एक्स्ट्रा चर्बी, एक्सीडेंट या शरीर में किसी तरह के मॉडिफिकेशन के लिए प्लास्टिक सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है। खासतौर से दुर्घटना में अपना अंग खोने या बर्निंग या एसिड अटैक जैसी घटनाओं का सामना करने वाले लोगों के लिए यह तकनीक वरदान साबित हुई है। इसके बावजूद प्लास्टिक सर्जरी को लेकर लोगों के मन में तरह-तरह की गलतफहमियां या भ्रांतियां बनी हुई हैं। आइये इस विषय को और गहराई से जानते हैं। ताकि इस स्पेशियलिटी के बारे में जो भी गलत जानकारियां आपके मन में हैं, उन्हें दूर कर इसे सही तरीके से समझने में आसानी हो।
सबसे प्रमुख गलतफहमी तो यही है कि प्लास्टिक सर्जरी को कॉस्मेटिक सर्जरी का पर्याय समझा जाता है, जो कि सही नहीं है। सच तो यह है कि प्लास्टिक सर्जरी के तीन भाग होते हैं: करेक्टिव सर्जरी, रीकन्स्ट्रक्टिव सर्जरी और कॉस्मेटिक सर्जरी।
प्लास्टिक सर्जरी से जुड़ी एक और गलत धारणा यह है कि इससे किसी भी व्यक्ति का पूरा चेहरा-मोहरा बदला जा सकता है। ऐसा कुछ नहीं है, यह पूरी तरह से गलत धारणा है। बेशक, प्लास्टिक सर्जरी की मदद से किसी व्यक्ति के चेहरे के कुछ फीचर्स को कुछ हद तक बदलना मुमकिन होता है। लेकिन बेसिक लुक और एपियरेंस नहीं बदलते, वे पहले जैसे ही रहते हैं।
गलत धारणा यह है कि प्लास्टिक सर्जरी सिर्फ महिलाएं करवाती हैं। यह भी पूरी तरह से गलत सोच है। ऐसी कई सर्जिकल प्रक्रियाएं हैं, जिन्हें सिर्फ पुरुषों द्वारा करवाया जाता है। वे बोटोक्स और लिपोसक्शन जैसी सर्जिकल प्रक्रियाओं को पसंद करते हैं। सच तो यह है कि आने वाले समय में पुरुषों द्वारा प्लास्टिक सर्जरी का इस्तेमाल और बढ़ने वाला है।
गलत धारणा यह है कि जलने की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हुए लोग सर्जरी यानि स्किन ग्राफ्टिंग के बाद अपने रोज़मर्रा के कामकाज के लिए किचन में नहीं जा सकते हैं। यह भी पूरी तरह से गलत और आधी-अधूरी जानकारी है। सच यह है कि ग्राफ्टिंग के मैच्योर होने के बाद व्यक्ति कुकिंग जैसे रोज़-बरोज़ के काम कर सकते हैं।
पांचवी गलत धारणा लिपोसक्शन के बारे में है कि जो कि मांसपेशी और त्वचा के बीच जमा हुई चर्बी को हटाने के लिए इस्तेमाल की जाती है। ऐसा माना जाता है कि लिपोसक्शन कराने के बाद चर्बी दोबारा वापस आ जाती है। बेशक, ऐसा हो सकता है क्योंकि यह कॉन्टोरिंग (रीशेपिंग) सर्जरी होती है। इसलिए लिपोसक्शन करवाने वाले व्यक्ति को लगातार खुद को फिट और अपनी मनपसंद शेप में रखने के लिए कुछ न कुछ प्रयास/गतिविधियां करते रहने की जरूरत होती है।
छठी गलत धारणा यह है कि रीकन्सट्रक्टिव सर्जरी प्राय: जीवनरक्षा के लिए या मरीज़ के हाथ-पैरों को बचाने के लिए की जाती है। लोगों को लगता है कि सर्जरी के बाद वापस शरीर के उस हिस्से को वापस नॉर्मल शेप और साइज़ में लौटाया जा सकता है। जैसा कि पहले था, लेकिन यह सच नहीं है, नॉर्मल शेप दोबारा नहीं मिल पाती। शरीर में कोई न कोई विकृति बनी रहती है या बाद में दिखायी दे सकती है।
एक अन्य गलत धारणा यह है कि प्लास्टिक सर्जरी के बाद प्रभावित भाग पर कोई निशान (स्कार) नहीं रहता, घाव पूरी तरह से भर जाता है और व्यक्ति पहले की तरह दिखने लगता है। जबकि सच्चाई इससे उलट है। प्रभावित अंग पर चीरा लगने के बाद कटने का निशान बना रहता है।
यह चीरा शरीर पर निशान छोड़ सकता है। यह पूरी तरह से नैचुरल होता है और कम दिखायी देता है क्योंकि सर्जन की कोशिश रहती है कि चीरा ऐसी जगह पर लगाया जाए जो एकदम से दिखायी न दे। ये निशान नॉर्मल होते हैं और इन्हें धुंधलाने में वक्त लग सकता है।
आठवीं गलत धारणा यह है कि अक्सर महिलाएं सोचती हैं कि ब्रैस्ट ऑग्मेंटेशन (स्तन का साइज़ बढ़वाने की सर्जरी) के बाद वे स्तनपान नहीं करवा सकेंगी। यह पूरी तरह से गलत है – प्रेग्नेंट होने या बच्चा प्लान करने के समय, पहले ब्रैस्ट सर्जरी (ऑग्मेंटेशन या रिडक्शन) कई महिलाओं को यह चिंता सताती है कि शायद वे अपने शिशु को स्तनपान नहीं करवा सकेंगी। वे भले ही कुछ भी सोचें लेकिन सच्चाई यह है कि ब्रैस्ट सर्जरी के बाद भी स्तनपान करवाया जा सकता है।
प्लास्टिक सर्जरी संबंधी एक और गलत धारणा यह है कि कुछ लोगों को लगता है कि इस सर्जरी का प्रयोग सिर्फ सौंदर्य बढ़ाने के मकसद से किया जाता है। यह भी गलत जानकारी है कि प्लास्टिक सर्जरी सिर्फ अमीरों के लिए है।
सच तो यह है कि प्लास्टिक सर्जरी का इस्तेमाल वे लोग करते हैं जो अपने शरीर के किसी भाग को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं, या वे अपने किसी बॉडी पार्ट के लुक को बदलना चाहते हैं जिसे लेकर वे लंबे समय से परेशान रहते आए होते हैं। यह फैसला पूरी तरह से उनका अपना होता है।
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