अध्ययन में सामने आया है कि जिन बच्चों का बचपन मां-बाप की छत्रछाया से दूर होता है वे बच्चे समाज में सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई महसूस करते हैं। शैशवावस्था में उपेक्षित महसूस करने से बच्चों की मस्तिष्क संरचना पर एक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अगर आपके परिवार में भी बच्चे हैं, तो सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा उपेक्षित महसूस न करे क्योंकि बचपन की भावनात्मक उपेक्षा से मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अध्ययन में पाया गया है कि बचपन की उपेक्षा मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। यह अध्ययन ऐसे शिशुओं पर आधारित था जिनकी माताओं ने अपने बचपन में किसी तरह की उपेक्षा का सामना किया था।
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी लैंगोन हेल्थ के प्रमुख कैसेंड्रा हेंड्रिक्स, ने कहा, “इन परिणामों से पता चलता है कि हमारे मस्तिष्क का विकास न केवल हमारे स्वयं के जीवन से होता है, बल्कि उन चीजों से भी प्रभावित होता है, जो हमारे माता-पिता के साथ घटित हुई थीं।”
अध्ययन के लिए, जर्नल बायोलॉजिकल साइकियाट्री : कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस एंड न्यूरोइमेजिंग नामक पत्रिका में प्रकाशित, टीम ने गर्भावस्था के पहले तिमाही में शुरू होने वाली 48 मातृ-शिशु जोड़ियों का अध्ययन किया।
बचपन के आघात (शुरुआती दुरुपयोग या उपेक्षा के अनुभव) का आकलन करने के लिए माताओं को एक प्रश्नावली दी गई। इस अध्ययन में माताओं का मूल्यांकन वर्तमान, प्रसव पूर्व तनाव के स्तर और चिंता और अवसाद के स्तर पर किया गया था।
जन्म के एक महीने बाद, शिशुओं के मस्तिष्क को, एक resting-state functional magnetic resonance imaging द्वारा स्कैन किया गया। इस तकनीक का उपयोग तब किया जाता है, जब बच्चे सो रहे होते हैं।
Prefrontal cortex और Anterior cingulate cortex ये दोनों ही हमारे मस्तिष्क के बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्से हैं। और इस अध्ययन में यह घबराने या डरने जैसे भावों का संकेत दे रहे थे। ये दोनों क्षेत्र हमारे भावों और समय-समय पर होने वाली प्रतिक्रियाओं को रेगुलेट करते हैं।
माताओं के वर्तमान तनाव के स्तर को नियंत्रित करने के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि एक मां ने अपने बचपन में जितनी अधिक भावनात्मक उपेक्षा का अनुभव किया था, उतना ही उनके बच्चे की कोशिकाओं ने री-एक्ट किया।
उपर्युक्त अध्ययन से यह साबित होता है कि एक बच्चा अगर आज अपने बचपन में उपेक्षित है, तो वह बड़ा होकर भी अपने होने वाले शिशु को एक भय मुक्त वातावरण देने में असमर्थ रहेगा। इसलिए बच्चों के पालन-पोषण में माता-पिता दोनों को ही अपने निजी विवादों को दूर रखना चाहिये।
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