अच्छा खाना, अच्छा परिवार और अच्छा समय, ये सब मिलकर आपके भावी जीवन की दशा तय करते हैं। किसी भी पक्ष पर कमी या तनाव बढ़ती उम्र में डिमेंशिया का जोखिम बढ़ा देती है। भारत में यह स्थिति लगातार बढ़ रही है। जानते हैं वो कौन से अन्य कारण हैं, जो इस समस्या को बढ़ाने का काम करते हैं।
सेल्फ आइसोलेशन- जर्नल ऑफ न्यूरोलॉजी के मुताबिक अगर आपका लोगों से बहुत अधिक मेलजोल नहीं हैं और आप खुद को आइसोलेट यानि सबसे अलग कर लेते हैं, तो इससें डिमेंशिया का खतरा बढ़ने लगता है।वे लोग जो सोशल सर्कल से कट जाते हैं और एकांत में रहने लगते हैं। ऐसे लोगों में इस बीमारी का खतरा 26 फीसदी तक बढ़ने की संभावना जताई जाती है।
पोषक तत्वों की कमी- याददाश्त मज़बूत करने के लिए विटामिन्स, फ्लेवोनॉयड, मैग्नीशियम और कैरोटेनॉइड्स का सेवन करना आवश्यक है। विटामिन बी 6, विटामिन बी 12 और विटामिन सी शरीर में सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर्स को रेगुलेट करते हैं। ब्रेन फंक्शन बूस्ट होने से मानसिक संतुलन बना रहता है। डाइट में माइंड बूस्टिंग फूडस जैसे अखरोट, कीवी, स्प्राउट्स, स्ट्राबेरी, ब्रोकली समेत विटामिन सप्लीमेंटस का सेवन करें।
थायरॉयड से बढ़ता है डिमेंशिया का खतरा- अगर थायरॉयड गलैण्ड शरीर में थायराइड हार्मोन प्रोडयूस नहीं करता है, तो इसका प्रभाव पूरे शरीर पर दिखने लगता है। इससे डिमेंशिया का खतरा शरीर मेंबढ़ने लगता है। एनसीबीआई के रिसर्च के मुताबिक थायराइड के कारण होने वाला ये रोग महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा इफेक्ट डालती है। समय पर लक्षणों की पहचान करके इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
अल्जाइमर बनता है डिमेंशिया की वजह - अल्जाइमर के चलते मस्तिष्क के सेरेब्रल कॉर्टेक्स में मृत सेल्स बढ़ने लगते हैं। इसका प्रभाव हमारी मेमोरी और व्यक्त करने की शक्ति पर दिखने लगता है।जो डिमेंशिश का एक कारण बन जाता है। इससे व्यक्ति हर चीज़ भूलने लगता है। अल्ज़ाइमर उम्र के साथ होने वाली एक गंभीर समस्या है। इससे डिमेंशिया का जोखिम बढ़ने लगता है। ये बीमारी अनुवांशिक यानि जेनेटिक होती है।
पार्किंसंस रोग- वे लोग जो पार्किंसंस रोग से ग्रस्त होते हैं। उन्में डिमेंशिया की समस्या बढ़ने लगती है। एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मुताबिक ये बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरूषों में मुख्यतौर पर पाई जाती है। इस रोग में व्यक्ति को हाथों और पैरों में लगातार कंपन का एहसास होता है। इसके अलावा खाना चबाने और निगलने में तकलीफ होती है। साथ ही यूरिन संबधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा व्यक्ति में इमोशनल चेंजिज आते हैं। साथ ही व्यक्ति में कुछ भी याद रखने की क्षमता धीरे धीरे कम होने लगती है।