ज्यादातर बच्चे को जब डायरिया होता है, तो इसके लिए रोटावायरस को जिम्मेदार ठहराया जाता है।इसका संक्रमण आम है। इससे संक्रमित होने पर उल्टी-दस्त का इलाज कराया जाता है। इन्फेक्शन खत्म होने पर यह मां लिया जाता है कि अब इसका शरीर पर कोई प्रभाव नहीं रह गया है। हालिया स्टडी रिपोर्ट बताती है कि 5 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को होने वाले इस आम संक्रमण का दुष्परिणाम लंबे समय बाद भी पता चल सकता (long-term complications of rotavirus) है।
रोटावायरस डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस की एक प्रजाति है। यह शिशुओं और छोटे बच्चों में डायरिया रोग का सबसे आम कारण है। दुनिया का लगभग हर बच्चा पांच साल की उम्र तक कम से कम एक बार रोटावायरस से जरूर संक्रमित होता है। रोटावायरस संक्रमण ज्यादातर रोटावायरस ए के कारण होता है। यह पानी जैसे स्रावी दस्त (diarrhea) का कारण बनता है। इससे छोटे बच्चों में निर्जलीकरण और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन हो जाता है । तीव्र आंत्रशोथ (acute gastroenteritis) के किसी भी अन्य कारण की तुलना में यह इस आयु वर्ग के अधिक बच्चों को खतरे में डालता है।
द जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज (The Journal of Infectious Diseases) में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पांच साल से कम उम्र के बच्चों में रोटावायरस संक्रमण के बारे में निष्कर्ष बताया। इसमें इस वायरस के कारण आंतों की जटिलताओं की ओर ध्यान दिलाया।
हर साल रोटावायरस संक्रमण से मरने वाले बच्चों की संख्या 1,30000-2,00000 होती है। ज्यादातर मामले कम संसाधन वाले देशों में होते हैं। इसके कारण रोटावायरस टीकाकरण की खोज के लिए अधिक प्रयास किया जाने लगा। हालांकि अभी तक कोई विशिष्ट उपचार उपलब्ध नहीं है।
अध्ययन से संकेत मिलता है कि रोटावायरस संक्रमण से तीव्र गैस्ट्रोएंटेराइटिस के अलावा, संक्रमण कई अन्य जटिलताओं को जन्म दे सकता है। इनमें तीव्र तंत्रिका संबंधी रोग (Acute Neurological Disease), टाइप 1 मधुमेह (Type 1 Diabetes), हेपेटोबिलरी रोग (Hepatobiliary Disease), श्वसन रोग (respiratory disease), हृदय रोग (heart disease) और गुर्दे की विफलता (kidney failure) शामिल हो सकते हैं। अध्ययन में रोटावायरस संक्रमण वाले 1300 रोगी और 1800 अन्य रोगियों को शामिल किया गया। पहले समूह में न्यूरोलॉजिकल डिजीज अधिक पाया गया।
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, जो रोटावायरस से संक्रमित थे, उनमें हृदय रोग की घटनाओं में 10% की वृद्धि देखी गई। हल्के रोटावायरस गैस्ट्रोएंटेराइटिस के 13% मामलों में हेपेटोबिलरी रोग हुआ। हल्के और गंभीर गैस्ट्रोएंटेराइटिस के बाद शिशुओं और छोटे बच्चों में न्यूरोलोजिकल डिजीज की संभावना क्रमशः 50% और 120% तक बढ़ गई। रोटावायरस संक्रमण वाले एक तिहाई से दो-तिहाई बच्चों में श्वसन संबंधी समस्याएं विकसित होती हैं। नवजात शिशुओं में रोटावायरस संक्रमण के बाद न्यूरोलोजिकल डिजीज होने की संभावना ढाई गुना अधिक हो जाती है। शिशुओं और छोटे बच्चों में खतरा दोगुना हो जाता है।
रोटावायरस के गंभीर संक्रमण वाले नवजात शिशु और छोटे बच्चों में न्यूरोलोजिकल डिजीज होने का जोखिम बहुत अधिक बढ़ जाता है। निष्कर्ष में यह बताया गया कि बच्चे में अपरिपक्व प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Weak Immune System) होती है। रोटावायरस से प्रेरित आंत में अधिक गंभीर समस्या होने की संभावना होती है। रोटावायरस संक्रमण के कारण उल्टी और दस्त से आंत और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) सक्रिय हो जाते हैं। गंभीर गैस्ट्रोएंटेराइटिस के कारण न्यूरोलॉजिकल जोखिम बढ़ जाता है।
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कस्टमाइज़ करेंसेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड रोटावायरस, वायरल एंटीजन, एंटीरोटावायरस एंटीबॉडी और जीनोमिक आरएनए के लिए सकारात्मक पाया गया है। रोटावायरस प्रोटीन एनएसपी4 उत्पन्न करता है। यह एक वायरल एंटरोटॉक्सिन है, जो तंत्रिका संबंधी चोट से भी जुड़ा हो सकता है। अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि वायरस सीधे तौर पर न्यूरॉन्स के लिए विषाक्त है।
रोटावायरस टीकाकरण ने रोटावायरस के कारण होने वाली मौतों को 25% से 55% तक कम कर दिया है। लेकिन गैस्ट्रोएंटेराइटिस से पीड़ित दसवें बच्चे अभी भी वायरस के लिए सकारात्मक परीक्षण करते हैं। स्टडी के निष्कर्ष इस बात पर जोर देते हैं कि रोटा वायरस वैक्सीन के प्रति लोगों को जागरूक होना चाहिए।
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