टीबी का नाम सुनते ही हमारे दिमाग मे खांसी का ख्याल आता है। लेकिन आंतो का ट्यूबरक्लोसिस, पल्मोनरी टीबी से ज्यादा खतरनाक होता है। भारत में आंतो के टीबी का मृत्यु दर 20% है। इस बीमारी की सबसे खतरनाक बात यह है कि यह आसानी से डायग्नोज़ नहीं होती। इसलिए हम आपको बता रहे हैं आंतो के टीबी के ऐसे लक्षण जिनके होने पर आप तुरन्त डॉक्टर के पास जाएं।
आंतो का टीबी इंटेस्टाइन के किसी भी हिस्से में हो सकता है। छोटी आंत, बड़ी आंत, अपेंडिक्स, कोलन या रेक्टम में। कोलन और रेक्टम में होने वाली टीबी सबसे ज्यादा जानलेवा होता है। ट्यूबरक्लोसिस एक खास तरीके के बैक्टीरिया ‘मयकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्यूलोसिस’ के कारण होता है।
पहला, टीबी वाले बैक्टीरिया के दूषित दूध पीने से।
और दूसरा, जब फेफड़ों का टीबी फैलकर पाचनतंत्र तक पहुंच जाता है।
इंटरनेशनल एनसाइक्लोपीडिया ऑफ पब्लिक हेल्थ, 2017 के अनुसार टीबी के लक्षण फ़ूड पॉइज़निंग और अपेंडिक्टिस जैसे ही होते हैं।
1. दस्त इस बीमारी का सबसे प्रमुख लक्षण है। हर तीन में से एक व्यक्ति को दस्त की समस्या होती है।
2. खाते ही उल्टी होना भी एक लक्षण है। चाहे आप ग्लूकोज़ ही पिएं, तुरन्त उल्टी हो जाएगी।
3. पेट के निचले हिस्से में भयंकर दर्द।
4. बहुत ज्यादा वेट लॉस।
टीबी के लक्षण इतने आम हैं कि डॉक्टर शुरुआती दिनों में समझ ही नहीं पाते कि यह आंत के टीबी के कारण है। अल्ट्रासाउंड में यह बीमारी पकड़ में नही आती।
आंतो का टीबी आम टीबी की तरह ही है, जिसका इलाज आसानी से हो सकता है। लेकिन आंतो के टीबी के साथ सबसे बड़ी चुनौती यही है कि यह जल्दी पकड़ में नहीं आता। पहले तीन महीने में डायग्नोज़ होने पर इसका इलाज आसानी से हो सकता है।
लेकिन उसके बाद समस्या आती है। क्योंकि धीरे धीरे आंतो में घाव हो जाते हैं। छह महीने तक डायग्नोज़ ना होने पर बचने की संभावना बहुत कम होती है। खासकर कॉलोनोरेक्टल ट्यूबरक्लोसिस में। इसलिए सही समय पर डायग्नोज़ होना ही इस बीमारी में सबसे महत्वपूर्ण स्टेप है।
इंटेस्टाइनल टीबी का पता लगाने के लिए कोलोनोस्कोपी या एंडोस्कोपी होती है, आपके पेट के किस हिस्से में दर्द हो रहा है उसके अनुसार। अगर छोटी आंत (स्मॉल इंटेस्टाइन) में टीबी है तो एंडोस्कोपी में पता लगता है, वहीं बड़ी आंत, कोलन और रेक्टम का टीबी कोलोनोस्कोपी में पता लगता है।
डायग्नोज़ होने के बाद स्टैण्डर्ड टीबी का इलाज चलता है जो 6 महीने से लेकर 12 महीने तक का हो सकता है। इस इलाज में सरकार आर्थिक मदद भी करती है।
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