शरीर को हेल्दी बनाए रखने के लिए आहार के पाचन से लेकर उसका एबजॉर्बशन होना आवश्यक है। मगर साथ ही नियमित वॉबल मूवमेंट शरीर को संतुलित रखने में मदद करती है। मगर दिनों दिन बढ़ रहा प्रोसेस्ड फूड का चलन कब्त का कारण साबित हो हो रहा है। अनहेल्दी फैट्स और लो फाइबर डाइट ब्लोटिंग, पेट दर्द, कब्ज और अपच का कारण साबित होते है, जो हर उम्र के लोगों में पाई जाती है। कब्ज की समस्या असामान्य इंटेस्टिनल हैबिट का कारण बनती है। कब्ज की समस्या असामान्य इंटेस्टिनल हैबिट का कारण साबित होती है। जानते हैं कॉस्टीपेशन अवेयरनेस मंथ (Constipation awareness month) के मौके पर रोजमर्रा के जीवन में की जाने वाली वो कौन सी गलतियां हैं, जो कब्ज का कारण साबित होती हैं।
लोगों में दिनों दिन बढ़ रही कब्ज की स्थिति के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल कॉस्टीपेशन अवेयरनेस मंथ (Constipation awareness month) मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर फाउंडेशन की ओर मनाए जाने वाले इस कैंपेन पर लोगों को पाचन स्वास्थ्य, देखभाल के उपाय और इसके कारणों की जानकारी दी जाती हैं इस साल मनाए जाने वो इस कैंपेन की थीम ब्रेकिंग बेरीयर ब्रींग गैप (Breaking barrier bring gap) है।
रिसर्चगेट की रिपोर्ट के अनुसार कब्ज एक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कंडीशन है, जिससे आंतों की परत में सूजन पैदा होने लगती है। ये समस्या सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है। भारत में सामान्य आबादी में करीबन 22 फीसदी और बच्चों में 29.6 फीसदी मामले पाए जाते है। युवा आबादी की तुलना में बुज़ुर्गों में कब्ज के मामले ज़्यादा हैं। रिसर्च के अनुसार बुज़ुर्ग महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कब्ज की समस्या ज्यादा होती है।
सप्ताह में तीन बार से कम सूखा और कठोर मल त्यागना कब्ज कहलाता है। दरअसल, डाइजेस्टिव डिसऑर्डर के कारण स्टूल पास करने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है। ये समस्या एक्रूट और क्रॉनिक दोनों हो सकती है। जहां कुछ लोग दिन में 2 से 3 बार मल त्याग करते हैं, तो वहीं कुछ सप्ताह में एक से दो बार ही मल त्यागते हैं। रोजमर्रा के जीवन की कुछ सामान्य गलतियां कब्ज का कारण बनने लगती हें।
आर्टिमिस अस्पताल गुरूग्राम में सीनियर फीज़िशियन डॉ पी वेंकट कृष्णन बताते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ कब्ज कई स्वास्थ्य समस्याओं का लक्षण बनने लगती है। दरअसल, पेट में एकत्रित विषैले पदार्थो को डिटॉक्स न कर पाना कब्ज का कारण बनता है। इससे पेट में दर्द व ऐंठन का सामना करना पड़ता है। लंबे वक्त तक इस समस्या से ग्रस्त रहते हैं, उसे क्रानिक कॉस्टीपेशन कहा जाता है। कई बार अनियमित खानपान और न्यूट्रिएंट्स के एब्जॉर्बशन की कमी भी पाचनतंत्र केअसंतुलन का कारण साबित होती है।
2018 के गट हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में 22 फीसदी लोग कब्ज से पीड़ित हैं। इनमें से 59 फीसदी लोगों को गंभीर कब्ज की शिकायत रहती है और 27 फीसदी में इसके सामान्य लक्षण पाए जाते है। कब्ज का सबसे आम प्रकार नॉर्मल ट्रांसिट है। पेल्विक फ्लोर डिसफंक्शन कब्ज का एक अन्य प्रकार है, जिसमें व्यक्ति मल त्याग करने के लिए पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को सही ढंग से रिलैक्स करने और कॉर्डिनेट करने में असमर्थ होता है। वहीं लंबे वक्त तक कब्ज की समस्या से परेशान रहना क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन कहलाता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटीज़, डाइजेस्टिव एंड किडनी डिजीज की एक रिपोर्ट के अनुसार कब्ज़ समस्या एक लक्षण समान है। सामान्य तौर पर कब्ज़ सप्ताह में तीन दिन तक रहती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार दुनियाभर में कब्ज से 16 फीसदी लोग प्रभावित हैं। वहीं 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में ये समस्या 33.5 फीसदी पाई जाती है।
