स्टोन फ्लावर या पत्थर फूल एक खास दक्कनी मसाला है। इसे चट्टानों से एकत्र किया जाता है और फिर सुखाया जाता है। शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के पकवानों की ग्रेवी को और भी जायकेदार बनाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। कांकेर में महिलाएं इसे मसाला पाउडर में मिलाकर रखती हैं। हरी सब्जियों, साग और दाल को फ्लेवर देने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन दक्कन और दक्षिण भारत के इलाकों में पसंद किया जाने वाला खास मसाला अब मराठी, पूर्वी भारतीय और अन्य व्यंजनों में भी डाला जाने लगा है। मेरी मम्मी भी आजकल इस मसाले से अपनी रसोई के व्यंजनों का स्वाद बढ़ा रहीं हैं। आइए जानते हैं क्यों इतना खास है ये मसाला।
महाराष्ट्र में पत्थर के फूल या चबीला को दगड़ के फूल भी कहा जाता है। हर मसाले की तरह काले फूल को सुखाया जाता है और खास तरीके से तैयार किए जाने वाले महाराष्ट्रियन गोडा मसाले में मिलाया जाता है।
पत्थर के फूल जब चुने और सुखाए जाते हैं, तो इसमें ना तो खुशबू होती है ना ही कोई स्वाद। लेकिन जब इसे तेल में भूना जाता है तब दगड़ फूल से अलग बेहतरीन खुशबू आती है। यही वजह है कि गोडा मसाले में मिलाई जाने वाली चीज़ों को पहले भूना जाता है और फिर मिक्स कर दिया जाता है। दगड़ फूल मिलाए जाने पर मसाले और ज़्यादा महक उठते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, स्टोन फ्लावर अपने मूत्रवर्धक गुण के कारण शरीर में मूत्र उत्पादन को बढ़ाकर गुर्दे की पथरी को दूर करने में उपयोगी है। स्टोन फ्लावर का पाउडर, घाव भरने में बहुत प्रभावी है, क्योंकि इसमें जीवाणुरोधी और एंटी इन्फ्लेमेट्री गुण होते हैं।
मूत्राशय और मूत्र पथ में पथरी यूरोलिथियासिस है। आयुर्वेद में इसे मुत्राश्मरी के नाम से जाना जाता है। गुर्दे की पथरी वात-कफ उत्पत्ति की एक स्थिति है, जो मूत्रवह स्रोत में रुकावट का कारण बनती है।
स्टोन फ्लावर अपने म्यूट्रल (मूत्रवर्धक) गुण के कारण यूरोलिथियासिस में राहत देता है, जो मूत्र प्रवाह को बढ़ाता है। पत्थर का फूल कफ दोष को संतुलित करने में भी मदद करता है, जो आगे चलकर गुर्दे की पथरी के गठन को रोकता है।
यूरोलिथियासिस के लिए स्टोन फ्लावर काढ़ा बनाने का तरीका
कुछ पत्थर के फूल लें और उन्हें पीस लें।
इसमें 2 कप पानी में मिला लें।
10 से 15 मिनट या मिश्रण के ¼ होने तक उबालें।
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कस्टमाइज़ करेंइस काढ़े को छान लें।
गुनगुने काढ़े को 10-15 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में दो बार या चिकित्सक के निर्देशानुसार सेवन करने से यूरोलिथियासिस के लक्षणों से शीघ्र ही राहत मिलती है।
यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI) को आयुर्वेद में Mutrakrichantak शब्द के तौर पर वर्णित किया गया है। मूत्र का अर्थ है रिसना, कृचर का अर्थ है पीड़ादायक। इस तरह से दर्दनाक पेशाब को मुत्रचक्र कहा जाता है। यह स्थिति वात और कफ दोष के असंतुलन के कारण होती है। स्टोन फ्लावर अपने तीखे, कड़वे और कसैले गुणों के कारण यूटीआई को ठीक करने में मदद करता है। ये गुण कफ दोष मिटाने में मदद करते हैं, जो आगे चलकर मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) राहत देते हैं।
अस्थमा में शामिल मुख्य दोष वात और कफ हैं। दूषित ‘वात’ फेफड़ों में ‘कफ दोष’ के साथ जुड़ जाता है, जिससे श्वसन मार्ग में रुकावट आती है। इससे सांस लेने में दिक्कत होती है और छाती से घरघराहट की आवाज आती है। इस स्थिति को श्वास रोग (अस्थमा) के रूप में जाना जाता है। स्टोन फ्लावर अपने कफ-वात संतुलन गुणों के कारण अस्थमा को प्रबंधित करने में मदद करता है। ये गुण श्वसन पथ में रुकावट को दूर करने में भी मदद करते हैं, जिससे सांस लेना आसान हो जाता है।
अस्थमा के लक्षणों से राहत पाने के लिए आप स्टोन फ्लावर को मसाले के रूप में अपनी डाइट में इस्तेमाल कर सकते हैं।
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