अगर आप वजन घटाने के लिए अब तक कई उपाय कर चुकी हैं और आपका वेट ज्यों का त्यों हैं, तो इंटरमिटेंट फास्टिंग आपके लिए एक बेहतर विकल्प बन सकता है। इन दिनों डाइट प्लान करने के लिए इस नए ट्रेंड् को चुना जा रहा है। इससे न केवल आपके मेटाबॉलिज्म को मज़बूती मिलती है। साथ ही ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल रहता है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या है- स्टरलिंग अस्पताल की डाइटीशियन पूजा शैलाट की मानें, तो दिनभर में कुछ घंटे उपवास पर रहने को इंटरमिटेंट फास्टिंग का नाम दिया जाता है। वो घंटे जब आप हेल्दीडाइट लेते हैं। उस समय को इटिंग विंडो कहकर पुकारा जाता है। अगर आपकी इटिंग विंडो आठ घंटे की है, तो आपको बचे घंटों में बिना खाए रहना है। अपनी बॉडी के मुताबिक कुछ लोगों के लिए खाने का समय 10 घंटे भी रखा जाता है। चित्र अडोबी स्टॉक
कैसे करें मील्स तय- इंटरमिटेंट फास्टिंग के चलते बॉडी की ज़रूरत के हिसाब से मील्स को अरेंज किया जाता है। पहले पहल ये गैप 8 से 10 घंटे का रहता है। इसके बाद ये बढ़कर 18 घंटे का किया जासकता है। इसके चलते कुछ लोग सप्ताह में दो दिन फास्टिंग पर रहते हैं, तो कुछ लोग सप्ताह में पांच दिन इसके अनुसार दिन में एक बार या दो बार मील्स लेते हैं। चित्र-शटरस्टॉक
कब करें इंटरमिटेंट फास्टिंग- बॉडी में जमा अधिक कैलोरीज़ को बर्न करने के लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग करें। गर्भवती महिलाओं, बच्चों, हृदय रोगियों और शुगर के मरीजों को इसे न करने की हिदायतदी जाती है। इस प्रक्रिया को किसी डाइटीशियन या डॉक्टर के रेकोमेण्ड करने के बाद भी की जानी चाहिए। इसे करने के लिए बताए गए सभी रूल्स को ज़रूर फॉलो करें। चित्र- शटर स्टॉक
वेट लॉस में कितनी कारगर है- व्रत के इस नए तरीके के अर्तंगत दिनभर में एक मील को स्किप किया जाता है। चाहे लंच हो या डिनर। फास्टिंग के साथ साथ एक्सरसाइज भी इसमें ज़रूरी होती है। इसे करने से आपका मेटाबॉल्ज़िम प्रभावित होता है, जो वज़न घटाने में मददगार साबित होती है। इसमें कई बार बॉडी के अनुरूप शरीर को लिक्विड डाइट पर भी रखा जाता है। उपवास करने के इस आसान तरीके के ज़रिए सप्ताह में अगर आप पांच दिन नार्मल डाइट ले रहे हैं, तो दो दिन केवल 500 से 600 कैलोरीज़ ही ली जाती है। पॉज़िटिव रिजल्टस के लिए हेल्दी डाइट लेना ज़रूरी है। चित्र-शटरस्टॉक
क्या हैं और फायदे- इंटरमिटेंट फास्टिंग वेटलॉस, शुगर और बीपी के साथ साथ अल्जाइमर के रोग से भी बचाती है। इसके अलावा कैंसर के रोग की संभावना को कम करती है। साथ ही शरीर में कोलेस्ट्रॉलके स्तर को भी नियंत्रित रखती है। इसमें खान पान को लेकर कड़े प्रतिबंध नहीं है। कैलोरी काउंड को ध्यान में रखकर न्यूट्रिश्नल वैल्यू के आधार पर डाइट तैयार की जाती है। चित्र-शटरस्टॉक।