देश में कोरोना वायरस संक्रमण महामारी ( Covid- 19 ) की शुरुआत के बाद से ही आयुर्वेद ( Ayurveda ) शब्द काफी ज्यादा चर्चा में रहा। संक्रमण से बचाव के लिए आयुर्वेदिक दवाइयों ( ayurvedic medicines ) व उपाय का इस्तेमाल कर रहे लोगों को इस बात का एहसास हो गया था कि आयुर्वेद नाम का विज्ञान भी मौजूद है। लेकिन इसके साथ ही आयुर्वेद को लेकर कई प्रकार के सवाल खड़े हो गए जैसे आयुर्वेद का आधार क्या है ? क्या आयुर्वेद की कार्यप्रणाली का कोई सबूत है? अज्ञात के साथ बहुत सारे मिथ ( Myth ) हैं। जिनके बारे में आज हम जानेंगे।
आपने अक्सर लोगों को यह कहते सुना होगा कि यह आयुर्वेदिक दवा है नुकसान नहीं करेगी। इस मिथ को सबसे पहले जाने की आवश्यकता है क्योंकि जिस चीज का प्रभाव होता है उसका दुष्प्रभाव ( Side Effects ) भी हो सकता है। अगर निर्धारित दवाओं या उपचारों का उचित तरीके से पालन नहीं किया जाता है तो आयुर्वेद (Ayurveda) का भी दुष्प्रभाव देखने को मिल सकता है। कहा जाता है की अमृत की अधिकता भी जहर बन सकती है और जहर का उचित उपयोग अमृत साबित हो सकता है।
आयुर्वेद एक ‘नातु वैद्यम’ है इसका कोई रिकॉर्डेड ज्ञान नहीं है। आयुर्वेद को दो धाराओं में बांट कर इसकी पहचान की जा सकती है । यह वह ज्ञान है जिसे पारिवारिक परंपराओं के रूप में पीढ़ियों से मौखिक रूप से साझा किया गया है जैसे कि सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं के लिए रसोई में उपलब्ध सरल सामग्री का उपयोग करना।
दूसरी शाखा संहिताबद्ध ज्ञान है जिसे संहिता (Script ) में प्रलेखित किया गया है। बुनियादी सिद्धांतों के रूप में समझाया गया यह ज्ञान आज के वक्त में बहुत प्रासंगिक है, और 5000 साल के इतिहास का दावा करता है। ये दोनों धाराएं एक-दूसरे की वृद्धि और समर्थन करती हैं।
आयुर्वेद ( Ayurveda ) के नियमों के अनुसार खुद की जीवन शैली ( Lifestyle ) को ढालना काफी मुश्किल समझा जाता है। दरअसल आयुर्वेद जीवन और उम्र का ही विज्ञान है। आयुर्वेद में जिन सिद्धांतों की बातें की गई हैं वह ऐसी प्रथाएं हैं जिनका हम में से अधिकांश लोग बिना जाने दैनिक आधार पर पालन करते हैं। उदाहरण के लिए, सबसे सरल सिद्धांत जैसे ‘ब्रह्मे मुहूर्त उत्तिष्ठ’। इसका मतलब है कि व्यक्ति को सुबह जल्दी एक ही समय पर उठने की कोशिश करनी चाहिए।
त्रुपस्तंभ या शरीर को सहारा देने वाले तीन स्तंभों को अहार (भोजन), निद्रा (नींद) और ब्रह्मचर्य के रूप में बताई गई हैं। जब हम इसके बारे में सोचते हैं, तो हमारे जीवन का एक तिहाई हिस्सा सोने में बीत जाता है, और बाकी दो तिहाई खाने में।
लोगों द्वारा कहा जाता है कि आयुर्वेद सिर्फ बुजुर्गों ( Old Age People ) के लिए होता है हालांकि आयुर्वेद की 8 शाखाएं हैं। जो अलग – अलग उम्र के लोगों के साथ विशेष बीमारियों से निपटती हैं।
आयुर्वेद को लेकर ज्यादातर लोगों की धारणा रही है कि आयुर्वेद केवल ऑर्थोपेडिक ( orthopedic ) या त्वचा संबंधित बीमारियों ( skin diseases) से जुड़ी पुराने विकारों का इलाज ( Treatments ) कर सकता है। तथ्य है कि आयुर्वेद की 8 शाखाएं हैं जो विशिष्ट बीमारियों से लड़ने में काम आती है। उदाहरण के तौर पर काया चिकित्सा, सर्जरी, फ्रैक्चर, बवासीर ( Piles treatments) , गांव प्रबंधन, कौमारभृत्य (बाल रोग, स्त्री रोग) की स्थितियों से संबंधित है।
स्वस्थ व्यक्ति के खानपान पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होता है। असल में किसी भी व्यक्ति के लिए यह सलाह दी जाती है कि उसकी प्रकृति के आधार पर अलग-अलग खाद्य समूह हों जिनमें सभी छह स्वाद हों। जब शरीर में असंतुलन होता है जिसके बीमारियां होती हैं तो असंतुलन के आधार पर कुछ चीजों को खाने से रोकना पड़ता है। क्योंकि आहार स्वास्थ्य के साथ-साथ बीमारी में भी एक बड़ी भूमिका निभाता है।
किसी भी बीमारी का उपचार करने का कोई शॉर्टकट नहीं होता है। हर उपचार का पालन करते समय धैर्य रखना बहुत जरूरी है। किसी भी बीमारी का तत्काल परिणाम नहीं होता है फिर चाहे वह छोटी बीमारी हो या फिर बड़ी। खाने के उपचार के लिहाज से देखा जाए तो आयुर्वेद में अधिक समय लग सकता है लेकिन अन्य उपचारों में विपरीत यह लक्षणों के बजाय बीमारी के मूल कारण पर काम करता है।
आजकल जिस भी प्रोडक्ट( products ) में आयुर्वेद की जड़ी- बूटी होती है उसका बहुत महत्व होता है। मगर इस बात का ध्यान रखना जरूरी है किसका इस्तेमाल करने से पहले यह किसी खास व्यक्ति पर सूट कर रहा है या नहीं। आपने सुना होगा ‘Old Is Gold’ आयुर्वेद हमेशा संकट के समय में भी मजबूत रहा है, और आशा खो चुके कई लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है।
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