दुनिया भर में मंकीपॉक्स वायरस के 30,000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। वहीं यह उन देशों को भी प्रभावित कर रहा है, जिन देशों में अभी तक एक भी मामले सामने नहीं आए थे। इसी के साथ भारत में मंकीपॉक्स के 9 मामले सामने आए हैं और एक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है। द वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने मंकीपॉक्स को ग्लोबल हेल्थ एजेंसी के रूप में घोषित कर दिया है। वहीं मंकीपॉक्स वायरस का बढ़ता संक्रमण विश्व के लिए एक चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसी के साथ लोग इसके फैलने का कारण और इससे सुरक्षा के उपयुक्त उपायों की तलाश में जुटे हैं। हालांकि, मंकीपॉक्स को लेकर बहुत सारी जानकारी उपलब्ध करा दी गई है। क्योंकि यह एक नए प्रकार का संक्रमण है, तो इससे जुड़े कई मिथ्स भी लोगों के दिमाग में बैठते जा रहे हैं।
हालांकि, आपको चिंता करने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, क्योंकि हम मंकीपॉक्स से जुड़े मिथ्स के बारे में कुछ जरूरी फैक्ट लेकर आए हैं। जो कि आपको समय रहते इस समस्या से उबरने में मदद करेगा।
हेल्थ शॉर्ट्स ने इस बारे में अमेरिहोम हेल्थकेयर – एशियन हॉस्पिटल की सलाहकार चिकित्सक और संक्रामक रोग विशेषज्ञ, डॉ चारु दत्ता अरोड़ा, से बातचीत की। डॉक्टर ने मंकीपॉक्स से जुड़े मिथ्य को दूर करने के लिए कुछ ठोस तथ्य दिये हैं। तो चलिए जानते हैं क्या है वह जरूरी फैक्ट्स।
डॉक्टर दत्ता कहती है “कि मंकीपॉक्स कई दिनों से सभी के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है और यह दुनिया के 80 से अधिक देशों में कई हजार रोगियों को अपने चपेट में ले चुका है। इसके साथ ही भारत में भी इसके तेजी से फैलने के आसार नजर आ रहे हैं। इसलिए लोगों के बीच मंकीपॉक्स वायरस को लेकर सही जानकारी होना बहुत जरूरी है।
तथ्य – मंकीपॉक्स स्मॉल पॉक्स वायरस किस फैमिली से बिलॉन्ग करता है। मंकीपॉक्स और कोरोनावायरस का एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है। इन दोनों का ट्रांसमिशन और लाइफ साइकिल भी बिल्कुल अलग है। आपको कभी भी पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन और स्टोर्स पर एक दूसरे के संपर्क में आने से यह समस्या नहीं फैलती। यह कोविड की तरह एयर बॉर्न डिजीज नहीं है।
भले ही मंकीपॉक्स के मामले तेजी से और बड़ी संख्या में बढ़ रहे हैं। परंतु यह कोविड-19 महामारी की तरह लोगों को नुकसान नहीं पहुंचा रहा। इसके साथ ही जो हमने कोविड-19 की शुरिआति दौर में अनुभव किया था उसकी तुलना में मंकीपॉक्स वायरस काफी कम खतरनाक है। वहीं यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है, कि मंकीपॉक्स और कोविड-19 के प्रभाव में काफी अंतर है। हालांकि, मंकीपॉक्स वायरस के लक्षण काफी ज्यादा गंभीर हैं।
तथ्य – ऐसा बिल्कुल नहीं है, मंकीपॉक्स पहली बार 1950 के दशक में बंदरों पर किए गए एक शोध में पाया गया था। इसीलिए इसका नाम मंकी के नाम पर रखा गया था। वहीं दूसरी ओर इसका पहला ह्यूमन केस 1970 में अफ्रीका के कांगो क्षेत्र में देखने को मिला। वहीं फिर चिकित्सीय रूप से इसके कारण और इसके लक्षण पर विस्तार से अध्ययन किये गए। फिर पता चला कि यह न केवल जानवरों को बल्कि इंसानों को भी प्रभावित कर सकता हैं। बुखार, ठंड लगना, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी महसूस होना इसके कुछ सामान्य लक्षण है। इसके साथ ही यदि यह गंभीर हो जाए तो चेहरे और जननांग पर दाने निकलने लगते हैं।
तथ्य – यह मिथ पूरी तरह गलत है। हालांकि इस बार के मंकीपॉक्स में नजर आने वाले लक्षण पिछली बार के लक्षणों से बिल्कुल अलग हैं। पिछली बार के लक्षण में जननांग में घाव, गुर्दों में दर्द, मलाशय और शिश्न की सूजन और मलाशय से खून आने जैसी समस्याएं देखने को मिलती थी। डब्ल्यूएचओ एक्सपर्ट एंडी सील कहती है कि ” सोशल मीडिया पर कई लोगों ने यह बताया कि मंकीपॉक्स केवल गे व्यक्ति की समस्या नहीं है। यह किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। इसके साथ ही यदि कोई दो व्यक्ति एक दूसरे के काफी नजदीक हो या फिजिकल कांटेक्ट में हो तो इसके फैलने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।”
इसके साथ ही यदि कोई दो पुरुष एक-दूसरे के साथ बिना प्रोटेक्शन के इंटरकोर्स करते हैं, तो उन में इन्फेक्शन होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। इसके साथ ही यह वायरल डिजीज हेट्रोसेक्सुअल व्यक्ति में भी देखने को मिली।
तथ्य – यह बात पूरी तरह गलत है। मंकीपॉक्स वायरस खुद एक सीमित समय के लिए आप को प्रभावित कर सकता है। यह अधिकांश रूप से 2 से 4 सप्ताह में खुद ब खुद ठीक हो जाता है। यदि वास्तव में समय रहते इसका इलाज करवाया जाए तो इसे ठीक करना काफी आसान है। इस बीमारी की देखभाल के लिए, अलगाव, तरल पदार्थ, जलयोजन, इलेक्ट्रोलाइट रखरखाव और ज्वरनाशक जैसी चीजें काफी हैं। वहीं पेरासिटामोल, एंटीवायरल, या अन्य एनएसएआईडी, पोषण संबंधी सहायता, त्वचा की देखभाल, आंखों की देखभाल, और रेस्पिरेट्री सपोर्ट यह सभी उपाय मंकीपॉक्स में होने वाले फीवर और दर्द से राहत पाने के लिए किए जाते हैं।
मंकीपॉक्स वायरस के नाम से यह समझना कि इसे केवल बंदर ही फैला सकते हैं, यह बिल्कुल ही गलत है। इसका नाम मंकीपॉक्स इसलिए पड़ा था क्योंकि इसे पहली बार बंदरों में पाया गया था। परंतु धीरे-धीरे यह समस्या इंसानों में भी नजर आने लगी। तो इसका बंदरों से कोई लेना देना नहीं है, इसके साथ थी यह समस्या गिलहरी के काटने से भी हो सकती है।
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