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नींद अगर रात भर नहीं आती, तो ये हो सकता है डायबिटीज का संकेत, जानिए इसे कैसे मैनेज किया जा सकता है  

जब आप लगातार नींद की कमी और डिस्टर्ब नींद का सामना करते हैं, तो यह आपके लिए डायबिटीज के जोखिम को बढ़ा सकता है, इसलिए इसके प्रति सतर्क रहना जरूरी है। 
इस समस्या में स्लीप पैटर्न पर ध्यान देना सबसे ज्यादा जरूरी है। चित्र: शटरस्टॉक
शालिनी पाण्डेय Updated: 20 Oct 2023, 09:24 am IST
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मधुमेह वह बीमारी है जिसमें शरीर सही तरह से इंसुलिन का निर्माण नहीं कर पाता है। इंसुलिन रक्त से ग्लूकोज को मांसपेशियों, यकृत, अन्य कोशिकाओं में स्थानांतरित करने में मदद करता है। जहां इसका उपयोग ऊर्जा के लिए किया जा सकता है। इंसुलिन प्रतिरोध तब होता है जब शरीर को इंसुलिन का उत्पादन करने में परेशानी होती है।  जब इंसुलिन ग्लूकोज को इन कोशिकाओं में स्थानांतरित करने में विफल रहता है। इससे रक्त में ग्लूकोज का निर्माण होता है, परंतु अन्य अंगो तक सुचारू रूप से न पहुंच पाने की स्थिति में शरीर में ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ने लगता है, जिसे ब्लड शुगर के नाम से जाना जाता है। डायबिटीज आपकी नींद को कैसे प्रभावित (diabetes effect on sleep) करती है, आइए समझने की कोशिश करते हैं। 

नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज़ एंड डाइजेस्टिव एंड किडनी डिजीज (एनआईडीडीके) की एक रिपोर्ट के अनुसार यह स्थिति मधुमेह का मुख्य लक्षण है।  यदि शरीर में शक्कर की मात्रा को ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाए, तो हृदय, गुर्दे और अन्य अंगों के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं

क्या है नींद और डायबिटीज का कनेक्शन 

2011 मेंआई  एनसीबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार मधुमेह और नींद आपस में जुड़े हुए हैं। टाइप 2 मधुमेह वाले लोगों में नींद की खराब गुणवत्ता या अनिद्रा की शिकायत होती ही है इस रिपोर्ट के अनुसार आहार, व्यायाम और रक्त में मौजूद शर्करा की मात्रा के सही प्रबंधन से नींद की गुणवत्ता और आपके समग्र स्वास्थ्य में बदलाव लाया जा सकता है। 

मधुमेह नींद को कैसे प्रभावित करता है?

डायबिटीज और नींद से जुड़ी 2018 में आई एनसीबीआई की एक रिपोर्ट कहती है कि ऐसा अनुमान है कि दो में से एक व्यक्ति टाइप 2 मधुमेह के साथ अस्थिर रक्त शर्करा के स्तर और मधुमेह से संबंधित लक्षणों के कारण नींद की समस्या से परेशान रहता है। रात के दौरान उच्च रक्त शर्करा (हाइपरग्लेसेमिया) और निम्न रक्त शर्करा (हाइपोग्लाइसीमिया) के कारण अनिद्रा और अगले दिन थकान भी हो सकती है। अवसाद या बीमारी से जुड़ा तनाव भी आपको रात में जगाए रख सकता है।

अपनी डेली रूटीन को सही ढंग से मैनेज कर आप बीमारी के बावजूद पा सक्तीहैन बेहतर नींद। चित्र: शटरस्टॉक

एनआईडीडीके की रिपोर्ट कहती है कि जब शरीर में रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है, तो  अधिक बार पेशाब करने के कारण गुर्दे को अधिक काम करना पड़ता है। रात के दौरान, बार-बार बाथरूम जाने से भी नींद में खलल पड़ता है। खून में चीनी की अधिक मात्रा के कारण सिरदर्द, प्यास लगना और थकान जैसी दिक्कत भी हो सकती है, जो नींद में व्यवधान उत्पन्न कर सकती है।

