बच्चें के पैदा होने से लेकर पहला शब्द बोलने तक सभी पेरेंट्स को उस समय का बहुत इंतजार रहता है, जब उनका बच्चा बोलना शुरू करें। आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ बच्चें जल्दी बोलना शुरू कर देते हैं, वही कुछ बच्चों को बोलने में काफी समय लगता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि हर बच्चें की बोलने की क्षमता अलग अलग होती है। साथ ही आसपास के वातावरण का भी असर पड़ता है। लेकिन कई स्थितियों में यह साधारण नहीं होता है, साथ ही समय पर ध्यान न देना बड़ी समस्या का कारण भी बन सकता है।
इस विषय पर गहनता से जानने से जाननें के लिए हमनें बात कि इलेंटिस हेल्थ केयर ( नई दिल्ली) की पेडिअट्रिशन डॉ संध्या सोनेजा से। जिन्होंने हमे इस विषय से जुड़ी खास जानकारी दी।
हालांकि बच्चे के लिए बोलना शुरू करने का कोई सामान्य समय नहीं है। ज्यादातर बच्चें 12 से 18 महीने की उम्र तक बोलना शुरू कर देते हैं। लेकिन कुछ स्थितियों में अलग-अलग भी हो सकता हैं।
डॉ संध्या सोनेजा के मुताबिक सामान्य रूप से 2 साल का बच्चा लगभग 50 शब्द तक बोल सकता है, साथ ही दो से तीन शब्दों के वाक्यों में भी बोल सकता है। वही 3 साल की उम्र तक आते-आते उसकी शब्दावली लगभग 1,000 शब्दों तक हो जाती है, जिससे वे तीन से चार शब्दों के वाक्यों में बोल रहा होता हैं।
लेकिन अगर आपका बच्चा उन लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रहा है, तो इस समस्या पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है।
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एक्सपर्ट संध्या सोनेजा का मानना है कि अगर सही उम्र में आकर भी आपका बच्चा नहीं बोल पा रहा है, तो उसके पीछे मुख्य रूप से ये कारण जिम्मेदार हो सकते है –
बौद्धिक अक्षमता एक प्रकार की डिसेबिलिटी है, जिसमें बच्चें को कुछ भी सीखने में समस्या होने लगती है, इसके साथ ही लोगों से मिलने या ठीक से बोल पाने में भी समस्या का सामना करना पड़ता है।
स्पीच-लैंग्वेज डिसऑर्डर एक प्रकार का विकार है, जिसमें बच्चें को कुछ बोलने में परेशानी होने लगती है। उसे शब्दों के उच्चारण में भी परेशानी होती है, और कुछ भी आवाज निकालने में बहुत कोशिशे करनी पड़ती है।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक प्रकार की डेवलपमेंट डिसेबिलिटी होती है, जिसमें कोई व्यक्ति न ठीक से बोल पाता है और न ही सामने वाले व्यक्ति की बात समझ पाता है। इस विकार के लक्षण बचपन से ही दिखना शुरू हो जाते हैं।
एक्सपर्ट का मानना हैं कि जिन बच्चों को ऑटिज्म होता हैं, उन्हें सेरेब्रल पाल्सी होने का खतरा भी हो सकता हैं। सेरेब्रल पाल्सी एक बीमारी हैं, जो बच्चें के मानसिक विकास के दौरान हुई क्षति के कारण होता हैं। इस स्थिति में बच्चें के अंग ठीक प्रकार से काम नहीं कर पाते, शरीर का टोन खराब होने लगता है, और साधारण एक्टिविटि में भी किसी की मदद लेनी पड़ती है।
मुख्य तौर पर अगर बच्चा कई कोशिशों के बाद भी नहीं बोल पा रहा, तो आपको बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। लेकिन यहां पेडिअट्रिशन डॉ संध्या द्वारा कुछ टिप्स दी गयी हैं, जो आपके लिए मददगार हो सकती हैं –
आपने सुना ही होगा कि बच्चें बड़ों की नकल करके ही बोलना सीखते हैं। अगर आपके बच्चें को भी बोलने में देरी का सामना करना पड़ रहा है, तो आपको ज्यादा से ज्यादा समय उससे बातचीत करने में या कुछ बुलवाने की कोशिश में देना होगा। एक्सपर्ट का कहना है कि बच्चे से बात करना या गाना गाना बच्चे के बोलने की क्षमता को गहरी तौर पर प्रभावित करता है।
किताबें पढ़-पढ़ कर बोलना सीखना एक बेहद पुराना और सिद्ध हुआ तरीका है। यह तरीका बच्चे का ध्यान आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए बेहतर साबित होता हैं। इसके लिए आप बच्चें को किताबें पढ़कर सुना सकते हैं, जिससे उनकी सुनने की क्षमता भी बढ़ेगी और बच्चा शब्दों को पकड़ कर बोलने की कोशिश भी करेगा।
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