते हैं वो संकेत हैं, जो इस बात को दर्शाते हैं कि आपके शरीर को है फाइबर की आवश्यकता (fiber deficiency symptoms)।
इस बारे में डायटीशियन डॉ अदिति शर्मा बताती हैं कि फाइबर रिच फूड्स (fiber rich foods) के सेवन से मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है। इसके अलावा शरीर को सॉल्यूबल (soluble fiber) और इनसॉल्यूबल फाइबर (insoluble fiber) की प्राप्ति होती है, जिससे डाइजेशन स्लो (slow digestion) होता है और शुगर स्पाइक से बचा जा सकता है। फाइबर को डाइट में शामिल करके मोटापे की समस्या से बचा जा सकता है। लगातार ब्लड शुगर में आने वाले उतार चढ़ाव और कब्ज की समस्या शरीर में फाइबर की कमी को दर्शाता है। गट हेल्थ (gut health) को बूस्ट करने वाले फाइबर की कमी से शरीर को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
हार्वर्ड हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार 19 से 50 साल की उम्र के पुरूषों को दिन में 31 से 34 ग्राम और महिलाओं को 25 से 28 ग्राम फाइबर की आवश्यकता होती है। वहीं 50 साल से ज्यादा उम्र के पुरूषों को 28 और महिलाओं को 22 ग्राम फाइबर का सेवन करना चाहिए।
इनसॉल्यूबल फाइबर की मदद से पाचन तंत्र को मज़बूती मिलती है। फाइबर रिच डाइट (fiber rich diet) के सेवन से आहार को आसानी से डाइजेस्टिव ट्रैक (digestive tract) तक पहुंचाया जाता है, जिससे कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इनसॉल्यूबल फाइबर (insoluble fiber) को अपनी मील में शामिल करने के लिए साबुत अनाज, सब्जियां, व्हीट ब्रान और फलियों का सेवन करें। फाइबर रिच फूड्स में घुलनशील और अघुलनशील फाइबर दोनों होते हैं, जो शरीर के लिए आवश्यक है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार अपनी डाइट में फाइबर की मात्रा को बढ़ाकर कार्ब्स के एबजॉर्बशन को स्लो किया जा सकता है, जिससे ब्लड में शुगर स्पाइक कास खतरा कम होने लगता है। इससे बार बार भूख लगने की समस्या हल हो जाती है और ओवरइटिंग (overeating) को रोका जा सकता है। सॉल्यूबल फाइबर की मदद से ब्लड शुगर को मैनेज किया जा सकता है। इसके लिए आहार में ओटमील, नट्स, लेग्यूम्स, फल और सब्जियों को शामिल करे।
घुलनशील फाइबर को आहार में शामिल करके कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद मिलती है। इससे ब्लड में एलडीएल यानि बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम किया जा सकता हैं। फल और सब्जियों को मील में शामिल करके इस समस्या से बचा जा सकता है। केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के अनुसार फाइबर के सेवन से बाइल कोलेस्ट्रॉल के साथ बाइंड हो जाता है। शरीर में ज्यादा बाइल से कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ने से रोका जाता है और शरीर में फैट स्टोरेज को रिवर्स किया जा सकता है।
लूज और वॉटरी स्टूल की समस्या को दूर करने के लिए फाइबर का सेवन कारगर साबित होता है। हाई फाइबर डाइट से बॉवल मूवमेंट नियमित बना रहता है और बवासीर के खतरे से बचा जा सकता है। सॉल्यूबल फाइबर आंत में देर तक रहता है, जिससे कोलन के कार्य को नियमित बनाए रखता है। इस दौरान हेल्दी फैट डाइट और डेयरी प्रोड्क्टस से दूर रहें। अपने आहार में फलों और सब्जियों को शामिल करें।
अनहेल्दी लाइफस्टाइल और अनियमित डाइट वेटगेन की समस्या का कारण साबित होते है। शरीर को वेटगेन से बचाने के लिए रूटीन में छोटी मील्स लें और फाइबर इनटेक का बढ़ा दें। इससे डाइजेस्टिव हेल्थ इंप्रूव होती है और गट हेल्थ बूस्ट होती है। हाई फाइबर फलों और सब्जियों से शरीर में कैलोरी स्टोरेज रूक जाता है और डाइजेशन की धीमी गति वेटगेन (weight gain) से बचाने में मदद करती है।
पालक, केल, गाजर और ब्रोकली समेत हरी सब्जियों में फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इससे वॉबल मूवमेंट नियमित बना रहता है और शरीर को सॉल्यूबल और इनसॉल्यूबल फाइबर की प्राप्ति होती है। इसके सेवन से शरीर मौसमी संक्रमणों से बचा रहता है और डाइजेशन बूस्ट होता है।
अपने आहार में साबुत अनाज को शामिल करने से शरीर में फाइबर की कमी पूरी होती है। इससे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल हेल्थ बूस्ट होती है। साथ ही वज़न बढ़ने की समस्या को भी रोका जा सकता है। नियमित रूप से साबुत अनाज का सेवन करने से मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है।
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कस्टमाइज़ करेंरोज़ाना फलों को अपनी मील में शामिल करने से उच्च मात्रा में फाइबर की प्राप्ति होती है। अमरूद, सेब, केला, अनार और चैरी समेत कई फलों में फाइबर पाया जाता है। इससे शरीर हेल्दी और एक्टिव बना रहता है। साथ ही शरीर में बढ़ने वाले निर्जलीकरण के खतरे से बचा जा सकता है।
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