अभी उन आंकड़ों को एक दशक भी नहीं बीता है जिनमें भारत में जनसंख्या विस्फोट देखा जा रहा था। और ज्यादातर सरकारी अभियान कम बच्चे पैदा करने के बारे में जागरुकता पैदा कर रहे हैं। वहीं अब हालात ये हैं कि 30 कराेड़ जोड़े किसी न किसी वजह से बच्चा पैदा नहीं कर पा रहे हैं। खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में इनफर्टिलिटी की समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। दुर्भाग्यवश इस बारे में न केवल स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक कारण भी जोड़ों पर भावनात्मक दबाव बना रहे हैं। आइए जानते हैं भारत में बांझपन (Infertility in India) से जुड़े कुछ हैरान कर देने वाले आंकड़े।
बांझपन यानी की इनफर्टिलिटी (Infertility) सेहत से जुड़ी एक बेहद गंभीर समस्या है। इसे एक साल तक लगातार असुरक्षित यौन संबंध बनाने के बावजूद गर्भधारण ना कर पाने की अक्षमता के तौर पर जाना जाता है। यह बेहद गंभीर, सामाजिक-आर्थिक स्वास्थ्य बाधा हैं।
इंडियन एसोसिएशन ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन के अनुसार, बांझपन 10 से 14 प्रतिशत भारतीय आबादी को प्रभावित कर रहा है। जिसमें शहरी आबादी में यह दर कहीं ज्यादा है, जहां छह में से एक जोड़ा बांझपन की समस्या से ग्रसित है।
भारतीय जनसंख्या में, 134 करोड़ के बावजूद, हाल के दिनों में प्रजनन दर में भी गिरावट नजर आ रही है। वर्तमान में लगभग 30 करोड़ जोड़े सक्रिय रूप से गर्भ धारण करने की कोशिश करते हैं और बांझपन का उपचार कराना चाह रहे हैं। ऐसे में विशेषज्ञों को डर है कि आने वाले वर्षों में ये संख्या भी बढ़ने वाली है।
आज के समय में वैद्यकीय क्षेत्र में उन्नति के साथ बांझपन की समस्या से जूझ रहे कई ऐसे जोड़े हैं, जो निराश ओर हताश थे, उनका भी सफलतापूर्वक इलाज किया जा रहा है।
भारत मे बांझपन के उपचार के कई विकल्प मौजूद हैं। उनमें अंडाशय को अंडे की बेहतर गुणवत्ता के लिये स्टिम्युलेट करने की दवाएं शामिल हैं। इसके साथ अब दूरबीन से होनेवाली सर्जरी में काफी तरक्की हुई है, जैसे की लेप्रोस्कोपी और हिस्ट्रोस्कोपी। ये न केवल समस्या का पता लगाने में मदद करती हैं, बल्कि बेहतर सफलता दर के साथ इस समस्या का उपचार करती हैं।
अंत में कृत्रिम प्रजनन तकनीक जैसे इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ IVF) है। इसमें अंडे और शुक्राणुओं को मिलाया जाता है और इन विट्रो यानी की शरीर के बाहर निषेचित किया जाता है। उसके बाद इसे फिर गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। यह तकनीक दंपतियों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है और इसकी स्वीकृति भी बढ़ रही है।
इसके साथ ही जहां वीर्य की खराब गुणवत्ता के साथ पुरुषों की वजह से होने वाला बांझपन मुख्य रूप से चिंता का विषय है। वहां आईवीएफ (IVF), आईसीएसआई (ICSI), टीईएसए(TESA) जैसी तकनीकों ने बांझ दंपतियों को उम्मीद की नई किरण दिखाई है ।
भले ही प्रजनन उपचार में प्रगति हो रही है और विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में प्रजनन केंद्रो की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है, फिर भी भारत में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
सीमित संख्या में कुशल आईवीएफ विशेषज्ञ और एम्ब्रायोलॉजिस्ट तथा असिस्टेड रिप्रोडक्शन तकनिक (एआरटी) सेवाएं देने वाले केवल 3 से 4 प्रतिशत प्रसूतिरोग विशेषज्ञ , जो मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों मे ही सक्रिय है, इस डिमांड को पुरा करने मे विफल होने की एक वजह बन रही है।
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंएआरटी जैसे आईवीएफ, आईसीएसआई, जोकि लंबी अवधि वाले बांझपन के लिये एक वरदान है, काफी महंगी है। इसका खर्च प्रति साइकिल करीब 1.5 से 2.5 लाख रुपये आता है, जो इसे गरीबों की पहुंच से बाहर कर देता है। सामाजिक लांछना के अलावा, असीम आर्थिक और भावनात्मक दबाव ऐसे लोगों की तकलीफोंको और बढ़ा देता है।
बांझपन के इलाज मे सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान बहुत ही कम होता है, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में मूलभूत जांच और सेवाएं सीमित या अधूरी होती हैं। राज्य की स्वास्थ्य योजनाओं में भी जनसंख्या नियंत्रण ही प्राथमिकता हैं। इसलिये बांझपन और उसके उपचार, विशेष रूप से आईवीएफ को सरकारी अस्पतलो मे दोयम स्थान है l इस वजह से भारत में जहां एक तिहाई आबादी राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे है, लाखों जोड़े अभी भी माता-पिता बनने के सुख से वंचित हैं।
यह भी पढ़ें – क्या आयुर्वेद से किया जा सकता है ब्रेस्ट कैंसर का इलाज? जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट