कुछ दशक पहले तक डायबिटीज होना बहुत रेयर था। लेकिन आज के समय में हमारी जीवनशैली के कारण यह बीमारी बहुत आम हो गई है। आकंड़ों की बात करें, तो सिर्फ भारत में ही 1990 में 26 मिलियन डायबिटीज के मरीज थे, जिनकी संख्या 2016 में 65 मिलियन हो गयी थी। मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर के 2019 के नेशनल डायबिटीज एंड डायबिटिक रेटिनोपैथी सर्वे के अनुसार 50 वर्ष से अधिक 11.8 प्रतिशत व्यक्ति डायबिटीज के शिकार हैं।
कई शोधों में पाया गया है कि डायबिटीज ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ाती है और मरीजों में मृत्यु दर भी बढ़ाती है। पहले जान लेते हैं कि इन दोनों बीमारियों में समानता क्या है-
जिन्हें नहीं पता, उन्हें बता दें कि ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं में सबसे आम कैंसर है। जिसमें ब्रेस्ट के टिश्यू में कैंसर हो जाता है। इसका अर्थ है कि ब्रेस्ट टिश्यू अत्यधिक रूप से बढ़ने और फैलने लगते हैं।
ब्रेस्ट कैंसर ब्रेस्ट के अलग-अलग हिस्सों में हो सकता है। कुछ कैंसर ब्रेस्ट के अलावा कहीं नहीं फैलते, और इसे नॉन इन्वेसिव ब्रेस्ट कैंसर कहते हैं। जो कैंसर ब्रेस्ट के बाहर भी फैलते हैं उन्हें इन्वेसिव ब्रेस्ट कैंसर कहते हैं।
बाकी शरीर से अलग, महिलाओं में ब्रेस्ट फैट, कनेक्टिव टिश्यू और लोब्यूल से मिलकर बने होते हैं। लोब्यूल ही दूध बनाते हैं जो डक्ट की मदद से निप्पल्स तक पहुंचता है।
सभी कैंसर की तरह ही यहां भी डॉक्टरों के लिये कारण का सटीक पता लगा पाना संभव नहीं है।
· उम्र
· हॉर्मोनल एक्टिविटी बढ़ना
· जल्दी पीरियड्स शुरू होना या लेट मेनोपॉज होना
· ब्रेस्ट कैंसर की फैमिली हिस्ट्री
· ब्रेस्ट का कोई बिनाइन ट्यूमर
· ब्रेस्ट टिश्यू बहुत घने होना
· शराब का सेवन
· टाइप 2 डायबिटीज
रिसर्च बतातीं हैं कि ब्रेस्ट कैंसर अधिकांश तौर पर टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्त महिलाओं में ही होता है, खासकर मेनोपॉज के बाद। एक अन्य स्टडी में पाया गया है कि मेनोपॉज के वक्त डायबिटिक महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम 20 प्रतिशत अधिक था।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका कारण मोटापा है, जो कई जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का कारक होता है।
कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए एक नवीन शोध में ब्रेस्ट कैंसर और डायबिटीज में सम्बन्ध को विस्तृत रूप से समझा गया है।
चूहों और मनुष्यों के ब्रेस्ट सेल्स पर किये गए इस शोध में पाया गया कि ग्लूकोज ट्रांसपोर्ट प्रोटीन (GLU3) का स्तर कैंसर वाले सेल्स में 400 गुना ज्यादा था। यह प्रोटीन ग्लूकोज को एक सेल से दूसरे सेल में जाने में मदद करता है। कैंसर के केस में यह बढ़ा हुआ था यानी आसानी से सेल्स में ज्यादा ग्लूकोस जा सकता है जिससे कैंसर के सेल्स को बढ़ने की ऊर्जा मिलती है।
“ब्रेस्ट कैंसर और डायबिटीज के बीच तीन तरह से सम्बन्ध हो सकते हैं: इन्सुलिन के रास्ते का एक्टिव होना, इंसुलिन जैसे ग्रोथ फैक्टर का एक्टिव होना या इंडोजेनस सेक्स हॉर्मोन्स का नियंत्रण।
एक और मैकेनिज्म है जिसे क्रोनिक हाइपर ग्लाइसेमिया कहते हैं, यह भी ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ा सकता है। हाइपरग्लाइसेमिया इंसुलिन जैसे ग्रोथ फैक्टर 1 (IGF-1) के स्तर बढ़ने से जुड़ा हुआ है। इन्फ्लामेट्री साइटोकाइन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कैंसर के सेल्स के एपोप्टोसिस और मेटास्टेसिस को प्रभावित करता है”, कहती है NCBI की स्टडी।
अधिकांश ब्रेस्ट कैंसर आसानी से डायग्नोस हो जाते हैं। इसके लिए ब्रेस्ट का मैमोग्राफी टेस्ट होता है। ब्रेस्ट टिश्यू में कोई असमानता देखने के लिए X-रे किया जाता है। कुछ केसेस में अल्ट्रासाउंड करना पड़ता है।
बुजुर्ग महिलाओं, खासकर 50 से 70 वर्ष की आयु के बीच, को नियमित रूप से ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग करवानी चाहिए ताकि शुरुआती स्टेज में ही डायग्नोस किया जा सके। कई बार स्क्रीनिंग के साथ-साथ बॉयोप्सी की भी जरूरत पड़ती है। इसमें सेल्स का सैंपल लिया जाता है और कैंसर वाले सेल्स की जांच होती है।
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कस्टमाइज़ करेंअगर आप डियाबिटिक हैं तो अपना ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम कम करने के लिए आप मेटफॉर्मिन ले सकती हैं। इटली की 2012 की एक रिसर्च के अनुसार मेटफॉर्मिन ब्रेस्ट कैंसर के सेल्स को बनने से रोकता है।
इसके साथ ही,अच्छी डाइट, एक्सरसाइज और एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। पूरी नींद लें और फिट रहें यह आपको कई गम्भीर बीमारियों से बचा सकता है।