क्या फिजियोथेरेपी जेस्टेशनल डायबिटीज को रोकने में मदद कर सकती है? चलिए पता करते हैं
प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव की वजह से ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। इससे गर्भवती महिला में जेस्टेशनल डायबिटीज होती है। यह जनसंख्या, आयु, सहवर्ती कारकों, वजन और बॉडी मास इंडेक्स के आधार पर इसकी व्यापकता 1-14 प्रतिशत तक हो सकती है। ज्यादातर गर्भवती महिलाओं में से लगभग 4 प्रतिशत में यह समस्या होती हैं, जो गर्भावधि मधुमेह मेलिटस के कारण होती हैं।
गर्भावस्था के दौरान बहुत सारे बदलाव होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं हार्मोनल उतार-चढ़ाव। जैसे-जैसे गर्भावस्था बढ़ती है, हार्मोन कोर्टिसोल और एस्ट्रोजन भी बढ़ने लगता है। जिससे इंसुलिन प्रतिरोध और शुगर लेवल में भी बढ़ोतरी होती है। इन हार्मोन्स का सबसे ज्यादा असर 26वें से 33वें हफ्ते तक देखने को मिलता है। इस प्रकार, जेस्टेशनल डायबिटीज की जांच गर्भधारण के 24वें और 28वें सप्ताह के बीच होती है।
शुगर लेवल की नियमित निगरानी से शिशु और मां को स्वस्थ रखा जा सकता है।
जानिए किस प्रकार का हो सकता है खतरा :
- हाई रिस्क ( High risk ) : मोटापा, ग्लाइकोसुरिया (यूरीन में शुगर की मौजूदगी )
- लो रिस्क ( Low risk ) : 25 वर्ष से कम आयु, सामान्य वजन बढ़ना
- एवरेज रिस्क ( average risk ) : दिए गए किसी भी श्रेणी में फिट न हों, लेकिन गर्भधारण के 24-28वें सप्ताह के बीच स्क्रीनिंग टेस्ट से गुजरना चाहिए।
जेस्टेशनल डायबिटीज का निदान ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट करके किया जाता है। इस टेस्ट में मरीज को 75 ग्राम ग्लूकोज दिया जाता है और दो घंटे बाद शुगर लेवल की जांच की जाती है। कट-ऑफ वैल्यू >140 मिलीग्राम/डीएल, और 120 मिलीग्राम/डीएल से ऊपर की किसी भी चीज़ की नियमित निगरानी की आवश्यकता होती है।
जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस के लिए फिजियोथेरेपी प्रबंधन
इस स्थिति में आपके लिए फिजियोथेरेपी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती सकती है। सक्रिय जीवनशैली वाली महिलाओं की तुलना में गतिहीन महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज होने का खतरा काफी ज्यादा होता है। इसमें रेजिस्टेंस और एरोबिक दोनों को शामिल किया जाना चाहिए।
अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन (ACSM) के दिशानिर्देशों के अनुसार, हफ्ते में कम से कम तीन दिन व्यायाम करने की सलाह दी गई है।
हफ्ते में कम से कम तीन बार 30-40 मिनट चलने की सलाह इसके लिए दी जाती है। जबकि किसी की निगरानी में सप्ताह में दो बार प्रतिरोध एक्सरसाइज की सलाह दी जाती है। इन दोनों का एक संयोजन धीरे-धीरे शुगर लेवल को बनाए / कम कर सकता है।
ACSM दिशानिर्देशों के अनुसार, व्यायाम के लिए FIIT सिद्धांत का उपयोग किया जाता है
फ्रीक्वेंसी : सप्ताह में 3-5 बार
इंटेंसिटी : मोडिफाइड borgs स्केल या एचआर अधिकतम के 60-90 प्रतिशत के अनुसार अभ्यास करना । इन चीजों का मूल्यांकन आपके फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा किया जाता है और आपके लिए एक व्यायाम योजना बनाई जाती है।
समय: दिन में 30-40 मिनट
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंप्रकार: ऊपरी और निचले अंगों के एरोबिक और रेजिस्टेंस एक्सरसाइज
जेस्टेशनल डायबिटीज में अगर फिजियोथेरेपी करवा रहीं हैं, तो इन बातों का ध्यान रखना है जरूरी
- आपकी रिपोर्ट और गर्भावस्था स्कैन, वजन बढ़ना, शुगर लेवल आदि के विस्तृत मूल्यांकन के बाद ही इन अभ्यासों को एक योग्य फिजियोथेरेपिस्ट की देखरेख में शुरू किया जाना चाहिए।
- यह भी देखा गया है कि जेस्टेशनल डायबिटीज वाली माताओं को प्रसव के बाद डायबिटीज होने का खतरा अधिक होता है, और उनके शिशुओं में ग्लूकोज का स्तर ज्यादा विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।
- फिजियोथेरेपी न केवल गर्भावस्था के दौरान प्रभावशाली भूमिका निभाती है, बल्कि प्रसव के बाद की अवधि में भी यह महत्वपूर्ण है। यह वजन कम करने और आपके ब्लड शुगर लेवल को बनाए रखने में मदद करती है।
- समय रहते निदान करवाना हमेशा समस्या के जोखिम को कम करने और एक आसान गर्भावस्था एवं प्रसव प्रक्रिया को जन्म दे सकता है।
तो, अब जब हम सभी इस स्थिति और फिजियोथेरेपी के बारे में जान गए हैं, तो आइए इसको दूसरो तक पहुंचाएं।
यह भी पढ़े : हाइपरटेंशन, डायबिटीज और कोविड -19 की तिकड़ी हो सकती है खतरे की घंटी