उम्मीदों को पूरा कराने के लिए कुछ पैरेंट्स इतने सीरियस हो जाते हैं कि वे बच्चों की भलाई और स्ट्रिक्ट पेरेंटिंग के बीच का अंतर भूल जाते है और हर चीज़ में उन्हें टोकते रहते हैं।
इस दुनिया में हर माता-पिता यही चाहते हैं कि उनका बच्चा बहुत सफल हो और इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में सबसे आगे निकले। इसीलिए बचपन से ही बच्चों के मासूम कंधों पर उम्मीदों और अव्वल आने काभार डाल दिया जाता है। वहीं, उन उम्मीदों को पूरा कराने के लिए कुछ पैरेंट्स इतने सीरियस हो जाते हैं कि वे बच्चों की भलाई और स्ट्रिक्ट पेरेंटिंग के बीच का अंतर भूल जाते है और हर चीज़ में उन्हें टोकते रहते हैं।
यूनिवर्सिटी और डब्लिन एंड कैम्ब्रिज की एक रिपोर्ट के अनुसार, पैरेंट्स के इस स्ट्रिक्ट बिहेवियर को देख कर विकसित होते बच्चे के मन में तमाम तरह की चीज़े आती है, जिसके कारण बच्चे को मानसिक रूप से कई समस्याएं भी हो सकती है। अगर आप भी अपने बच्चों को हमेशा डांटते और टोकते रहते है, तो आपका बच्चा भी मानसिक रूप से कमज़ोर हो सकता है।
बच्चे संकोची हो जाते हैं - अक्सर जब भी बच्चे को उसकी हर बात पर टोका या चिल्लाया जाता है, तो बच्चा खुद में ही काफी संकुचित हो जाता है। स्ट्रिक्ट पेरेंटिंग के कारण बच्चे के मन में आत्म-संकोच की भावना पैदा हो जाती है, जो ज़िंदगी भर भी उनके साथ चल सकती है। ऐसे में वे अपनी भावनाओं और विचारों को खो देते है और अपनी आवश्यकताओं को नहीं बताते, जिसके कारण उन्हें भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कमजोर हो सकते है संबंध - स्ट्रिक्ट पैरेंटिंग के कारण हर चीज़ की रोकटोक और दंड का डर हमेशा बच्चे मन में बना रहता है। इसके साथ ही अपने ग्रोइंग ईयर्स में बच्चे बेहद संवेदनशील होते है।इसलिए जब माता-पिता बच्चे को हमेशा डांटते-फटकारते रहते है, तब बच्चे के मन में उनके प्रति प्रेम खत्म हो जाता है, जिसके कारण पैरेंट्स और बच्चे के रिश्ते कमजोर होने लगते है।
बढ़ने लगती है संवाद की कमी- बच्चे के मन में माता-पिता के लिए प्यार खत्म होने से बातचीत में कमी आने की स्थिति भी पैदा हो जाती है। स्ट्रिक्ट पैरेंट्स से बच्चे डर के कारण या किसी तरहकी घृणा के कारण बात नहीं करते, जिससे रिश्ते कमजोर होने के साथ-साथ बच्चे अपनी किसी समस्या को या मन की किसी बात को पैरेंट्स तक नहीं पहुंचा पाते।
सामाजिक रूप से अलग हो जाते है बच्चे- अक्सर गुस्से में या डांटते हुए पैरेंट्स कुछ ऐसी बात कर देते है, जो बच्चों को झकझोर देती है। उसके बाद बच्चे उसी बात को अपने मन में दबाएं बैठे रहते है और उसी के बारे में सोचते रहते है। जिसके कारण बच्चों में मौजूद सामाजिकता खत्म हो जाती है और बच्चे सामाजिक रूप से खोखले हो जाते हैं।