इन दिनों दिल्ली और एनसीआर में वायु गुणवत्ता बहुत खराब स्तर पर पहुंच गई है। एक्यूआई (air quality index) 400 से भी अधिक हो गया है। इसका सबसे खराब असर स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। वायु प्रदूषण के कारण कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन (WHO) ने भी बढ़ते प्रदूषण पर कई बार चिंता व्यक्त की है। प्रदूषण के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं की ओर कई बार ध्यान दिलाया है। ज्यादातर लाेगों को लगता है कि प्रदूषण का असर सिर्फ उनके फेफड़ों पर होता है। जबकि इसके स्वास्थ्य जोखिम आपकी कल्पना से भी ज्यादा खतरनाक हैं। आइए जानते हैं प्रदूषण (Air pollution health effects) के कारण होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में।
नवम्बर 2019 में जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में डब्लू एच ओ द्वारा प्रकाशित समाचार के अनुसार, जैसे-जैसे दुनिया गर्म और अधिक भीड़भाड़ वाली हो रही है, हमारे प्रयोग में लाये जाने वाले मशीन और अधिक खराब उत्सर्जन कर रहे हैं। आधी दुनिया के पास स्वच्छ ईंधन या स्टोव, लैंप तक की भी पहुंच नहीं है। जिस हवा में हम सांस लेते हैं वह खतरनाक रूप से प्रदूषित हो रही है। सांस में प्रदूषित हवा लेने के कारण हर साल लगभग 70 लाख लोग मारे जाते हैं।
डब्लू एच ओ द्वारा बतायी गयी गाइडलाइन में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हाई लेवल के वायु प्रदूषण के कारण कई तरह के प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं। इससे श्वसन संक्रमण, हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर का खतरा (risk of respiratory infection, heart disease and lung cancer increases) बढ़ जाता है। जो पहले से ही बीमार हैं, उन पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चे, बुजुर्ग और गरीब लोग इसके ज्यादा शिकार होते हैं। जब पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 होता है, तो यह फेफड़ों के मार्ग में गहराई से प्रवेश करने लगता है।
पार्टिकुलेट मैटर हवा में पाए जाने वाले ऐसे कण हैं, जिसमें धूल, गंदगी, कालिख, धुआं और फ्लूइड ड्राप भी शामिल हैं। पार्टिकुलेट मैटर आमतौर पर डीजल वाहनों और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों जैसे स्रोतों से उत्सर्जित होती है। 10 माइक्रोमीटर डायमीटर (पीएम10) से कम के पार्टिकल स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय हैं। ये सांस के जरिए अंदर जा सकते हैं और श्वसन प्रणाली में जमा हो सकते हैं।
2.5 माइक्रोमीटर डायमीटर (पीएम2.5) से कम के पार्टिकल सबसे बड़ा स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं। अपने छोटे आकार (इंसान के बाल की औसत चौड़ाई का लगभग 1/30वां) के कारण, महीन कण फेफड़ों में गहराई से प्रवेश कर सकते हैं।
वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर और हृदय रोग से होने वाली मौतों में से एक तिहाई वायु प्रदूषण (air pollution affect lungs and nervous system) के कारण होती हैं। यह धूम्रपान में इस्तेमाल होने वाले तंबाकू के बराबर प्रभाव डालता है। जो लोग बहुत अधिक नमक खाते हैं, उनकी तुलना में बहुत अधिक हानिकारक प्रभाव डालते हैं। क्रोनिक ब्रोंकाइटिस से लेकर फेफड़ों के कैंसर तक, वायु प्रदूषण में बीमारी के खतरे को बढ़ाने की क्षमता है।
वायु प्रदूषण और श्वसन प्रणाली से इसका संबंध काफी स्पष्ट है। वायु प्रदूषण तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करने के लिए जाना जाता है। जब पार्टिकुलेट मैटर नाक गुहा में प्रवेश करता है, तो यह इन्फ्लेमेशन का कारण बनता है। इससे स्थिति और खराब हो जाती है।
कण नाक में जलन और सूजन पैदा कर सकते हैं। यह बहती नाक का कारण भी बन सकता है।
वायु प्रदूषण फेफड़ों की क्षति और फेफड़ों के कार्य को बाधित करने से भी जुड़ा हो सकता है।
वायु प्रदूषण हार्ट पर इन्फ्लेमेटरी प्रभाव डालता है
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कस्टमाइज़ करेंयह रक्तचाप को बढ़ा सकता है और हृदय की पहले से मौजूद बीमारी को बढ़ा सकता है। प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से मृत्यु का जोखिम काफी बढ़ जाता है। हृदय रोगों के प्रति संवेदनशील लोगों को अधिक जोखिम होता है।
चिकित्सा विज्ञान अनुसंधान जर्नल में प्रकाशित अदेल घोरानी-आज़म, बमदाद रियाही-ज़ंजानी, और महदी बलाली शोधकर्ताओं के लेख के अनुसार ईरान में वायु प्रदूषण पर गहरा शोध हुआ।
इसके अनुसार छह प्रमुख वायु प्रदूषकों में कण प्रदूषण, जमीनी स्तर पर ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और लेड शामिल हैं। यही विश्व स्वास्थ्य संगठन भी बताता है। श्वसन और हृदय रोगों, न्यूरोसाइकिएट्रिक जटिलताओं, आंखों में जलन, त्वचा रोग और कैंसर जैसे लंबे समय तक चलने वाले रोगों को बढ़ावा देता है।
कई रिपोर्टों ने खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने पर मृत्यु दर की बढ़ती दर की संभावना जताई है।
ये ज्यादातर हृदय और श्वसन रोगों के कारण होता है। वायु प्रदूषण को अस्थमा, फेफड़ों के कैंसर, वेंट्रिकुलर हाइपरट्रॉफी, अल्जाइमर और पार्किंसंस रोग यहां तक कि मनोवैज्ञानिक जटिलताओं, ऑटिज़्म, जैसी कुछ बीमारियों के लिए भी प्रमुख पर्यावरणीय जोखिम कारक माना है।
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