नियमित जांच बचा सकती है आपके एजिंग पेरेंट्स की दुनिया में अंधेरा होने से
दुनिया भर में महामारी के कारण जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, घर से काम करने की रूटीन और ऑनलाइन क्लास होने के कारण लोगों स्क्रीन पर ज्यादा समय बिता रहे हैं जिस वजह से आंखों में समस्या होना आम बात हो गयी है। विकसित देशों में 40 से 60 प्रतिशत की तुलना में भारत में बिना डायग्नोज्ड के ग्लूकोमा के केसेस 90 प्रतिशत है जोकि एक भयावह स्थिति है।
शहर और गावों में ग्लूकोमा (Glaucoma) के बारे में जागरूकता की कमी बहुत ज्यादा है। बीमारी के शुरुआती चरणों में केवल पेरिफेरल विजन (Peripheral Vision) प्रभावित होती है। इसलिए मरीज को देखने में कोई बदलाव नहीं दिखाई देता है क्योंकि सेन्ट्रल विजन (Central Vision) बरकरार रहती है। इसलिए जब तक बीमारी ज्यादा बढ़ नहीं जाती है तब तक मरीज चेक-अप नहीं कराता। नियमित आंखों की जांच ग्लूकोमा का पता लगाने में महत्वपूर्ण होती है क्योंकि बीमारी बिना किसी लक्षण के मरीज की आई साइट को प्रभावित करती है। आंखों को ग्लूकोमा से सुरक्षित रखने के लिए शुरुआती जांच और जागरूकता सबसे अच्छा तरीका है।
तो ग्लूकोमा किसे कहते हैं?
ग्लूकोमा आंखों की कई बीमारियों के समूह को कहा जाता है, इन बीमारियों के समूह से ऑप्टिक नर्व डैमेज (Optic Nerve Damage) होता है। ग्लूकोमा के मामले में सबसे पहला नुकसान इंट्राकलर आई प्रेशर होता है, जो ऑप्टिक नर्व में नर्व फाइबर्स को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे ब्लाइंड स्पॉट हो सकता हैं और ये ब्लाइंड स्पॉट स्थायी रूप से बने रह सकते हैं। जब इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो ग्लूकोमा बदतर हो सकता है और इसके वजह से अंधापन हो सकता है।
जानिए क्यों महत्वपूर्ण है रूटीन आई चेकअप
ग्लूकोमा का पता लगाने और उसका इलाज करने के प्रभावी तरीकों में से एक यह है कि आंखों की जांच नियमित रूप से कराई जाए। आंखों की जांच में अक्सर आंखों के दबाव का माप, ऑप्टिक नर्व की जांच, आंख के ड्रेनेज एंगल (Drainage Angle) और हर आंख के विजयुल फील्ड का टेस्ट होता है।
शुरूआती आंखों की जांच से नेत्र रोग विशेषज्ञ को आंख में कुछ बदलाव दिखने पर पता लग सकता है। इसकी वजह से डॉक्टर यह पता लगाने में सक्षम हो पाते हैं कि ग्लूकोमा विकसित हो रहा हैं या नहीं। नियमित आंखों की जांच कराने से डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी को-मॉर्बिडिटीज का भी पता लग सकता है।
जो लोग चश्में पहनते हैं, उनके लिए भी यह जरूरी है कि वे अपनी आंखों की जांच नियमित रूप से कराएं।
आंखों की जांच कितने समय के अंतराल पर की जानी चाहिए?
बच्चों और वयस्कों के लिए नियमित रूप से आई चेक अप सम्पूर्ण आई हेल्थ तथा दृष्टि को जीवनभर अच्छा बनाये रखने के लिए जरूरी होती है। इसलिए जानें आंखों की जांच से सम्बंधित कुछ गाइडलाइंस।
- बच्चे की उम्र 6 महीने होने पर
- बच्चे की उम्र 3 साल होने पर
- उम्र 5 या 6 साल – स्कूल में दाखिला लेने से पहले और उसके बाद हर दो साल में।
- उम्र 18 से 40 साल- कम से कम हर 2 साल में एक बार
- 41 साल और इससे ज्यादा की आयु होने पर साल में कम से कम एक बार
- बुजुर्गों होने पर साल में कम से कम एक बार जांच जरूरी है
- आंखों से संबंधित किसी भी समस्या के दिखने पर भी साल में एक बार जांच कराना जरूरी है
निष्कर्ष
नियमित रूप से आंखों की जांच देश में ग्लूकोमा को कम कर सकती है। हालांकि जनता के बीच इसकी व्यापकता को बढ़ाने के लिए जागरूकता और शिक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। नेत्र स्वास्थ्य शिक्षा लोगों को नियमित आंख की बीमारी संबंधी देखभाल ग्लूकोमा के शुरुआती डायग्नोसिस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। जनता के बीच ग्लूकोमा विकसित होने और इसके बारे में कम जानकारी होने पर गंभीर खतरा हो सकता है। इसलिए आंखों की इस समस्या से बचे रहने के लिए जनता के बीच इस बीमारी से सम्बंधित जानकारी पहुंचाना ज़रूरी है।
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