एंटीमाइक्रोबायल रेज़िस्टेस (AMR) एक बड़ा खतरा है और ‘ग्लोकल’ (ग्लोबल+लोकल) परिदृश्य में जहां एंटीबायोटिक के प्रयोग के चलते एएमआर की संभावना बढ़ जाती है, यह जोखिम और गहराता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन (WHO) ने हाल में यह चेतावनी जारी की है कि एंटीमाइक्रोबायल रेज़िस्टेंस (anti microbial resistance) तेजी से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन रहा है। साथ ही, उन पैथोजेन्स (रोगाणुओं) की एक सूची भी जारी की है जो मल्टी ड्रग रेज़िस्टेंट ‘सुपरबग्स’ बन चुके हैं।
रोग प्रतिरोधों के मामले बढ़ रहे हैं, खासतौर से संक्रमित लोगों से फैलने वाले मूत्रनली के संक्रमणों के जिन मामलों में साधारण माइक्रोबायल्स असरकारी नहीं रह गए हैं, इस पूरे परिदृश्य की चिंताजनक स्थिति बयान करता है।
ज्यादातर एंटीमाइक्रोबायल दवाएं या तो प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा दी जाती हैं अथवा ओवर द काउंटर ली जाती हैं। साथ ही, यूटीआई (urinary tract infection) अथवा मूत्रनली संक्रमण सबसे सामान्य किस्म के संक्रमण हैं, जिनके उपचार के लिए एंटीमाइक्रोबायल के प्रयोग की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, बुजुर्गों को भी इन संक्रमणों का खतरा ज्यादा रहता है। इस आबादी में एंटीबायोटिक-एक्सपोज़र भी अधिक होता है।
बार-बार अस्पताल के वातावरण के संपर्क में आने और लंबी अवधि की स्वास्थ्य सुविधाओं में रुकने से भी संक्रमण का जोखिम बढ़ता है। जो एंटीमाइक्रोबायल रेज़िस्टेंट बैक्टीरिया की आशंका बढ़ाता है। बार-बार यूटीआई (urinary tract infection) खासतौर से महिलाओं के मामले में, ये स्वास्थ्य संबंधी बड़ी समस्याओं का कारण बनते हैं।
5 में से एक महिला को बार-बार यूटीआई की समस्या होती है। ऐसा तब माना जाता है जबकि एक साल में 3 या अधिक बार यूटीआई हो। पुरुषों के मामले में, यूटीआई काफी जटिल होते हैं और इनका बार-बार होना और भी खतरनाक होता है।
लगातार लंबे समय तक एंटीबायोटिक का प्रयोग – बचाव या उपचार के तौर पर, करने से शरीर में एंटीबायोटिक्स का जमाव हो जाता है और इससे रेज़िस्टेंट यूरोपैथोजेन्स का जमाव शरीर में होने लगता है। जो अगले किसी यूटीआई को और भी खतरनाक तथा कई बार इलाज के लिहाज़ से मुश्किल बनाते हैं। ऐसे में इलाज के लिए इंट्रावेनस एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल जरूरी हो जाता है।
इसके अलावा, ड्रग रेज़िस्टेंट पैथोजेन्स और कमज़ोर इम्युनिटी की वजह से भी मूत्रनली के संक्रमण जटिल बनते हैं। जो गंभीर पायलोनेफ्राइटिस और कई बार यूरोसेप्सिस पैदा करते हैं। जिनके उपचार के लिए मरीज़ को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है। यहां तक कि कई बार ये घातक भी हो सकते हैं।
यूटीआई के उपचार के लिए प्रोफाइलेक्टिक एंटीबायोटिक्स का लंबे समय तक इस्तेमाल करने की वजह से अन्य कई तरह से भी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है। इससे गट फ्लोरा प्रभावित होता है जो माइक्रोबायोम को अनहेल्दी बनाता है।
ऐसा होने से स्ट्रैस, एंगज़ाइटी, स्लीप और वैल-बींग पर असर पड़ता है। यूटीआई होने पर लोकल/ओरल एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करने से योनि में भी माइक्रोबायोम प्रभावित होता है। जो आगे चलकर फंगल इंफेक्शंस और रेज़िस्टेंट वेजाइनिटिस का कारण बनता है। मूत्राशय (ब्लैडर) में माइक्रोबायोम के प्रभावित होने पर लगातार दर्द और बार-बार मूत्र नली के संक्रमणों का खतरा भी बढ़ता है।
इनका समाधान आसान तो है, लेकिन उसका पालन करना उतना ही कठिन भी होता है। सबसे जरूरी है एंटीबायोटिक के प्रयोग में सावधानी बरतना।
मरीज़ों को सबसे पहले अटैंड करने वाले फर्स्ट लाइन हेल्थकेयर प्रदाताओं को भी उपचार के मामले में कड़ाई बरतने की जरूरत है और इस मामले में कम या लंबी अवधि के परिणामों से बचने की पूरी कोशिश की जानी चाहिए। पिछले कई वर्षों से एंटीबायोटिक-रेज़िस्टेंट ‘सुपरबग्स’ का खतरा बढ़ गया है और एंटीबायोटिक की खोज के मामले में कुछ खास प्रगति नहीं हुई है, ऐसे में एंटीमाइक्रोबायल प्रयोग के मामले में अत्यधिक सावधानी बरतना बेहद जरूरी है।
यह भी पढ़ें – सुबह उठते ही सूजा हुआ दिखता है चेहरा? तो जानिए क्या हैं इन्फ्लेमेशन के कारण और उपचार
डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।