यह समय सिर्फ मौसम में बदलाव और त्योहारों का ही नहीं है। इसके साथ ही वायु प्रदूषण (Air Pollution) का स्तर भी बढ़ने लगा है। अगर आपको लगता है कि वायु प्रदूषण सिर्फ आपके फेफड़ों (Lungs) को ही नुकसान पहुंचाता है, तो आपने इसके जोखिम को पूरी तरह समझा नहीं है। वायु प्रदूषण असल में स्ट्रोक (Air pollution and stroke) और कार्डियोवास्कुलर बीमारियों (Cardiovascular disease) का कारण भी बन सकता है। आइए जानते हैं वायु प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों (Air Pollution health hazards) के बारे में विस्तार से।
प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी गंभीर चिंता का विषय है और इसे बढ़ती मौतों तथा बीमारियों के प्रमुख कारणों में से एक गिना जाता है। ऐसे कई प्रदूषक हैं जो मनुष्यों के स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी खतरनाक होते हैं। इनमें प्रमुख हैं हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर और गैसीय प्रदूषक जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओज़ोन तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड।
हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर मुख्य रूप से सड़कों की धूल-धक्कड़, सड़कों पर दौड़ते वाहनों, निर्माण कार्यों, औद्योगिक उत्सर्जनों, बिजलीघरों, औद्योगिक एवं रिहायशी स्थानों पर तेल, लकड़ी या कोयले से की जाने वाली हीटिंग की वजह से पैदा होते हैं।
गैसीय प्रदूषक मुख्य रूप से जीवाश्म आधारित बिजलीघरों में पैदा होते हैं। जबकि नाइट्रोजन ऑक्साइड मुख्य रूप से मोटरवाहनों के ट्रैफिक, रिहायशी हीटिंग, बिजली उत्पादन तथा उद्योगों के चलते हवा में घुलती है।
हालांकि वायु प्रदूषण की वजह से व्यक्तिगत रूप से स्ट्रोक का जोखिम अपेक्षाकृत कम होता है, लेकिन इसके चलते एक्सपोज़र काफी होता है।
वायु प्रदूषण से होने वाला खतरा एक्सपोज़र की अवधि और प्रदूषक की विषाक्तता दोनों पर निर्भर होता है। एक बार जब प्रदूषक तत्व मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है, तो उससे होने वाला खतरा प्रदूषक की रासायनिक संरचना पर निर्भर करता है।
प्रदूषकों के साथ स्ट्रोक की जैविक प्रक्रिया काफी जटिल होती है। हाल के अध्ययनों से स्पष्ट हो चुका है कि वायु प्रदूषक शरीर में ऑक्सीजन तथा ग्लूकोज़ की कमी पैदा कर सकते हैं। साइनैप्टिक प्रक्रियाओं तथा प्लेटलेट एक्टीवेशन में बदलाव कर सकते हैं। फाइब्रिनोजेन, फैक्टर VIII बढ़ा सकते हैं।
टिश्यू फैक्टर रिलीज़ को प्रभावित करने के साथ-साथ इंफ्लेमेट्री साइटोकाइंस के साथ भी छेड़खानी कर एंडोलीथियल कार्यप्रणाली को कम कर सकते हैं। जिसके चलते खून का थक्का जमने या थ्रॉम्बोसस बनने की आशंका बढ़ जाती है।
सांसों के जरिए शरीर में प्रविष्ट होने वाले ऐसे प्रदूषक तत्व एल्वियली की सतह पर न्यूरल सैंसरी रिसेप्टर्स को उत्प्रेरित करते हैं। जो ऑटोनॉमिक कार्यप्रणालियों को सक्रिय करती हैं। जिसकी वजह से कार्डियोवास्क्युलर होमियोस्टेसिस हो सकता है। इससे एरिथीमिया के मामले या इसकी आशंका बढ़ जाती है, जो स्ट्रोक का कारण बन सकती है।
प्रदूषकों के संपर्क में कम से कम आने के लिए अपनी जीवनशैली, आदतों में बदलाव किया जा सकता है और साथ ही आसान उपायों को लागू किया जा सकता है।
निजी वाहन चलाने की बजाय पैदल चलें, कार पूलिंग का अधिकाधिक इस्तेमाल करें, कचरे का सही निस्तारण करें, प्रदूषणयुक्त जगहों पर मास्क का प्रयोग करें, सड़कों पर अधिक ट्रैफिक और व्यस्त समय के दौरान जाने से बचें, घरों में, खासतौर से किचन में हवा की आवाजाही का उचित प्रबंध होना चाहिए, घरों में हीटिंग और कुकिंग के लिए लकड़ी या कोयले जैसे बायोमास ईंधन के प्रयोग से बचें।
जिन लोगों को हृदय रोग, अस्थमा की शिकायत है या जो इम्युनोसप्रेसिव थेरेपी ले रहे हैं, उन्हें प्रदूषकों के संपर्क में आने से बचना चाहिए।
वायु प्रदूषण और कार्डियोवास्क्युलर रोगों के आपस में संबंध के बारे में कई महत्वपूर्ण साक्ष्य सामने आए हैं। अनेक अध्ययनों से इस बात का खुलासा हुआ है कि लंबे और लघु अवधि के लिए वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से स्ट्रोक का जोखिम बढ़ता है।
इन अध्ययनों ने उस संभावित प्रक्रिया की ओर भी इशारा किया है जो एंडोथिलियल डिस्फंक्शन, एथेरोस्क्लेरॉसिस, प्लेटलेट एक्टीवेशन तथा कोग्युलेशन का कारण बनती है।
अब चूंकि यह साबित हो चुका है कि वायु प्रदूषण स्ट्रोक समेत कई तरह के कार्डियोवास्क्युलर रोगों के लिहाज़ से जोखिमकारी है। अत: व्यक्तिगत तथा समाज के स्तर पर इससे बचाव के लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए।
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