कुछ बच्चे एग्रेसिव यानी आक्रामक होते हैं। ऐसेे बच्चे जानबूझकर ऐसा व्यवहार करते हैं, जिससे या तो खुद उन्हें परेशानी होती है या फिर उनके कारण दूसरे लोगों को भावनात्मक और शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचता है।
यदि आपका बच्चा भी आक्रामक है, तो कुछ पैरेंटिग टिप्स अपनाकर कुछ हद तक आपको इस समस्या से राहत मिल सकती है। इसके बारे में बता रही हैं एक्सपर्ट लिसन में चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रीति सिंह।
यदि आपका बच्चा 4 साल से छोटा है और एग्रेसिव है, तो यह सामान्य बात नहीं है। किंडरगार्टन किड्स में भी इन दिनों यह समस्या देखी जा रही है। बड़े हो जाने के बावजूद यदि बच्चों में आक्रामकता बरकरार रहती है, तो यह उनके शारीरिक विकास के लिए सही नहीं है। इससे न सिर्फ उनका व्यक्तिगत जीवन, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक जीवन भी प्रभावित हो जाता है। यदि बच्चे और किशोर क्लीनिकों में रोगियों पर गौर किया जाए, तो इस समस्या से जूझने वाले बच्चे बड़ी संख्या में मिलेंगे। यदि आपके बच्चे के साथ भी यह समस्या है, तो आपको उनकी आक्रामकता से निपटने पर जरूर विचार करना चाहिए।
ऐसे बच्चे कई तरह से अपनी आक्रामकता काे प्रदर्शित करते हैं। वे मारने-पीटने, दांत काट लेने तथा कुछ अजीबोगरीब व्यवहार भी करते हैं। आक्रामक बच्चे सामान या संपत्ति को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। दूसरों को डरा-धमका कर परेशान भी कर सकते हैं। उनका यह व्यवहार सिर्फ निराशा के कारण या किसी सामाजिक समस्या के कारण ही नहीं हो सकता है। कई बार बच्चा अपनी भावनाएं एक्सप्रेस न कर पाने के कारण खुद से ही जूझता रहता है। इससे वह तनाव में रहता है और अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाता है। कठिनाई महसूस करने पर ऐसे बच्चे आक्रामक व्यवहार करने लग जाते हैं। कहीं हद तक उनका यह व्यवहार पेरेंट्स, टीचर या परिवार के दूसरे सदस्य के व्यवहार पर भी निर्भर करता है। बदले हुए हालात में जब वह किसी दबाव, हिंसा या दूसरी तरह की कठिन परिस्थिति से गुजर रहा होता है, तो भी बच्चे का व्यवहार प्रभावित होता है।
यदि आपका बच्चा आक्रामक है, तो उससे निपटने के लिए कुछ पेरेंटिंग टिप्स हैं।
यदि आपका बच्चा गुस्से में है और आप भी गुस्सा करने लगें, तो यह कभी भी सही नहीं हो सकता है। उस समय बच्चे की पिटाई करना तो समस्या को गंभीर बना सकता है। बच्चे को डांटने-फटकारने की बजाय अपने इमोशंस पर नियंत्रण रखते हुए उसके साथ शांत और उचित व्यवहार करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर किसी पेशेवर की मदद ली जा सकती है।
यदि आप किसी शॉपिंग मॉल में गई हैं और बच्चा किसी खिलौना कार को खरीदने के लिए आप पर दबाव बनाता है। वह फर्श पर लेट जाता है, चीखता-चिल्लाता है और आपको मारने लग जाता है। उसकी यह सभी हरकतें देखकर यदि आप उसे वह सामान दिला देती हैं, तो यह आपका सही व्यवहार नहीं है। ऐसा कर आप उसकी आक्रामकता को घटाने की बजाय बढ़ा रही हैं।
यदि आप इस आशा में रहती हैं कि उसके द्वारा कुछ असाधारण करने पर ही आप उसे पुरस्कृत करेंगी, तो यह गलत है। उसके किसी अच्छे व्यवहार की जरूर तारीफ करें। उदाहरण के लिए यदि आपके घर पर कोई गेस्ट आए हों और उसने उनसे अच्छा व्यवहार किया हो। आपकी इस तारीफ के कारण वह अपने अच्छे व्यवहार को बार-बार दिखाना चाहेगा।
जब बच्चा किसी बात पर गुस्सा दिखाए, तो एसा जरूर कहें कि मैं देख रही हूं कि चॉकलेट नहीं मिलने पर तुम गुस्सा करते हो। ऐसा करनेे पर बच्चा मारने या दांत काटने की बजाय बच्चा अपनी फीलिंग्स को व्यक्त कर पाएगा। उसे यह सिखाएं कि जब भी वह गुस्से में आए, तो जवाब देने से पहले 100 से 1 तक की उल्टी गिनती करे, ताकि उसका गुस्सा कंट्रोल में रहे। उसे यह सिखाएं कि गुस्सा आने पर दीवार पर मुक्का मारने की बजाय तकिए पर मुक्का मारे।
जब भी वह बच्चा अच्छा बर्ताव करे, तो उसे उपहार दें। बुरा बर्ताव करने पर उपहार वापस ले लें। उसके दिमाग में यह बात बिठाएं कि रूल फॉलो करने पर उसे पुरस्कृत किए जाएगा, वहीं रूल तोड़ने पर पुरस्कार वापस ले लिया जाएगा।
कभी-भी बच्चे को भ्रम में न डालें। उसके साथ हर परिस्थिति और हर समय में एक समान व्यवहार करें।
कई बार वैवाहिक झगड़ों, सामाजिक-आर्थिक तनाव के कारण माता-पिता भी मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं। इसके कारण माता-पिता की पैरेंटिंग दबाव वाली हो जाती है। इसमें माता-पिता कभी-कभार बच्चों के साथ पॉजिटिव बातचीत करते हैं, लेकिन अक्सर उनके साथ मारपीट करते रहते हैं। ऐसा करके वे बच्चों में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं।इससे माता-पिता और बच्चों के बीच आक्रामक संबंध बन जाते हैं।
अपने बच्चे को हमेशा अच्छा बच्चा मानें, जिसकी कुछ खराब आदतें हैं। ये आदतें किसी खास घटना या किसी परिणाम के कारण विकसित हुई हैं। यदि आप यह मानेंगे कि बच्चे की आक्रामकता उसकी आंतरिक, वैश्विक या किसी निगेटिव व्यवहार के कारण है, तो इससे बच्चा और ज्यादा निगेटिव व्यवहार करने लगेगा।
बच्चे के व्यवहार को एक चार्ट के माध्यम से मॉनिटर करें। इसके माध्यम से पहले और बाद में उसके द्वारा किए गए पॉजिटिव और निगेटिव व्यवहार को मॉनिटर करें। यदि उसने नाममात्र की गलतियां की हैं, तो उसे अनदेखा करें।
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