व्यायाम के बाद होने वाली स्वैटिंग या फिर बुखार समेत अन्य कई कारणों से शरीर में फ्लूइड की कमी बढ़ने लगती है। ऐसे में पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन न करना डिहाइड्रेशन का कारण बनने लगता है। इसके चलते शरीर में थकान रहती है और मल त्याग करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
दिनों दिन प्रोसेस्ड फूड के बढ़ते चलन के कारण शरीर को फाइबर की प्राप्ति नहीं होती है, जो कब्ज का कारण बनता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार डाइट में फाइबर की कमी कब्ज का कारण साबित होती है। सॉल्यूबल फाइबर प्रीबोयाटिक के तौर पर काम करता है और पानी का एबजॉर्ब करके जेल सबस्टांस बनाने लगता है। वहीं इन सॉल्यूबल फाइबर कोलन को क्लीन रखने में मदद करता है।
नियमित रूप से व्यायाम न करने से मेटाबॉलिज्म धीमा होने लगता है। साथ ही ब्लड सर्कुलेशन में कमी आने लगती है। इससे आंतों की मांसपेशियां में कमजोरी बढ़ने लगती हैं, जिससे मल त्याग में बाधा बढ़ने लगती है। गतिशील जीवनशैली को अपनाने से कब्ज के लक्षणों को कम किया जा सकता है। साथ ही लार्ज इंटेस्टाइल की मांसपेशियां रिलैक्स हो जाती हैं।
समयानुसार खाना न खाने से शरीर को पोषण की प्राप्ति नहीं हो पाती है। साथ ही पोषक तत्वों के एबजॉर्बशन की कमी भी बनी रहती है। ऐसे में नियमित रूप से स्टून पास न कर पाने का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को दूर करने के लिए नेचुरल गट पैटर्न को फॉलो करें।
डेयरी प्रॉडक्ट्स का सेवन करने से शरीर में प्रोटीन की मात्रा बढ़ने लगती है, जो कब्ज का कारण साबित होता है। साथ ही लैक्टोज़ इंटोलरेंट को बढ़ाता हैं। दूध में कैसिन कंपाउंड होता है, जो गट में मौजूद बैक्टीरिया के साथ मिलकर लैक्टोज़ इंटोलरेंट को बढ़ाता है और ब्लोटिंग, कब्ज व उल्टी की समस्या बनी रहती है।
प्रोबायोटिक्स से आंत के स्वास्थ्य को मज़बूती मिलती है। इससे गट हेल्थ को हेल्दी बैक्टीरिया की प्राप्ति होती है, जिससे गट फ्लोरा हेल्दी रहता है और डाइजेशन भी इंप्रूव होने लगता है। सके लिए आहार में दही, लस्सी, अलकलाइन वॉटर और अचार का सेवन करें।
खाना खाने के बाद बैठने की जगह कुछ देर टहलें। साथ ही मल त्याग को उत्तेजित करने के लिए वॉक करें और विंड रिलीजिंग पोज़ यानि पवनमुक्तासन योगासन का अभ्यास करें।। इससे पाचन को मज़बूती मिलती है।
पाचन में सहायता करने वाले हेल्दी वसा के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड को बाहार में शामिल करें। इसके अलावा आहार में नारियल तेल, घी और एवोकाडो को शामिल करें। इससे आहार संतुलित बना रहता है।
शरीर को हाइड्रेट बनाए रखने और इलेक्ट्रोलाइट्स को संतुलित रखने के लिए पानी पीएं। साथ ही छाछ, नींबू पानी और स्मूदी का सेवन करें। इससे शरीर को फाइबर की प्राप्ति होती है और डिहाइड्रेशन से बचा जा सकता है। न्यूट्रिएंट्स जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कैफीन और शराब का सेवन करने से निर्जलीकरण का खतरा बना रहता हैं।
भरपूर नींद न लगने से तनाव बढ़ने लगता है, जो हार्मोनल इंबैलेंस का कारण साबित होता है। ऐसे में कई कारणों से बढ़ने वाला तनाव और एंग्ज़ाइटी से पाचनतंत्र असंतुलित होने लगता है। ऐसे में स्वस्थ्स आहार लें और अनिद्रा से बचें।