बिना खाए या मधुमेह की दवा लिए बिना बहुत अधिक घंटे बिताने से भी शरीर में रक्त शर्करा का स्तर कम हो सकता है। इसकी वजह से आपको बुरे सपने आ सकते हैं, पसीना आ सकता है, या जब आप जागते हैं तो चिढ़ या भ्रम महसूस हो सकता है। ये सभी कारक नींद में खलल डालते हैं।

करें डॉक्टर से संपर्क

यदि आप थकान, सोने में परेशानी या किसी अन्य चिंताजनक लक्षण का अनुभव कर रहे हैं, तो आपको चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। वे इन समस्याओं के कारणों का विश्लेषण करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही आपके रक्त शर्करा के स्तर का संतुलन बनाए रखने के लिए आपको सही सलाह दे सकते हैं।

खराब नींद भी हो सकती है डायबिटीज का कारण 

जिस तरह मधुमेह से नींद की समस्या हो सकती है, उसी तरह नींद की समस्या भी मधुमेह में भूमिका निभाती है। 2012 में आई  एनसीबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार खराब या कच्ची नींद मधुमेह और प्रीडायबिटीज वाले लोगों में उच्च रक्त शर्करा के स्तर से जोड़ा गया है। शोधकर्ताओं का मानना ​​​​है कि नींद की कमी, इंसुलिन, कोर्टिसोल और ऑक्सीडेटिव तनाव को प्रभावित करती है और आगे जाकर रक्त शर्करा के स्तर को भी प्रभावित कर सकती है

एनसीबीआई की 2020 में आई रिपोर्ट की मानें तो मधुमेह रोगियों में से एक चौथाई लोग रात में छह घंटे से कम या आठ घंटे से अधिक सोने की शिकायत करते हैं। जिससे उन्हें उच्च रक्त शर्करा (high blood sugar) होने का अधिक खतरा होता है। जिन्हें पहले से ही मधुमेह है उनमें इन्सुलिन की कमी रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाने के अलावा, नींद की कमी की दिक्कत भी पैदा करती है।

हो सकते हैं ये स्लीपिंग डिसऑर्डर

टाइप 2 मधुमेह वाले व्यक्तियों में नींद संबंधी समस्या होने की संभावना अधिक होती है, जिसमें  सबसे आम है रेस्टलेस लेग सिंड्रोम और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया।

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रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम 

एनसीबीआई की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम (आरएलएस) टाइप 2 डायबिटीज वाले पांच में से लगभग एक व्यक्ति को होता ही हैपैरों में झुनझुनी या अन्य संवेदनाएं सोने में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। 

नियमित व्यायाम बेहतर नींद में मदद कर डायबिटीज़ के प्रभाव को कम करेगा, चित्र: शटरस्टॉक

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए)

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया एक स्लीप डिसऑर्डर है, जिसमें व्यक्ति रात भर बार-बार सांस लेना बंद कर देता है। ज्यादातर मामलों में, व्यक्ति को पता नहीं होता है कि ऐसा हो रहा है हालांकि, बेड पार्टनर रोगी के खर्राटे और नींद में हांफना देख सकता है। सांस लेने में होने वाली यह दिक्कत स्ट्रेस का का कारण बनती है। जो नींद में प्राकृतिक रूप से बाधा डालती है इतना ही नहीं यह नींद की गुणवत्ता को भी खराब करती है। ‘ओएसए’ आमतौर पर उन लोगों में होता है, जो अधिक वजन वाले या मोटे होते हैं।

अब जानिए कि आप इस तरह की समस्या से कैसे निपट सकते हैं?

सही तरह से किया जाने वाला डायबिटीज मैनेजमेंट, टाइप 2 मधुमेह वाले लोगों की नींद में सुधार करने में मदद कर सकता है। मधुमेह और नींद के बीच घनिष्ठ संबंध को देखते हुए, अच्छी नींद से जुड़ी आदतें अपनाना जरूरी है। चलिए जानें कि मधुमेह के बावजूद आप कैसे अच्छी नींद पा सकती हैं:

एक ऐसे डाइट प्लान को फॉलो करें, जो शरीर में रक्त शर्करा को नियंत्रित रखने में मदद करे नियमित व्यायाम करें
रेगुलर स्लीपिंग प्लान बनाएं और इसका पालन करें
सोने से पहले कैफीन या निकोटीन जैसी चीज़ों से बचें
बेडरूम को ठंडा, अंधेरा और शांत रखें।

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शालिनी पाण्डेय

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