प्रदूषण का बढ़ता स्तर खांसी का मुख्य कारण साबित हो रहा है। बैक्टीरियल इन्फेक्शन के चलते अधिकतर लोगों के मौसम में अबाने वाले बदलाव के चलते सामान्य सर्दी, संक्रमण और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस का सामना करना पड़ता है। इसके चलते जहां कुछ लोग सूसी खांसी से परेशान रहते हैं, तो कुछ को चेस्ट कंजेशन का सामना करना पड़ता है। दरअसल, खांसी का नाम आते ही लोग कई तरह के नुस्खे सुझाने लगते है या फिर लोग एक ही कफ सिरप का सेवन करते हैं। ऐसा करनेसे पहले खांसी के प्रकार की जांच करना आवश्यक है। दरअसल, प्रदूषण का बढ़ता स्तर हर तीसरे व्यक्ति में खांसी का कारण साबित हो रहा है। अगर आप भी बार बार खांसने से हो रही हैं परेशान, तो जानें खांसी के प्रकार (Different types of cough) और उसस राहत पाने की टिप्स भी।
इस बारे में डॉ अवि कुमार बताते हैं कि खांसी सामान्य तौर पर दो प्रकार की होती है। एक ड्राई कफ और दूसरा वेट कफ। लंग्स में बैक्टीरियल इंफेक्शन का बढ़ता ड्राई कफ को दर्शाता है और फेफड़ों में पानी आ जाने और निमोनिया से बलगम की समस्या बनी रहती है उसे वेट कफ कहा जाता है। इसके अलावा पैरोक्सिस्मल खांसी एपिसोडिक होती है, जो कई बार साल भर व्यक्ति की परेशानी का कारण बनी रहती है। आमतौर पर कार्डियक अस्थ्मा में इसके लक्षण देखने को मिलते है। वहीं क्रुप कफ में एयरवेज़ के ऊपरी हिस्से में सूजन रहती है।
डॉ अवि कुमार के अनुसार सूखी खांसी के दौरान गले में खराश महसूस होती है। अपर रेस्पीरेटरी इंफेक्शन यानि सर्दी और फ्लू से ये समस्या बनी रहती है। इस दौरान रेस्पीरेटरी ट्रैक में सूजन और जलन बनी रहती है। इसमें खांसने के दौरान बलगम नहीं आती है। बैठे होने के अलावा लेटने के दौरान भी ये समस्या बढ़ जाती है।
गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स डिज़ीज़ से भी ड्राई कफ का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा अस्थमा और पल्मोनरी फाइब्रोसिस से भी सूखी खांसी बनी रहती है। पल्मोनरी फाइब्रोसिस में लंग्स के टिशूज़ में थिकनेस बढ़ने लगती हैं जिससे फेफड़ों के लिए रक्तप्रवाह में ऑक्सीजन को पहुंचाना मुश्किल लगने लगता है। ऐसे में कफ का सामना करना पड़ता है।
वेट कफ को प्रोडक्टिव कफ भी कहा जाता है, जो लंग्स में संक्रमण के कारण बढ़ने लगती है। इसके चलते खांसने के दौरान लंग्स से म्यूकस यानि बलगम निकलने लगती है। निमोनिया और सीओपीडी में बलगम वाली खांसी का खतरा बढ़ने लगता है। इससे गले और चेस्ट में बार बार म्यूकस महसूस होता है।
साइनोसाइटिस के दौरान शरीर में अतिरिक्त बलगम बनने लगती है। वेट कफ लगातार बढ़ने लगती है। इससे छाती में कंजेशन बढ़ने लगता है। मेडिकल रिपब्लिक की रिपोर्ट के अनुसार अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज जैसे क्रानिक लंग डिज़ीज़ से ग्रस्त एक तिहाई लोगों को बार बार बलगम वाली खांसी अपनी चपेट में ले लेती है।
बार बार परेशान करने वाली ये खांसी शरीर में थकान का कारण बनने लगती है। डॉ अवि कुमार के अनुसार कई लोग इस खांसी से साल भर तक भी ग्रस्त रहते हैं। इस खांसी से ग्रस्त लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ का सामना करना पड़ता है।
अपर एयरवेज़ में संक्रमण का बढ़ाना अनियंत्रित खांसी का कारण बढ़ता है। इसके अलावा पर्टुसिस भी इस समस्या को बढ़ाता है, जो एक बैक्टीरियल संक्रमण है। कार्डियक अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और निमोनिया से ये समस्या बढ़ने लगती हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार क्रुप कफ वायरल संक्रमण बढ़ने से होती है। ये खांसी आमतौर पर और 5 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों में सबसे ज्यादा होता है। इससे एयरवेज़ में सूजन आ जाती है और जलन बनी रहती है। बच्चों में एयरवेज़ नैरो होने से सांस संबधी तकलीफ बढ़ जाती है। सांस लेने के दौरान छाती में से आवाज़ आती है और खांसन से कर्कश आवाज़ आने लगती है।
पोलन एलर्जी के अलावा पैराइन्फ्लुएंजा वायरस, इन्फ्लूएंजा ए और बी, मीज़लस वायरस, एडेनोवायरस या रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस के कारण ये समस्या बढ़ती है। एक से दूसरे व्यक्ति के चपेट में आने से इस समस्या के बढ़ने का खतरा रहता है। ऐसे में संक्रमित व्यक्ति या दूषित वस्तुओं के निकट जाने से परहेज करें।
शरीर को हाइड्रेट रखने का प्रयास करें। इससे गले में बढ़ने वाले संक्रमण को कम किया जा सकता है। साथ ही शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है।
इनडोर एलर्जी सूखी खांसी को बढ़ाने का काम करती है। ऐसे में ह्यूमिडिफ़ायर का इस्तेमाल करें। इससे हवा में मौजूद कणों की रोकथाम में मदद मिलती है। वे लोग जिन्हें धूल मिट्टी से एलर्जी है उन्हें इसका नियमित इस्तेमाल करना चाहिए।
हवा में मौजूद धूल, मिट्टी और पेड़ पौधों के रोएं एलर्जी को बढ़ाते हैं, जिससे खांसी का सामना करना पड़ता है। ये इनडेर और आउटडोर दोनों हो सकती है। ऐसे में मुंह को ढ़ककर बाहर निकलें और मास्क पहन कर रखें। इससे चेस्ट कंजेश से बचा जा सकता है।
हल्के गुनगुने पानी में नमक मिलाकर उससे गार्गल करें। इससे वेट कफ और सूखी खांसी दोनों का फायदा मिलता है। लंग्स में बनने वाली बलगम की मात्रा कम हो जाती है और गले में मौजूद संक्रमण को दूर किया जा सकता है।
डॉक्टरी जांच के बाद मास्क अवश्य लगाएं। इससे गले और लंग्स में बढ़ने वाले संक्रमण से बचा जा सकता है। जांच के बाद दी जाने वाले दवाओं का ही सेवन करें। दरअसल, अलग अलग प्रकार की खांसी के लिए एक ही दवा का सेवन समस्या को बढ़ा सकता है।