अच्छे स्वास्थ्य की नींव अच्छा पोषण है। होम्योपैथी और पोषण संतुलित रहने पर ही शरीर स्वस्थ होता है। बढ़िया पोषण क्लासिकल होम्योपैथी में मदद करता है। क्लासिकल होम्योपैथी के फाउंडर डॉ. सैमुअल हैनीमैन भी विटामिन और मिनरल्स के महत्व को समझते थे। उन्होंने महसूस किया कि शरीर में संतुलन बहाल करने के लिए उचित पोषण आवश्यक है। कोई भी व्यक्ति चाहता है कि होम्योपैथ चिकित्सा का सही लाभ मिले, तो उसे किस तरह का आहार लेना चाहिए, ध्यान देना पड़ेगा। होमियोपैथी के विशेषज्ञ और डॉ. बत्रा ग्रुप ऑफ़ कम्पनी के फाउंडर डॉ. मुकेश बत्रा इसके बारे (Homeopathy and diet) में विस्तार से बताते हैं।
डॉ. मुकेश बत्रा बताते हैं, ‘होम्योपैथी के संस्थापक डॉ. सैमुअल हैनमैन एक जर्मन डॉक्टर थे। उन्होंने ‘ऑर्गेनॉन ऑफ द हीलिंग आर्ट’ नामक किताब में होम्योपैथी के सिद्धांतों को लिखा है। ऑर्गेनॉन में उन सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है, जिसके आधार पर होम्योपैथी का प्रयोग किया जाना चाहिए। होम्योपैथी की फिलोसॉफी क्या है और किस तरह इसकी दवाइयां बनाकर दी जानी चाहिए।
इस किताब के एक अध्याय में डॉ. हैनमैन ने होम्योपैथी और भोजन के संबंध के बारे में विशेष रूप से लिखा है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति का पेट उसके पैर की तरह होता है। जिस तरह सबके पैर का आकार एकदम अलग-अलग होता है, ठीक उसी तरह होम्योपैथी भी यूनिवर्सल डाइट के उपयोग के खिलाफ है। सभी व्यक्ति की डाइट अलग-अलग हो सकती है।
किसी एक व्यक्ति द्वारा लिया जाने वाला आहार दूसरे के लिए ज़हर समान भी हो सकता है। एक व्यक्ति को बैंगन बहुत पसंद हो सकता है, जबकि दूसरे व्यक्ति को इससे एलर्जी हो सकती है। इसके खाने पर उसकी त्वचा पर चकत्ते पड़ सकते हैं। होम्योपैथी व्यक्तिगत डाइट (personal diet) में विश्वास करती है।
होम्योपैथी की दवा लेते समय डाइट पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है। रोग के अनुसार प्रतिबंध लागू होते हैं, उदाहरण के लिए, उच्च रक्तचाप के मरीज़ (High Blood pressure Patient) को खाने में नमक की मात्रा कम करने की सलाह दी जाएगी। उच्च कोलेस्ट्रॉल के मरीज़ (High Cholesterol Patient) को फैट यानी वसायुक्त आहार नहीं खाने के लिए कहा जाएगा। गाउट के मरीज़ (Gout Patient) को शराब नहीं पीने की सलाह दी जाएगी।
होम्योपैथिक दवाइयां तंत्रिका सिरे के माध्यम से कार्य करती हैं। इसलिए दवा को जीभ के नीचे रखकर चूसना होम्योपैथिक दवाइयां लेने का सर्वोत्तम तरीका है।
यह एक मिथक है कि यदि आप होम्योपैथिक दवाई ले रही हैं, तो आपको कॉफी का सेवन नहीं करना चाहिए। कॉफी में कैफीन होता है, जो मूड को बेहतर बनाता है। इसलिए यह माना जाता है कि कॉफी होम्योपैथिक दवा में हस्तक्षेप करता है जो तंत्रिका के माध्यम से कार्य करती है। उदाहरण के लिए बार-बार कॉफी पीने वाला व्यक्ति अधिक मूड में उतार-चढ़ाव (mood swing) का अनुभव कर सकता है। हमारे जीवन में हम सभी उतार-चढ़ाव का सामना करते हैं। यही कारण है कि यदि लोग होम्योपैथिक दवा ले रहे हों, तो वे कॉफी का सेवन कर सकते हैं। बशर्ते वे इस बात का ध्यान रखें कि भोजन लेने और दवाई खाने के बीच आधे घंटे का अंतर होना चाहिए।
होम्योपैथी का मानना है कि न सिर्फ पोषण की कमी से बीमारियां होती हैं, लेकिन ठीक से भोजन का अवशोषण नहीं कर पाना असली समस्या है। भले ही आप सही प्रकार के आहार का सेवन कर रहे हों, लेकिन आप इसे अवशोषित नहीं कर पा रहे हैं, तो इससे स्वास्थ्य को कोई लाभ नहीं मिलेगा।
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