छोटे बच्चों की परवरिश (Babies care) करना पेरेंट्स के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता। इसमें बच्चे के खानपान से लेकर उसकी नींद का भी ख्याल रखना जरूरी है। अच्छी नींद बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में योगदान करती है। जबकि कुछ बच्चों में स्लीप टेरर या नाइट टेरर की समस्या हो सकती है। जिससे वे रात में डरकर उठ जाते हैं। आपको बता दें कि बुरा सपना देखना और नाइट टेरर की परेशानी अलग-अलग होती है। हालांकि, नाइट टेरर में बुरे सपने देखना भी एक लक्षण हो सकता है। आइए जानते हैं स्लीप टेरर (Sleep terror) या नाइट टेरर (Night Terror) की समस्या क्या है? अगर आपका बच्चा भी इस समस्या से जुझ रहा है तो इसे कैसे दूर करें?
नई दिल्ली स्थित चिल्ड्रंस चेस्ट क्लीनिक के पीडियाट्रिशियन डॉक्टर अंकित पारख का कहना है कि स्लीप टेरर या नाइट टेरर में बच्चा सोने के एक-दो घंटे बाद अचानक जाग जाता है। उस वक्त बच्चा बहुत हेजीटेड होता है, रोने लग जाता है और बहुत ही डरा हुआ लगता है।
अचानक बच्चे की सांसें तेज हो जाती हैं और वह पसीना पसीना हो जाता है। सामान्यतः इस स्थिति में बच्चे बेड पर ही रहते हैं, लेकिन कई बार वह बेड से नीचे उतर जाते हैं। बेबीज कई बार दूसरे रूम में भी जा सकते हैं।
बच्चों में स्लीप टेरर रोजाना या सप्ताह में एक-दो बार हो सकता है। इसमें कई बार बच्चे हिंसक कार्रवाई भी कर सकते हैं। जैसे खुद के हाथ पैरों को मारना आदि। किड्स हेल्थ के अनुसार, बच्चों में यह समस्या डरावना सपना देखने से अधिक खतरनाक और ड्रामेटिक होती है। जो बच्चे इस समस्या से गुजर रहे हैं, उन्हें पेरेंट्स को अच्छे से हैंडल करने की जरुरत पड़ती है।
बच्चों में स्लीप टेरर या नाइट टेरर की समस्या यह दर्शाती है कि उसकी सेहत कुछ गड़बड़ है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह समस्या कई बार बुरे सपने देखने की वजह से आती है। वहीं, अगर आपका बच्चा अधिक थका हुआ है, ज्यादा तनाव ले रहा है तो यह समस्या हो सकती है। कई बार बच्चे तेज बुखार के कारण सो नहीं पाते हैं। इसका असर उनके दिमाग पर पड़ता है। लिहाजा, स्लीप टेरर होता है।
डॉक्टर पारख का कहना है कि ऐसी स्थिति में पेरेंट्स को बहुत परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। यह सामान्य घटना है। ऐसा होने पर बच्चे को किसी तरह से हर्ट नहीं करना चाहिए है। न ही बच्चे को जगाने की कोशिश करें। बता दें कि स्लीप टेरर की घटना बच्चों को याद नहीं रहती है। ऐसे में पेरेंट्स को अगले दिन बच्चे से इस बारे में बातचीत नहीं करना चाहिए। इसका असर उनकी की मेंटल हेल्थ पर पड़ता है।
इसके लिए पेरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए कि आपका बच्चा समय पर सो रहा है या नहीं। साथ ही उसे ज्यादा चाय और कॉफी नहीं पिलाना चाहिए। डॉ. पारख यह भी सुझाव देते हैं कि ज्यादतर केस में इसके लिए कोई मेडिकल ट्रीटमेंट की जरुरत नहीं पड़ती है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, तो यह प्रॉबलम अपने आप ठीक हो जाती है। हालांकि, उन बच्चों में को ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ सकती है जो मानसिक रूप से बहुत परेशान है।
कई बार बच्चे बाहरी शोर-शराबे के कारण सो नहीं पाते हैं। वहीं कई पेरेंट्स बच्चे के सोने के दौरान तेज आवाज में मोबाइल या टीवी देखते रहते हैं। इससे भी बच्चे की नींद खराब होती है। जबकि बच्चे को शांति से सोने देना चाहिए। किसी तरह की आवाज के कारण स्लीप टेरर से बच्चे जाग सकते हैं।
अत्यधिक रोशनी या बिल्कुल अंधेरे में बच्चों को नहीं सुलाना चाहिए। इसके लिए कमरे में मध्यम रोशनी रखें। रोशनी बिल्कुल न होने पर भी बच्चा अचानक डर सकता है।
कई बच्चे अचानक उठकर बुरी तरह रोने लगते हैं और फिर जल्द सो जाते हैं। ऐसे में बच्चों को बाद में जगाना नहीं चाहिए। दरअसल, इस स्थिति में बच्चे का मन स्थिर नहीं होता है। उसे जगाने से वह सिर्फ परेशान ही होगा। इसकी बजाए बच्चे को खुद ब खुद जागने दें।
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कस्टमाइज़ करेंस्लीप टेरर के बाद बच्चे बेहद डर और घबरा जाते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों को दिलासा देनी चाहिए। बच्चे खुद को महफूज नहीं समझते हैं। इसलिए पेरेंट्स को उन्हें गले लगाकर और सिर सहलाकर सुलाने की कोशिश करनी चाहिए। इससे बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस करता है।
रात को सोने से पहले बच्चें को हेल्दी फूड खिलाएं। कभी भी उसे खाली पेट न सोने दें। वहीं, बच्चों को कहानी सुनाकर सुलाएं। इससे उसे अच्छी नींद आएगी।
बच्चों को सुलाने से पहले पेशाब अवश्य कराएं। पेशाब की जरूरत महसूस होना भी बच्चे की नींद में खलल डाल सकता है। कोशिश करें कि बच्चे को सोने से दो घंटे पहले तक कोई लिक्विड डाइट न दें।
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