डियर मॉम, क्या आपको भी लगता है कि शादी-पार्टी में बच्चों को नजर लग जाती है? तो जानिए इस पर क्या है डॉक्टर की राय

बच्चों के साथ किसी पार्टी, फंक्शन या गेट टुगेदर में शामिल होना ही बहुत बड़ा टास्क है। सर्दी-गर्मी से लेकर उनके नैपी और फीडिंग बॉटल तक हर चीज़ का ध्यान रखना पड़ता है। इसके बावजूद बच्चे थोड़ी देर बाद ही रोना शुरू कर देते हैं। आखिर क्यों होता है ऐसा? आइए जानते हैं-
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दो साल से कम उम्र के बच्चे शोरगुल में बहुत जल्द ओवरस्टिम्यूलेट महसूस करने लगते है, जिससे माता पिता की मुश्किलें और चिंताएं दोनों ही बढ़ जाती हैं। चित्र : एडॉबीस्टॉक
Updated On: 20 Feb 2024, 01:25 pm IST
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शादी का सीज़न (Wedding season) आते ही दौड़भाग शुरू हो जाती है। एक के बाद एक आने वाले फंक्शन जहां शरीर को थका देते हैं, वहीं शादी-ब्याह के माहौल में बच्चों का रोना-परेशान होना आपको और पूरे परिवार को परेशान कर देता है। बच्चे को रोता देखकर शुरू हो जाती है दादी, नानी, बुआ, मौसी सभी की एडवाइज। जब कुछ समझ नहीं आता, तो ज्यादातर लोग नज़र उतारने का सुझाव देते हैं। क्या वास्तव में बच्चों को नजर लगती है? या कुछ और है बच्चों के भीड़ में ढेर सारे लोगों से मिलने पर रोने का कारण? आइए जानते हैं विस्तार से (why babies cry in crowded places) ।

नज़र पर क्या है डॉक्टर का नजरिया

छोटे बच्चों को बाहर लेकर जाने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अक्सर छोटे बच्चे कहीं बाहर से घर लौटने पर बहुत तंग करने लगते हैं। उनका रोना और बिलखना परिवार के सभी सदस्यो को परेशान कर देता है। उन्हें लगने लगता है कि बच्चे को किसी भी बुरी नज़र लग गई है। इस बारे में पीडीऐट्रिक्स डॉ माधवी भारद्वाज का कहना है कि नज़र के पीछे कई साइंटीफिक रीज़न है, जिससे बच्चे रोने लगते हैं।

दरअसल, छोटे बच्चे के ब्रेन में जब मल्टीपल स्टीम्यूल्स एक साथ एंटर करते हैं। इसके चलते उस वक्त बच्चा ओवरस्टीम्यूलेशन (Overstimulation) का शिकार होने लगता है। इसके अलावा बच्चों में संक्रमण फैलने का खतरा भी बना रहता है। साथ ही नॉइज़ पॉल्यूशन (noise pollution) भी बच्चे को परेशान करने लगता है।

दरअसल, दो साल से कम उम्र के बच्चे शोरगुल में बहुत जल्द ओवरस्टिम्यूलेट महसूस करने लगते है, जिससे माता पिता की मुश्किलें और चिंताएं दोनों ही बढ़ जाती हैं। ऐसे माहौल में ज़ोर ज़ोर से बजने वाला संगीत बच्चों को इरिटेट करने लगता है, जिससे पेरेंटस टॉडलर (toddler) के साथ शादी एजॉय नहीं कर पाते हैं। जानते हैं बच्चों में बढ़ने वाली ओवरस्टिम्यूलेट क्या है और इससे कैसे डील करें।

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छोटे बच्चों को बाहर लेकर जाने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। चित्र: शटरस्टॉक

इसे कहते हैं ओवरस्टिम्यूलेशन क्या है (What is overstimulation)

