ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं आम तौर पर एक शिकायत करती मिलती हैं कि डॉक्टर उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेते, जो काफी हद तक सच भी है। दुर्भाग्य से महिलाओं में किशोरावस्था से ही कई छोटी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सामाजिक कंडीशनिंग और परिवार का रवैया ऐसा होता है कि उन्हें ज्यादातर लोग नजरंदाज करने की सलाह देते हैं। जबकि यह लापरवाही अधेड़ उम्र तक आते उन्हें कई शारीरिक-मानसिक समस्याओं का शिकार बना देती है।
इसलिए यह जरूरी है कि इस साल के पहले ही दिन आप उन समस्याओं को पहचान लें और उनसे मुकाबला करने को तैयार हो जाएं। क्योंकि आप हैं, तो ये दुनिया इतनी सुंदर है।
ज्यादातर लड़कियां मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों को तब तक इग्नोर करती रहती हैं, जब तक वे गंभीर नहीं हो जाते। 2017 में हुए शोध के अनुसार, बढ़ती उम्र में मानसिक बीमारियां चिंता और अवसाद जैसी मानसिक बीमारियों के लिए सबसे कमजोर समूह हैं। विश्व स्वास्थ्य संस्थान (WHO) व मेंटल हेल्थ अमेरिका ब्यूरो के अनुसार, 14 से 18 साल की उम्र की लड़कियों में लड़कों की तुलना में अवसाद की दर अधिक है।
पिछले दस वर्षों में आत्मघाती व्यवहार हेतु अस्पताल में भर्ती किशोर लड़कियों की संख्या में 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि का हिस्सा सामाजिक वर्जनाओं और मानसिक बीमारी के बारे में अधिक जागरूकता से समझाया जा सकता है, क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे का जिक्र महिलाओं में असम्मानजनक समझा जाता है।
हालांकि आत्महत्या के प्रयास लड़कियों में अधिक मिलते हैं, लेकिन आत्महत्या करने वालों की संख्या व दर लड़कों में अधिक है | भारत में आत्महत्या कुंआरी लड़कियों की अपेक्षा नव विवाहित लड़कियों में अधिक पाई गई है |
इसका कारण अज्ञात है परन्तु इसे एंडोमेट्रियोसिस से जोड़ कर देखा जाता है। निदान में असफलता का एक कारण दर्द का स्तर को समझ पाना या जांच पाना लगभग असम्भव होता है। 2012 के एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 25 प्रतिशत तक युवा महिलाओं में डिसमेनोरिया होता है और उन्हें दवा की आवश्यकता होती है।
यह उनकी पढ़ाई, काम काज व सामाजिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित करता है। उपचार में योग ध्यान व हार्मोनल गर्भनिरोधक और दर्द निवारक दवाएं कारगर हो सकती हैं।
यह एक आम दर्दनाक स्थिति है, जिसमें जहां गर्भाशय के ऊतक अन्दुरूनी परत जिसे एंडोमीटरीयम कहते है फूलकर गर्भाशय से बाहर बढ़ने लगती है। चिकित्सकों के अनुसार पिछले तीन दशक में पहले की तुलना में युवतियों मे इसकी दर में काफी इजाफा देखा गया है। यह प्रजनन आयु प्यूबर्टी से मेनोपाज तक की सभी महिलाओं में को 10 प्रतिशत तक प्रभावित करती है।
यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है और युवावस्था में लड़कियों में अधिक होती है। जॉन हॉपकिन संस्थान के अनुसार लगभग 90 प्रतिशत महिलाएं इससे प्रभावित होती है है। अक्सर यह 15 से 34 वर्ष की आयु में अधिक होती है, जिससे दुनिया भर में 5 मिलियन महिलाएं प्रभावित हैं, लेकिन यह ज्ञात नहीं है कि युवा महिलाएं इसके लिए सबसे कमजोर समूह क्यों हैं।
यह सुझाव दिया गया है कि एस्ट्रोजेन की एक भूमिका हो सकती है, और तनाव या बीमारी या मनोवैज्ञानिक दबाव इसे ट्रिगर कर सकते हैं | तो सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप तनाव से दूर रहें।
यह एक चयापचय विकार है, जो उच्च रक्त शर्करा का कारण बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 8.5 प्रतिशत लोगों को मधुमेह है। 2016 में हुए शोध में पाया गया कि युवा, जाहिरा तौर पर स्वस्थ महिलाएं तेजी से टाइप 2 मधुमेह की गिरफ्त में आ रहीं हैं।
यह प्रवृत्ति पहली बार 2011 में सामने आई थी। शुरुआत में लक्षणों में योनि का सूखापन और यूटीआई देखे जाते हैं और जांच से मधुमेह का पता लगता है। अनेक बार यह प्रेगनेंसी के दौरान उच्च रक्त चाप के साथ पाया गया है |
एक अंतःस्रावी विकार है जो 7 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करता है। यह अंडाशय के अल्सर और सूजन का कारण बनता है। सेंटर फॉर यंग वीमेन हेल्थ का अनुमान है कि 5 से 10 प्रतिशत किशोरियों और युवा महिलाओं में यह होता है। यह अक्सर पहली बार मासिक धर्म के बाद चिन्हित होता है। केवल 20 के दशक में महिलाओं में लक्षण पैदा करना शुरू कर सकती हैं। इससे पीरियड्स व गर्भ धारण में कठिनाई हो सकती है।
तो गर्ल्स, इन दुश्मनों को अब आप जान गईं हैं। बस थोड़ी सी हिम्मत, जागरुकता और समझदारी से इन्हेें परास्त करने के लिए तैयार हो जाइए।
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