एक पैरेंट होना आसान नहीं है। हालांकि एक पैरेंट होने के लिए बहुत नियम होते हैं, लेकिन हर पैरेंट अपना अलग सफर तय करता है। माता या पिता बनने पर समाज, रीति-रिवाज और संस्कृति का भी बहुत असर पड़ता है। लेकिन भारतीय पेरेंट्स अधिकांश रूप से सत्तावादी होते हैं, और सिर्फ बच्चों के मार्क्स पर फोकस करते हैं। इसके कारण बच्चे को कॉन्फिडेंट महसूस नहीं होता।
तो, कैसे अपने बच्चे को कॉन्फिडेंट बनाएं? इस सवाल के जवाब के लिए हमने बात की गीतिका सासन भंडारी से। गीतिका पेरेंटिंग प्लेटफॉर्म ‘लेट्स रेज गुड किड्स’ की फाउंडर, लेखिका और एडिटर हैं।
वह कहती हैं,”एक कॉन्फिडेंस की कमी के शिकार बच्चे के लिए जरूरी है कि समझा जाये क्यों बच्चे में कॉन्फिडेंस की कमी है।”
भाई, बहन या क्लासमेट से बेवजह तुलना या क्रिटिसिज्म बच्चे के आत्मविश्वास को प्रभावित करता है। वह कहती हैं,”अगर आप बच्चे की हर समय बुराई करते हैं, रैगिंग, चिढ़ाना, आपके या टीचर की ओर से प्रोत्साहन की कमी इत्यादि उनके कॉन्फिडेंस को कम करती हैं।”
गीतिका यह भी कहती हैं कि कुछ बच्चे नेचर से शर्मीले होते हैं, इसलिए उन्हें खास देखभाल की जरूरत होती है।
हर व्यक्ति कभी न कभी कॉन्फिडेंस की कमी महसूस करता है। लेकिन अगर बच्चों में ऐसा हो तो यह उनके विकास पर भी असर डाल सकता है। यही कारण है कि आपको इन लक्षणों का ध्यान रखना चाहिए:
1. आपका बच्चा नजरें नहीं मिलाता है
2. अपनी उम्र के अनुसार होने वाली बातचीत में हिस्सा नहीं ले पाता है।
3. दोस्त बनाने में मुश्किल होती है
4. खुद पर डाउट रहते हैं और असुरक्षित महसूस करता है।
5. आत्म सम्मान में कमी दिखती है
गीतिका कहती हैं,”अगर आप बच्चे से कहते रहेंगे की वह अंडर कॉन्फिडेंट है तो वह इसे मानने लगेगा और इससे बाहर नहीं आना चाहेगा। बच्चे हमेशा दबाव में होते हैं और हर वक्त कॉन्फिडेंट नजर आना ऐसा ही एक और दबाव बन सकता है।”
सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि प्रोत्साहन का मतलब झूठी तारीफ नहीं है। बजाय इसके बच्चे के छोटे छोटे प्रयासों की सराहना करें। “जब बच्चे कुछ नया सीखते हैं तो उतार चढ़ाव आना तय है। लेकिन ऐसे में आपको नकारात्मक रियेक्ट नहीं करना है। बच्चे को आपके गुस्सा या दुखी होने की चिंता नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे उनका विकास रुक जाता है”, कहती हैं गीतिका।
मात्रा नहीं गुणवत्ता मायने रखती है- यह बात आपके और आपके बच्चे के रिश्ते पर भी लागू होती है। अपने बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं, भले की कम देर। जब बच्चे के साथ हों, फोन साइड रखें और उनपर की ध्यान दें।
गीतिका कहतीं हैं,” उन्हें गले लगाएं, किस करें और उन्हें हमेशा बताएं कि आपके लिए वे कितने खास हैं। उन्हें हमेशा बताएं कि आप उनपर गर्व करती हैं। इन छोटी छोटी बातों का बच्चे पर बहुत प्रभाव पड़ता है।”
जैसा कि आपने भी महसूस किया होगा कि भारतीय पेरेंटिंग में माता पिता बच्चों के जीवन पर बहुत अधिकार जमाते हैं। इससे बच्चे को अपनी सोच बनाने का मौका नहीं मिलता। “घर पर स्वस्थ रूप से बहस और वाद विवाद करें। बच्चों की बात सुनें और उन्हें जज ना करें। सिर्फ उनकी उम्र के कारण उनके नजरिए को कमतर ना समझें”, कहती हैं गीतिका।
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