बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार की सीमा से लगते हुए पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों, झारखंड आदि के ग्रामीण इलाकों में आज भी नाश्ते केे रूप में मुख्य रूप से दही-चूड़ा खाया जाता है। मेरी मम्मी का भी यह पसंदीदा नाश्ता है। जब उनका पेट ठीक नहीं होता या पाचन संबंधी अन्य समास्याएं आती हैं, तो वे दही-चूड़ा खाना पसंद करती हैं। जी हां यह पसंदीदा नाश्ता पाचन संबंधी समस्याओं (Dahi chura benefits for digestion) से निपटने में भी आपकी मदद कर सकता है। हालांकि मकर संक्रांति के अवसर पर यह तिल से बनी सामग्रियों जैसे तिल के लडडू, तिल-गुड़, तिलकुट आदि के साथ खाया जाता है। पर जाड़े के दिन में मनाये जाने वाले इस त्योहार में शरीर को गर्म रखने के लिए तिल के साथ दही-चूड़ा खाने का प्रचलन है।
आम-दिनों में बिना तिल की सामग्री के दही-चूड़ा इन क्षेत्रों का कॉमन नाश्ता है। मां कहती है कि पेट संबंधी किसी भी समस्या के लिए दही-चूड़ा कारगर है। आज भी दस्त, अपच होने पर दही चूड़ा खाया जाता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं।
दही में कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन बी-2, विटामिन बी-12, मैग्नीशियम और पोटैशियम भरपूर मात्रा में होते हैं। लैक्टोज और आयरन मौजूद होने के कारण यह सुपरफूड कहलाता है। दही में प्रोबायोटिक भी मौजूद होते हैं, जो डायजेस्टिव सिस्टम को दुरुस्त करते हैं।
चिवड़ा या चूड़ा या पोहा आयरन और फाइबर से भरपूर होता है। फर्मेंटेशन विधि से तैयार होने के कारण यह पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। चिवड़ा मेटाबोलिज्म को तेज करने में मदद करता है। फाइबर होने के कारण यह पेट में देर तक रहता है, जिससे जल्दी भूख नहीं लगती। यह ब्लड शुगर को भी संतुलित करने वाला माना जाता है।
यदि आपको दस्त या उल्टी की समस्या है, तो चिवड़ा को पहले पानी से अच्छी तरह धो लें। इससे वह न सिर्फ अच्छी तरह साफ हो जाता है, बल्कि बेहद मुलायम भी हो जाता है। इससे पचाने में आंत को बहुत अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है। इसके बाद इसमें पर्याप्त मात्रा में दही और गुड़ मिलाकर खाएं।
चिवड़ा यदि कुछ कड़ा हो, तो उसे पानी से धोकर दो कप पानी में एक कप चिवड़ा डालकर 2-3 मिनट के लिए पका लें। ठंडा होने के बाद इसमें दही और गुड़ मिलाकर खाएं।
यदि दस्त की समस्या है, तो आसानी से पचने वाला यह हल्का भोजन शरीर को न सिर्फ हाइड्रेट करता है, बल्कि पर्याप्त एनर्जी प्रदान कर शरीर की हर प्रकार की कमजोरी भी दूर कर देता है।
यदि कब्ज की समस्या है, तो चिवड़े में मौजूद फाइबर बॉवेल मूवमेंट में मदद करते हैं। आंतों को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए नाश्ते में दही-चूड़ा का सेवन किया जा सकता है। यह डायजेस्टिव सिस्टम को मजबूत करता है।
दही में मौजूद गुड बैक्टीरिया बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मार देते हैं। इससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। गैस की समस्या होने पर ताजा दही का प्रयोग करना चाहिए। इससे एसिड नहीं बनता है।
यदि पेट फूला होने या ब्लोटिंग की समस्या हो, तो दही चूड़े में मौजूद फाइबर और कम कैलोरी इस समस्या से निजात दिलाता है। दही कोर्टिसोल और स्टेरॉयड हार्मोन को बढ़ने से रोकता है। इससे मोटापा को घटाने में भी मदद मिलती है।
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कस्टमाइज़ करेंमां कहती है कि दही-चूड़ा के साथ कभी नमक मिलाकर नहीं खाना चाहिए। आयुर्वेद दही को औषधि मानता है। इसमें नमक मिलाने से गुड बैक्टीरिया मर जाते हैं और यह फायदेमंद नहीं रह पाता है।
दही को हमेशा गुड़ के साथ खाना चाहिए। इससे दही की पौष्टिकता बढ़ जाती है। यदि आपको ब्लड शुगर नहीं है, तो चीनी, मिश्री आदि भी इसके साथ मिलाकर खा सकती हैं।
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