न्यू मॉम्स के लिए ब्रेस्टफीडिंग (Breastfeeding) एक टफ जॉब मानी जाती है। नवजात शिशु को गोद में लेकर चुप करवाना और फिर दूध पिलाने तक कई बातों का ख्याल रखना पड़ता है। अक्सर महिलाएं जल्दबाज़ी से बच्चों को दूध पिलाने का प्रयास करती हैं, जो मां और बच्चे दोनों के लिए परेशानी का कारण साबित हो सकता है। छोटा बच्चा बार बार दूध पीता है, जिसके लिए ब्रेस्टफीडिंग पोज़िशन से लेकर अवधि तक सभी चीजें महत्वपूण होती हैं। मगर जाने अनजाने में नई माताएं कुछ चीजों का ख्याल रखना भूल जाती है। जानते हैं न्यू मॉम्स को ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान किन बातों का ख्याल रखना चाहिए।
इस बारे में पीडियाटरीशियन डॉ माधवी भारद्वाज का कहना है कि बच्चे को दूध पिलाने के दौरान मां को अपने दाहिनी बाजू पर शिशु के सिर को टिका लेना है और बाएं हाथ से बच्चे के बंपस को पकड़कर रखना है। दूध पिलाने के दौरान मां को पीठ के पीछे तकिया लगाकर आराम से बैठना चाहिए। इसके अलावा बच्चे के नीचे भी एक तकिया रखें, जिससे बच्चे का बैलेंस बना रहात है। इसके अलावा कमरे का तापमान 24 से 28 डिग्री के बीच में रखें। गर्मी में रहने से निपल के आस पास बैक्टीरियल इंफैक्शन का खतरा रहता है। इससे बच्चे को संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है।
अक्सर बच्चे को दूध पिलाने के लिए उसके मुंह को ब्रेस्ट के नज़दीक लाया जाता है। मगर शिशु निपल को पूरी तरह से सक नहीं कर पाता, जिसके चलते वो रोने लगता है। ऐसे में बच्चे को फीड करवाने के लिए ब्रेस्ट को हाथ से पकड़कर बच्चे के मुंह के नज़दीक ले आएं, जिससे बच्चा आसानी से दूध पी सकता है।
ब्रेस्टफीडिंग क दौरान अगर मां सहीं पोश्चर में नहीं बैठेगी, तो बच्चा पूरी तरह से संतुष्ट महसूस नहीं कर पाता है। दूध पिलाने के दौरान बच्चे को गोद में लेने से पहले एक तकिया गोद में रखें, जिस पर बच्चे को लेटाकर दूध पिलाएं। इसके अलावा पीठ के पीछे पिलो रखकर बैठने से ब्रेस्टफीडिंग में मदद मिलती है।
लेक्टेटिंग मदर्स के लिए हेल्दी मील बेहद आवश्यक है। इसके लिए उन्हें अपने इसके अलावा एसिडिटी और गैस की समस्या बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों से दूरी बना कर रखें। साथ ही कैफीन, अल्कोहल और खट्ठे फलों से बचकर रहें। इससे बच्चे के पेट में दर्द और सोने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है।
बच्चे को बार बार लगने वाली भूख को शांत करने के लिए माताएं अक्सर बच्चे को फॉर्मूला मिल्क देने लगती है। माताओं में अक्सर ये भ्रम पैदा होने लगता है कि मिल्क सप्लाई कम है और बच्चा भूखा रह जाता है। जब कि फॉर्मूला मिल्क का स्वाद बच्चे कसे चखाने से अधिकतर बच्चे उसी को पीने लगते हैं। इससे स्तनों में दूध की सप्लाई कम होने लगती है। एक्सपर्ट के अनुसार कम से कम बच्चे को 6 महीने तक मां का दूध ही देना चाहिए। इससे बच्चे में एंटीबॉडीज़ प्रवेश करती है, जिससे इम्यून सिस्टम मज़बूत होने लगता है।
स्तनपान के दौरान मां के शरीर का तापमान संतुलित होना आवश्यक है। वर्कआउट या ऑफिस से लौटने के एकदम बाद बच्चे को दूध पिलाने से बचना चाहिए। पहले बच्चे के साथ कुछ देर खेलें और पसीना सुखाएं। उसके बाद कपड़े बदलकर ब्रस्टफीडिंग करवाएं। बच्चे को दूध पिलाने के दौरान कमरे के तापमान को 24 से 28 डिग्री के मध्य रखें। इससे बार-बार पसीना आने की समस्या से मुक्ति मिल जाती है और निपल के नज़दीक बैक्टीरिया के पनपने का जोखिम भी कम हो जाता है।