आज दुनियाभर में लाखों लोग हृदय संबंधी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित हैं। उन्हीं में से एक है महाधमनी धमनीविस्फार यानि एओर्टिक एन्यूरिज्म (aortic aneurysm) जो एक घातक खतरे के रूप में देखी जा रही है। दरअसल ये हृदय से शरीर के बाकी हिस्सों तक खून पहुंचाने वाली मुख्य धमनी यानि महाधमनी की दीवार में मौजूद उभार होते हैं। खास बात यह है कि जीवन के लिए खतरा बनने से पहले इनका पता लगाना बेहद मुश्किल होता है। भारत में, जहां हृदय रोग मृत्यु का एक प्रमुख कारण है, दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी एओर्टिक एन्यूरिज्म के मामले बढ़ रहे हैं। लेकिन अद्वितीय स्वास्थ्य और जनसंख्या संबंधी चुनौतियों के कारण (aortic aneurysm causes) यहां समस्या ज्यादा जटिल हो सकती है।
दरअसल एओर्टिक एन्यूरिज्म तब होता है जब हार्ट की आर्टरी वॉल कमजोर पड़ने के कारण महाधमनी यानि एओर्टा का हिस्सा ज्यादा बड़ा हो जाता है। या यह बाहर की तरफ गुब्बारे जैसा फूल जाता है। शरीर में जहां तक महाधमनी पहुंचती है, यह स्थिति कहीं भी पैदा हो सकती है। लेकिन सबसे आम जगहें हैं पेट (abdominal aortic aneurysm) और वक्ष (thoracic aortic aneurysm)। एन्यूरिज्म का सबसे बड़ा खतरा है उसका टूटना, जिससे भयंकर इंटर्नल ब्लीडिंग (Internal bleeding in aortic aneurysm) हो सकती है और फिर अक्सर अचानक मृत्यु (Sudden death)।
व्यापक राष्ट्रीय आकड़ों की कमी के कारण इसके प्रभाव को सही तरह से निर्धारित करना मुश्किल है। हालांकि, सबूत बताते हैं कि जनसंख्या की उम्र बढ़ने के साथ-साथ और हाई ब्लडप्रेशर और डाइबिटीज जैसी जोखिम भरी बीमारियों के ज्यादा आम हो जाने के कारण इसका प्रचलन बढ़ रहा है। ये स्थितियां खास तौर से भारत की शहरी आबादी में प्रचलित हैं। जहां लाइफस्टाइल में बदलाव के कारण मोटापे और गतिहीन व्यवहार की दर अधिक हो गई है।
ऐसे कई जोखिम कारक हैं जिनके कारण एओर्टिक एन्यूरिज्म की समस्या पैदा हो सकती है। इनमें उम्र एक मुख्य कारक है। ऐसे में 60 से अधिक उम्र के पुरुषों और 70 से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान एक और बड़ा कारक है, खासतौर से भारत में जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों के बावजूद तंबाकू का उपयोग अधिक है। हाइपरटेंशन या हाई ब्लडप्रेशर और साथ ही परिवार में हृदय रोगों की फैमिली हिस्ट्री इसके जोखिम को और बढ़ा देते हैं।
एओर्टिक एन्यूरिज्म को अक्सर “साइलेंट किलर” कहा जाता है क्योंकि वे फटने तक शायद ही कभी लक्षण दिखाते हैं। अगर लक्षण दिखते भी हैं, तो उनमें पेट में असामान्य गुड़गुड़ होना, पेट में या उसके किनारे पर गहरा, लगातार दर्द, पीठ दर्द या सांस लेने में तकलीफ जैसी दिक्कतें शामिल हो सकती हैं।
इन चुनौतियों को देखते हुए प्रिवेंटिव स्क्रीनिंग ज़रूरी है, खासकर उन लोगों के लिए जन्हें खतरा ज्यादा है। हालांकि भारत में इस दर्जे की स्क्रीनिंग आसानी से मिल पाना मुश्किल है, खासकर ग्रामीण इलाकों में।
दुनियाभर में पैर पसार रही इस गंभीर हृदय संबंधी समस्या के डायग्नोसिस के लिए आमतौर पर अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे इमेजिंग टेस्ट किए जाते हैं। इनसे पता लगता है कि एन्यूरिज्म कितने बड़े और किस आकार के हैं। जिससे इलाज क्या देना है यह तय किया जा सकता है। अगर छोटे एन्यूरिज्म हैं, तो उनके बढ़ने और संभावित जोखिमों की जांच के लिए निगरानी की आवश्यकता होती है। जबकि बड़े एन्यूरिज्म के लिए सर्जरी की ज़रूरत पड़ सकती है।
सर्जरी के दो मुख्य प्रकार हैं पहली ओपन रिपेयर और दूसरी एंडोवास्कुलर एन्यूरिज्म रिपेयर (EVAR)। दूसरी वाली सर्जरी कम आक्रामक होती है और साथ ही रिकवरी में समय कम लगने और जटिलताओं के कम जोखिम के कारण इसे ज्यादा पसंद किया जाता है। हालांकि, ऐसे उपचार पूरे भारत में समान रूप से उपलब्ध नहीं हैं। इलाज की उन्नत सुविधाएं ज्यादातर मुंबई, दिल्ली और बैंगलुरू जैसे प्रमुख शहरों में ही मौजूद हैं।
फिलहाल तो एओर्टिक एन्यूरिज्म के खिलाफ रोकथाम ही सबसे अच्छी रणनीति है। इसमें ब्लडप्रेशर को नियंत्रित रखना, धूम्रपान छोड़ना, कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल में रखना और नियमित तौर पर फिजिकल एक्टिविटी करना शामिल है। हालांकि यह भी ज़रूरी है कि एक मज़बूत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो, जो व्यापक पैमाने पर जांच और एडवांस ट्रीटमेंट दे सके।
जैसे-जैसे भारत आर्थिक रूप से विकसित हो रहा है, एओर्टिक एन्यूरिज्म और दूसरे हृदय रोगों के बोझ को कम करने के लिए स्वास्थ्य देखभाल में निवेश बहुत महत्वपूर्ण है।
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कस्टमाइज़ करेंभारत लगातार बढ़ती आबादी और बदलती जीवनशैली की दोहरी चुनौतियों से जूझ रहा है। इसी वजह से “साइलेंट किलर” एओर्टिक एन्यूरिज्म के खिलाफ हमारी लड़ाई और ज्यादा मुश्किल होने वाली है। जन जागरूकता अभियान, उन्नत स्क्रीनिंग कार्यक्रम और उन्नत चिकित्सा उपचारों तक व्यापक पहुंच आवश्यक कदम हैं। जिन पर प्रबल रूप से निरंतर काम करना होगा। क्योंकि आने वाले समय में ऐसे कदम कई लोगों के लिए जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर बन सकते हैं।
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