भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय सहित विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों ने यह सुझाव दिया है कि कोरोना वायरस के हल्के और मध्यम लक्षण होने पर आप अस्पताल जाने की बजाए घर पर भी अपना ध्यान रख सकते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने इस सुझाव का पालन किया और वे कोविड-19 से रिकवर हुए।
पर अब हम कोविड-19 के पीक टाइम में प्रवेश कर चुके हैं। इसका मतलब है कि संक्रमण के फैलने के और ज्यादा जोखिम। ऐसे में अगर हल्के या मध्यम लक्षण हैं तो होम आइसोलेशन का फैसला करने से पहले आपको अपने परिवार के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा।
कोरोना संक्रमित के होम आइसोलेशन पर रहने के लिए उसके परिवार का स्वस्थ होना बेहद जरूरी है। कोरोना संक्रमित की जांच के साथ-साथ परिवार के सभी सदस्यों की भी जांच आनिवार्य है। यदि परिवार का कोई सदस्य सामान्य बीमारी से भी ग्रसित है तो मरीज को होम आइसोलेट नहीं किया जाना चाहिए।
हम बताते हैं वे 4 मेडिकल कंडीशन, जिनमें से किसी एक के भी होने पर आपको घर पर ठीक होने का फैसला करने की बजाए अस्पताल जाना चाहिए।
इस बात की तरफ आपको सबसे पहले ध्यान देना होगा। क्योंकि यह एक नहीं दो व्यक्तियों के जीवन से जुड़ा मामला है। अगर आपके परिवार में कोई महिला गर्भवती है और आपको कोविड-19 के हल्के या मध्यम लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो आपको अस्पताल जाकर ही उपचार करवाना चाहिए।
गर्भावस्था में इम्यूनिटी बहुत कमजोर हो जाती है। ऐसे में इस बात का जोखिम बहुत ज्यादा है कि वे हल्के संक्रमण से भी संक्रमित हो जाएं। इस स्थिति में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए बहुत ज्यादा गर्म तासीर वाली चीजें भी नहीं दी जा सकतीं।
यदि आपकी उम्र 45 से ज्यादा है और आप किडनी संबंधी किसी समस्या से जूझ रहे हैं, तब भी आपको हल्के लक्षण होने पर अस्पताल जाना चाहिए। इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी (आईएसएन) की हाल ही में आई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि कोरोना वायरस फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि किडनी को भी संक्रमित करता है।
संक्रमित लोगों की जांच में करीब 25 से 50 फीसदी मामलों में यह देखा गया कि कोरोना वायरस ने उनकी किडनी को भी प्रभावित किया था।
हाल-फिलहाल में आपके परिवार में अगर किसी को हृदय संबंधी किसी भी तरह की समस्या का सामना करना पड़ा है, तो आपके लिए होम आइसोलेशन का निर्णय लेना गलत हो सकता है। यह ऐसी मेडिकल कंडीशन है जो इम्यूनिटी पर बहुत ज्यादा असर डालती है और कभी भी स्थिति आपातस्थिति हो सकती है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध में यह बात सामने आई कि हृदय संबंधी समस्या होने पर कोरोना वायरस ज्यादा घातक हो सकता है। कोविड-19 संक्रमित होने पर जिन रोगियों की मृत्यु हुई उनमें सबसे 10.5 फीसदी रोगी पहले से ही हृदय संबंधी बीमारियों से ग्रस्त थे।
इन आंकड़ों का अर्थ यह है कि हृदय संबंधी बीमारी होने पर व्यक्ति का इस संक्रमण से उबरना काफी जटिल हो जाता है। ऐसे में अपने एजिंग पेरेंट्स को किसी तरह के जोखिम में डालना ठीक नहीं।
कोरोनावायरस सबसे ज्यादा फेफड़ों पर असर करता है। और अगर आपके परिवार में कोई व्यक्ति पहले से ही निमोनिया या श्वास संबंधी किसी अन्य समस्या का शिकार है तो आपको उनकी सेहत के लिए होम आइसोलेशन का फैसला नहीं लेना चाहिए।
विभिन्न स्वास्थ्य एजेंसियों से जारी सूचना में अब यह बात भी सामने आ चुकी है कि ज्यादातर लोगों को बाहर की बजाए घर में कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा होता है।
कारण स्पष्ट है, कि घर में सोशल डिस्टेंसिंग सबसे मुश्किल होती है। और आप क्वारंटीन और होम आइसोलेशन के बावजूद घर के पर्यावरण को कीटाणुमुक्त नहीं कर पाते।
इसलिए अगर परिवार में उपरोक्त में से किसी भी मेडिकल कंडीशन से ग्रस्त व्यक्ति है तो होम आइसोलेशन की बजाए अस्पताल जाकर कोरोना वायरस का इलाज करवाना बेहतर होगा।