जब बच्चे के सेंसिटिव माइंड में मल्टीपल स्टीम्यूलस एक साथ एंटर करते हैं, तो उसके व्यवहार में परिवर्तन नज़र आने लगता है। नवजात शिशु से लेकर 2 साल तक के बच्चे जब नए अनुभवों, लोगों, शोरगुल और एक्टीविटी के संपर्क में आते हैं, तो उनका व्यवहार ओवरस्टीम्यूलेट होने लगता है। रोजमर्रा की चीजों से हटकर नई प्रक्रियाओं को महसूस करके एक्पेस्ट करने में बच्चों को समय की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर बच्चे किसी पार्टी में जाकर नए चेहरों को देखकर रोने लगते हैं। इसके अलावा स्कूल का पहला दिन जहां बच्चे टैंट्रम शो करते हैं। वहीं ग्रोसरी शॉप पर बच्चों का व्यवहार अलग तरह का पाया जाता है। ऐसे में बच्चों को अपने साथ बाहर ले जाने से पहले कुछ खास बातों का ख्याल रखें।

बच्चों के ओवरस्टीम्यूलेट होने के लक्षण (Signs of overstimulation)

  1. अचानक से रोने लग जाना और वहां से बाहर जाने की जिद्द करना
  2. थकान का अनुभव करना और जमीन पर लेट जाना
  3. किसी नए व्यक्ति से मिलने से कतराना और उसके हाथ को पीछे हटाना
  4. पेरेंटस से बार बार चिपकना और उन्हें किसी से मिलने न देना
  5. किसी को धक्का देना और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना
  6. कुछ न खाना और छोटी छोटी बातों से इरिटेट हो जाना
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दो साल से कम उम्र के बच्चे शोरगुल में बहुत जल्द ओवरस्टिम्यूलेट महसूस करने लगते है, चित्र: शटरस्टॉक

इन तरीकों से बच्चों को ओवरस्टिम्यूलेट होने से बचाएं (Tips to overcome overstimulate behaviour)

1. साउंड और नॉइज पाल्यूशन से बचाएं

शादियों के सीज़न में साउंड और नॉइज पाल्यूशन बढ़ने लगता है। अगर आप किसी वेडिंग में जाते हैं, तो वहां डीजे और डांस के कारण बच्चा इरिटेट महसूस करने लगता है। अगर आप बच्चे को ऐसे माहौल में ले जा रही हैं, तो ध्यान रखें कि उसे लिमिटेड समय के लिए ही बाहर लेकर जाएं।

2. एक्टिव ऑवर में बच्चे को लेकर जाएं

उस वक्त बच्चों को बाहर ले जाने का प्लान बनाए, जब वो पूरी तरह से एक्टिव हो। अगर बच्चे का नैप टाइम नज़दीक हैं, तो वो बाहर जाते ही या तो सो जाएगा या फिर रोने लगेगा। इससे आप इवेंट को एजॉय नहीं कर पाते हैं।

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उस वक्त बच्चों को बाहर ले जाने का प्लान बनाए, जब वो पूरी तरह से एक्टिव हो। चित्र : एडॉबीस्टॉक

3. खिलौने कैरी करें

बच्चा जिस खिलौने से सबसे ज्यादा खेलता है, उसे साथ ले जाना न भूलें। इससे बच्चा अकेला महसूस नहीं करता और अन्य लोगों की ओर उसका ध्यान नहीं जाता है। बच्चा अपने खेल में मसरूफ रहता है।

4. बच्चों से बातचीत करते रहें

अगर आप बच्चों से बातचीत करते रहेंगे, तो वे खुश रहते हैं और माहौल से बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होते हैं। उनको पैंपर करें और खुश रखने का प्रयास करें, ताकि आस पास के माहौल में वे आसानी से एडजस्ट हो पाएं। बहुत ज्यादा अन्य लोगों के करीब ले जाने से बचें। इससे बच्चे में संक्रमण का खतरा बढ़ने लगता है।

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लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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