कोरोनावायरस (Coronavirus) की अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है। इससे बचना पूरी तरह आपकी इम्यूनिटी पर निर्भर करता है। पर हेपेटाइटिस लिवर (Liver) को डैमेज कर उसमें बनने वाले प्रोटीन को बाधित करता है। जिससे मरीज की इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है। ऐसे में हेपेटाइटिस (Hepatitis) से ग्रस्त व्यक्ति के लिए कोरोना वायरस से मुकाबला करना बेहद जटिल हो जाता है। कोविड-19 महामारी (Covid-19) के समय में आपको हेपेटाइटिस के प्रति और भी ज्यादा सजग और सतर्क रहना होगा।
हेपेटाइटिस की खोज करने वाले वैज्ञानिक डा. बारूख ब्लंबरबर्ग के जन्म दिन पर 28 जुलाई को हर वर्ष विश्व हेपेटाइटिस दिवस (World Hepatitis Day) मनाया जाता है। इस आयोजन का मकसद हेपेटाइटिस के प्रति लोगों को जागरूक करना है।
वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे 2020 की थीम ‘फाइंड द मिसिंग मिलियंस’ (Find the missing millions)है। हेपेटाइटिस के बारे में लोगों में जागरूकता की काफी कमी है। इसके चलते इसकी पहचान और उपचार में देरी कई बार जान पर भारी पड़ जाती है। हेपेटाइटिस से बचाव के लिए सबसे पहला और जरूरी उपाय हाथों को साफ रखना है।
विशेषज्ञों की मानें तो हमारे देश में इस समय हेपेटाइटिस-बी (Hepatitis-B) के चार से पांच करोड़ मरीज हैं। वहीं हेपेटाइटिस-सी (Hepatitis-C) से ग्रस्त लोगों की संख्या 2 करोड़ के लगभग है। समय पर रोग की पहचान न हो पाने और उपचार में देरी होने के कारण हर वर्ष ढाई लाख लोगों की इस बीमारी से मौत हो जाती है। इसका पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाना जरूरी है।
हेपेटाइटिस लिवर संबंधी बीमारी है। इसका संक्रमण फैलने के मुख्यत: दो कारण होते हैं – पहला दूषित पानी और दूसरा संक्रमित खून से। जबकि संक्रमित व्यक्ति के साथ सेक्स और प्रसव के दौरान मां से बच्चे को भी हेपेटाइटिस हो सकता है।
संक्रमण के अलग-अलग कारणों के आधार पर इसे हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी व ई में विभाजित किया जाता है। सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात की है कि हेपेटाइटिस के लक्षण महीनों तक साइलेंट रहते हैं और लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। इसलिए आपको इसके साइलेंट लक्षणों को समझना भी जरूरी है।
हेपेटाइटिस के शुरूआती लक्षण शांत होते हैं। मरीज को इसकी जानकारी भी नहीं होती है। लिवर में संक्रमण फैलने पर मरीज को जानकारी होती है। इसलिए इस बीमारी से बचने के लिए शुरूआत में ही सचेत रहने की आवश्यकता है।
कोलंबिया एशिया अस्पताल के वरिष्ठ परमार्शदाता और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉ.मनीष काक ने बताया कि हेपेटाइटिस एक वायरल बीमारी है, जो एक संक्रमित व्यक्ति में वर्षों तक शांत अवस्था में रहती है। यह तब तक शांत रहती है, जब तक कि व्यक्ति क्रोनिक स्टेज में नहीं पहुंच जाता।
इसके लक्षण होते हैं, भूख न लगना, उल्टी आना, त्वचा या आंखों के सफेद हिस्से का पीला पड़ जाना, बुखार और थकान जो कई हफ्ते या महीनों तक बनी रहे। शांत अवस्था के कारण ही हेपेटाइटिस की पहचान करना और उपचार करना दोनों मुश्किल होता है। अधिकांश लोगों को लीवर खराब होने के बाद पता चलता है। इसलिए इसके प्रारंभिक लक्षण दिखने पर हेपेटाइटिस की जांच करानी चाहिए।
दुर्भाग्य से अभी तक कोरोनावायरस की वैक्सीन नहीं बन पाई है। जितने भी लोग इससे रिकवर हो रहे हैं, उसमें उनकी इम्यूनिटी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पर हेपेटाइटिस में मरीज की इम्यूनिटी सबसे कमजोर हो चुकी होती है।
हेपेटाइटिस का वायरस लिवर पर अटैक करता है, जिससे उसमें बनने वाला मुख्य प्रोटीन बाधित हो जाता है। ऐसे मरीजों को इम्यूनो कॉम्प्रोमाइज़्ड (immunocompromised patients) कहा जाता है। इम्यूनो कॉम्प्रोमाइज़्ड लोगों पर जब कोविड-19 का वायरस हमला करता है तो वे उसका मुकाबला नहीं कर पाते और स्थिति ज्यादा घातक हो जाती है।
डॉ. मनीष ने बताया कि हेपेटाइटिस के इलाज के लिए बनाई गई दवा का कोविड-19 मरीजों में प्रभावकारिता के लिए उपयोग की जा रही है और शुरूआती स्तर में इसमें सफलता भी मिली।
पर सबसे ज्यादा जरूरी है साफ-सफाई का ख्याल रखना। यह फॉर्मूला हेपेटाइटिस और कोरोनावायरस दोनों से ही बचाव का मुख्य हथियार है।