वायु प्रदूषण से मनुष्यों, जानवरों और पेड़-पौधों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। प्रदूषण फैलाने वाले पदार्थ कई तरह के स्रोतों से आते हैं। ये पदार्थ कैसे बने, कहां बने और इन्हें बनाने के स्रोतों के आधार पर इनका असर अलग-अलग तरह हो सकता है।
प्रदूषण फैलाने वाली आम गैसों में सल्फर ऑक्साइड (मुख्य रूप से सल्फर डाइऑक्साइड [SO2]), नाइट्रोजन ऑक्साइड (मुख्य रूप से नाइट्रिक ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड [NO2]), रिएक्टिव हाइड्रोकार्बन (इन्हें अक्सर वोलेटाइल कार्बनिक कंपाउंड कहा जाता है), और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) शामिल हैं।
यातायात के साधनों या उद्योगों से निकल कर सीधे वातावरण में पहुंचने वाले प्रदूषक तत्वों को “प्राइमरी प्रदूषक” (Primary Pollutant) कहा जाता है। गैस और पार्टिकल प्रदूषक वातावरण में भी बन सकते हैं। ये मुख्य रूप से प्राइमरी प्रदूषकों से ही बनते हैं और इन्हें “सेकेंडरी प्रदूषक” (Secondary Pollutant) कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, वायुमंडल में नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन से O3 (ओज़ोन) बनती है। वायुमंडल में मौजूद सल्फर से सल्फ्यूरिक एसिड बनता है और वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसों से अमोनियम नाइट्रेट एरोसोल बनते हैं।
वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। आउटडोर फाइन पार्टिकुलेट मैटर (Outdoor Fine Particulate Matter) दुनिया में मौतों का पांचवां सबसे बड़ा खतरनाक कारण है।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज रिपोर्ट के अनुसार यह 4.2 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है और इससे > 103 मिलियन डिसेबिलिटी-अडजस्टेड लाइफ इयर्स का नुकसान हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) का मानना है कि इनडोर वायु प्रदूषण से 3.8 मिलियन मौतें होती हैं।
वायु प्रदूषण बहुत तेज़ी से नुकसान पहुंचा सकता है, जो आमतौर से सांस या दिल की बीमारियों (Heart Disease) के रूप में दिखाई देता है। बहुत ज़्यादा क्रोनिक होने पर यह शरीर के हर हिस्से को प्रभावित कर सकता है। प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य से जुड़ी कई मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। प्रदूषण से होने वाली टॉक्सिसिटी के कारण टिश्यू को नुकसान पहुंच सकता है क्योंकि फाइन और अल्ट्राफाइन कण सीधे अंगों तक पहुंच सकते हैं।
वायु प्रदूषण का प्रभाव सभी क्षेत्रों, उम्र और सोशल ग्रुपों पर होता है, लेकिन प्रदूषित वातावरण (Polluted Environment) में ज़्यादा देर तक रहने वालों या अतिसंवेदनशील लोगों को यह ज़्यादा नुकसान पहुंचाता है।
पहले से कोई बीमारी होने या सही सोशल सपोर्ट न मिलने की स्थिति में वायु प्रदूषण से ज़्यादा नुकसान होने की संभावना होती है। हम सबको पता है कि वायु प्रदूषण (Air Pollution) का सबसे ज़्यादा प्रभाव फेफड़ों और सांस लेने से जु़ड़े हिस्से पर पड़ता है।
अनुमान लगाया गया है कि फेफड़े के कैंसर से होने वाली लगभग 500,000 मौतों और 1.6 मिलियन सीओपीडी मौतों के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है। इसके साथ ही दिल की बीमारियों से होने वाली 19% और स्ट्रोक से होने वाली 21% मौतों के लिए भी प्रदूषण ही जिम्मेदार है।
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कस्टमाइज़ करेंवायु प्रदूषण को अन्य बीमरियों जैसे कि मूत्राशय के कैंसर और बच्चों में होने वाले ल्यूकेमिया से भी जोड़ा जाता है। वायु प्रदूषण के कारण बच्चों के फेफड़ों का विकास सही से नहीं हो पाता और फेफड़ों का सही विकास न होने पर बड़े होने पर फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं।
माना जाता है कि वायु प्रदूषण के कारण दिमाग के काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है और डेमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। हवा में पार्टिकुलेट मैटर के होने से मानसिक विकास पर असर पड़ता है। अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण से डायबिटीज और मौत के मामले बढ़ते हैं।
प्रदूषण से इम्यून सिस्टम पर असर पड़ता है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इससे ऑस्टियोपोरोसिस, हड्डी के फ्रैक्चर, कंजंक्टिवाइटिस, आंखों के सूखेपन, आंत से जुड़ी बीमारियों और किड़नी की समस्या भी पैदा होती हैं। त्वचा से जुड़ी समस्याओं, मुंहासों और त्वचा पर बढ़ती उम्र जैसे प्रभावों के लिए भी वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना जाता है।
मरीज़ों को सलाह दी जाती है कि जितना हो सकें वायु प्रदूषण से दूर रहें। वायु प्रदूषण को कम करने वाले साधनों से फायदा मिल सकता है।
फेसमास्क लगाने से सांस के ज़रिए जाने वाले पार्टिकुलेट कणों की संख्या कम हो सकती है। जिससे ब्लड प्रेशर, दिल की असमान गति और दिल से जुड़े रोगों को कम करने में मदद मिल सकती है।
पर्सनल रेस्पिरेटर से तुरंत फायदा होता है और एक्सपोजर के पूरे समय इसका फायदा मिलता रहता है।
एयर प्यूरीफायर भी पीएम स्तर को कम करते हैं। केवल 48 घंटे के लिए हवा को साफ करने से पीएम 2.5 के स्तर में काफी कमी आई। इससे सर्कुलेटिंग इंफ्लेमेटरी और थ्रोम्बोजेनिक बायोमार्कर के साथ-साथ ब्लड प्रेशर में भी कमी देखी गई।
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